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ICC की ताकत, जरूरत और कमजोरी क्या है? पढ़ें अपने हर सवाल का जवाब

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट कितना प्रभावी है, यह अदालत कर क्या सकती है, आइए विस्तार से समझते हैं।

Benjamin Netanyahu

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया है।

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया है। इस वैश्विक संस्था का आरोप है कि दोनों ने युद्ध अपराध किए हैं, इन्होंने मानवता के खिलाफ अपराध किया है। गाजा में सैन्य अभियान के दौरान मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई हैं। 

इंटनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने महीनों की जांच के बाद गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है। इंटरनेशल कोर्ट का कहना है कि बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने गाजा में पीड़ित लोगों तक मदद नहीं पहुंचने दी। पीड़ितों तक, जो मदद पहुंचाई जा रही थी, उसे रोककर नागरिकों को भुखमरी के हालात में छोड़ दिया, यह उनकी युद्ध रणनीति का हिस्सा था।

बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट, दोनों ने इन आरोपों का खंडन किया है। बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ये आरोप झूठे और निराधार हैं। गाजा में सैन्य कार्रवाई जरूरी है। योआव गैलेंट ने भी इंटनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह आत्मरक्षा के लिए एक खतरनाक उदाहरण है।

बेंजामिन नेतन्याहू और युआव गैलेंट पर आरोप क्या हैं?

- बेंजामिन नेतन्याहू और युआव गैलेंट ने मानवता के खिलाफ अपराध किया है।
- नागरिकों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की गई।
- मानवीय अधार पर दी जा रही वैश्विक मदद को रोका है, जिससे भुखमरी से लोगों को जूझना पड़ा है।
- बच्चों को कुपोषण और डिहाइड्रेशन तक से जूझना पड़ा है। 
- आरोप यह भी हैं कि जरूरी सामानों की आपूर्ति रोकी गई, जिसकी वजह से बिना एनेस्थीसिया के डॉक्टरों को ऑपरेशन तक करने पड़े।
- एक देश के निर्दोष नागरिकों को युद्ध में झोंक दिया गया, उनके साथ बर्बर सलूक किया गया।

कितनी दमदार है ICC?
इंटरनेशनल लॉ के स्टूडेंट रहे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सौरभ शर्मा बताते हैं कि इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के अधिकार, संप्रभु और मजबूत देशों को लेकर सीमित हैं। 1 जुलाई 2002 को इटली की राजधानी रोम में इस इंटरनेशनल कोर्ट की स्थापना हुई थी। तब से लेकर अब तक करीब 56 वारंट जारी किए गए हैं लेकिन उन पर कार्रवाई बेहद कम हुई है। सबसे बड़ी वजह इसकी है कि अगर कार्रवाई वैश्विक है तो पुलिस भी वैसी ही ताकतवर होनी चाहिए।

सौरभ शर्मा बताते हैं अगर ICC की अपनी पुलिस हो, वह किसी देश में किसी राष्ट्राध्यक्ष को गिरफ्तार करने जाए तो सम्प्रभु देश, अपने क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण या हमले के तौर पर देख सकते हैं। वैसे तो युद्ध अपराधों के 32 से ज्यादा मामलों की जांच इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट में चल रहे हैं लेकिन जिन्हें अदालत शामिल मानती है, वे कोर्ट की दायरे से बहुत ऊपर हैं। बड़े देश, जैसे इजरायल, रूस, अमेरिका, और चीन जैसे देश, इस अदालत के फैसले को मानने से साफ इनकार करते हैं।

अपनी सेना के साथ बेंजामिन नेन्याहू। (तस्वीर, फेसबुक)

 एडवोकेट सौरभ शर्मा बताते हैं कि कुछ छोटे और दक्षिण अफ्रीकी देशों पर यह अदालत दबाव बना पाती है लेकिन दूसरे सामर्थ्यवान देश, इसके आदेशों का मजाक उड़ाते हैं। जो देश, रोम संविधि (Rome Statute) की इस अदालत के सदस्य देश हैं, वे ही इसका आदेश मानने के लिए बाध्य हैं। इजरायल और अमेरिका जैसे देश, इसके सदस्य नहीं हैं। 

क्यों है ICC की जरूरत, कर क्या सकती है ये अदालत?
जब कोई देश, युद्ध की स्थिति में, अपने सैनिकों-अधिकारियों के युद्ध अपराधों पर एक्शन नहीं लेता, मुकदमे नहीं चलाता या उन्हें बढ़ावा देता है, तब ICC हस्तक्षेप करता है। इजरायल का कहना है कि वह युद्ध अपराधों पर संवेदनशील है, वह युद्ध अपराध नहीं होने देता है। गाजा में उसकी कार्रवाई सिर्फ आत्मरक्षा है। इजरालय अपने नागरिकों की सुरक्षा पर ध्यान दे रहा है। ICC के फैसलों से दबाव चाहे बन जाए, कानूनी एक्शन लेने में यह संस्था बेहद कमजोर है।

 

कोर्ट के कड़े फैसले क्या रहे?
कोर्ट का पहला फैला मार्च 2012 में थॉमस लुबांगा के खिलाफ आया था। थॉमस लुबांगा, कांगो गणराज्य के एक नेता थे। उन पर युद्ध अपराध के दोष साबित हुए थे। उन पर युद्धों में बच्चों के इस्तेमाल के आरोप थे। उन्हें 14 साल की सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा आइवरी कोस्ट के पूर्व राष्ट्रपति लॉरेंट गाब्गो को पेश किया गया था। साल 2011 में उनके खिलाफ रेप, हत्या और अन्य अमानवीय कृत्यों के आरोप थे। वे बरी हो गए थे। यूगांडा के विद्रोही नेता जोसेफ कोनी के खिलाफ भी ICC ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। ऐसे ही कुछ अन्य अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों पर इस संस्था का एक्शन हुआ है। इसकी अफ्रीकी देश आलोचना भी करते हैं। साल 2023 में ही इसी अदालत ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था, आरोप थे कि उन्होंने यूक्रेन में युद्ध अपराध किया है। 

ऐसी दिखती है इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट। 



किन देशों में ऐसे मामलों में हो सकती है गिरफ्तारी?
ICC के सदस्य देश, जिन्होंने रोम संविधि (Rome Statute) पर हस्ताक्षर किए हैं, वे इसका फैसला मानने के लिए बाध्य होते हैं। अगर जिन नेताओं के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया गया है, वे नेता, इन देशों के दौरे पर जाते हैं को हो सकता है कि उन्हें हिरासत में लिया जा सके। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ताकतवर देशों के नेताओं के साथ ऐसा सलूक कभी नहीं होता है। अब अगर बेंजामिन नेतन्याहू खुद इटली चले जाएं तो भी उन्हें इटली गिरफ्तार करे, यह लगभग असंभव है।

 

सौरभ शर्मा बताते हैं कि ICC का दायरा सीमित है। इंटरनेशनल कोर्ट के पास अपनी कोई पुलिस नहीं है, सेना नहीं है। सदस्य देश के लिए अगर अदालत के आदेश घातक हैं तो वे कभी नहीं मानेंगे। उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझिए कि अगर बेंजामिन नेतन्याहू गुयाना, बारबाडोस या केन्या जैसे देश जाएं तो कौन सा देश, उन्हें गिरफ्तार करने, हिरासत में लेने की हिम्मत करेगा। आदेश भले ही जारी हुए हैं लेकिन बेंजामिन नेतन्याहू को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। शायद ही रोम संविधि को मानने वाला कोई भी देश, इसकी मंजूरी दे। 

ICC के कानून को कितने देश मानते हैं?
ICC के कुल सदस्य देशों की संख्या 124 है। 34 देश ऐसे हैं, जो भविष्य में इस पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। सदस्य देशों में यूरोप से लेकर अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र तक महाद्वीपों के कई देश शामिल हैं।
 
कौन से देश नहीं मानते हैं ICC का फैसला?
भारत, चीन, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, तुर्की जैसे देश यहां के कानूनों को नहीं मानते हैं। इजरायल, मिस्र, ईरान और रूस जैसे देश भी इस संधि के साथ तो हैं लेकिन कोर्ट के फैसलों को मानते नहीं हैं। यूनाइटेड किंगडम, जापान, जर्मनी और फ्रांस जैसे देश इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट को पैसे देते हैं। 

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