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शपथ लेने के मिनटों बाद ही डोनाल्ड ट्रंप पर क्यों दायर हुआ मुकदमा?

अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के कुछ मिनटों बाद ही डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ मुकदमा दायर हो गया है। ये मुकदमा उनकी DOGE स्कीम को लेकर दायर हुआ है।

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। (Photo Credit: PTI)

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए हैं। सोमवार को उन्होंने 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। हालांकि, शपथ लेने के कुछ मिनटों बाद ही ट्रंप के खिलाफ एक नया मुकदमा दायर हो गया है। बताया जा रहा है कि अमेरिका के सबसे बड़े कर्मचारी संघ ने DOGE को लेकर उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया है। ट्रंप ने इस विभाग का जिम्मा अरबपति एलन मस्क को सौंपा है। इस विभाग का काम सरकारी खर्चों में कटौती करना है।

किसने दायर किया मुकदमा?

ट्रंप के खिलाफ ये मुकदमा अमेरिकन फेडरेशन ऑफ गवर्नमेंट एम्प्लॉई (AFGE) और नॉन-प्रॉफिट पब्लिक सिटीजन ने दायर किया है। ट्रंप के खिलाफ ये मुकदमा शपथ लेने के कुछ मिनटों बाद ही दायर हुआ है।

क्यों दायर हुआ मुकदमा?

दरअसल, ट्रंप और मस्क ने मिलकर 2 ट्रिलियन डॉलर बचाने की योजना बनाई है। इसके लिए सरकारी खर्चों में कटौती की जाएगी। इससे कई लोगों की नौकरियां जाने का खतरा भी है।


AFGE ने कहा, 'DOGE के सदस्य अमेरिकी हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इसके सदस्य सरकारी एजेंसियों में कटौती की सिफारिश करेंगे। इससे हेल्थ, कन्ज्यूमर फाइनेंस और प्रोडक्ट सेफ्टी जैसे कार्यक्रमों पर भी सीधा असर पड़ेगा।'


कर्मचारी संघ ने कहा, 'संघीय नियम किसी भी सरकार को निजी क्षेत्र से सलाह और सिफारिशें लेने के लिए एक आयोग या टास्क फोर्स का गठन करने का अधिकार देते हैं लेकिन नियमों के तहत निजी हितों को ध्यान में रखकर फैसले नहीं लिए जा सकते।'

AFGE की मांग क्या?

AFGE का कहना है कि संघीय नियमों के मुताबिक, सलाहकार समिति के सदस्य गुप्त रूप से नहीं मिल सकते और उनके काम और रिकॉर्ड को सार्वजनिक जांच के लिए उपलब्ध रहते हैं। AFGE ने मुकदमा दायर कर अपील की है कि DOGE को सलाहकार समिति के तौर पर काम करने से तब तक रोका जाए, जब तक ये संघीय नियमों का पालन नहीं करती है। 

क्या है DOGE?

DOGE यानी डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी। इस विभाग की जिम्मेदारी एलन मस्क और विवेक रामास्वामी को सौंपी गई है। इसका मकसद सरकारी खर्चों में कटौती करना है। ट्रंप ने कम से कम 2 ट्रिलियन डॉलर की कटौती करने का फैसला लिया है। ये कोई आधिकारिक सरकारी विभाग नहीं है और ये सलाहकार समिति के तौर पर काम करेगा। माना जा रहा है कि इसके जरिए बड़े पैमाने पर नौकरियों में कटौती की जाएंगी। ऊंचे पदों पर बैठे ब्यूरोक्रेट्स को भी हटाया जा सकता है। 

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