अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को एक नया नियम लागू किया, जिसके तहत H-1B वीजा के लिए अब कंपनियों को 1 लाख डॉलर का शुल्क देना होगा। भारतीय आंकड़ों में यह राशि 83 लाख रुपये से ज्यादा की है। यह वीजा हाई टेक्निकल डिमांड वाली नौकरियों के लिए मिलता है। ट्रंप के इस फैसले का असर सबसे ज्यादा टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम करने वाले विदेशी कर्मचारियों पर पड़ेगा।
इस नियम से भारत और चीन जैसे देशों से आने वाले कर्मचारियों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि टेक कंपनियां इन वीजा पर काफी निर्भर हैं। यह नियम 21 सितंबर 2025 से लागू हो गया है। भारत में एक बड़ा तबका ऐसा है, जो ट्रंप के नए नियमों को मुश्किल समझ रहा है।
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क्या है नया नियम?
H-1B वीजा, जो कम से कम बैचलर डिग्री धारकों के लिए है, अब इसके लिए 1 लाख डॉलर का शुल्क देना होगा। यह नियम खासकर टेक कंपनियों को प्रभावित करेगा, जो विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं।
पुराने वीजा धारकों का क्या होगा?
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने X पर लिखा, 'यह नियम पुराने H-1B वीजा धारकों पर लागू नहीं होगा। जो लोग पहले से वीजा पर हैं और अमेरिका से बाहर हैं, उन्हें वापस आने के लिए यह शुल्क नहीं देना होगा। यह नियम केवल नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा, न कि रिन्यू कराने वाले लोगों पर।
कब से लागू होगा यह नियम?
यह शुल्क 21 सितंबर 2025 को सुबह 12:01 बजे से लागू हो गया है। यह नियम एक साल तक चलेगा। ट्रंप प्रशासन इसे और बढ़ा सकता है अगर उन्हें लगता है कि यह अमेरिका के हित में है।
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क्या यह फीस हर साल देनी होगी?
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा था कि यह फीस हर साल देनी होगा। कैरोलिन लेविट ने साफ किया कि यह एक बार का शुल्क है, जो केवल वीजा आवेदन के समय देना होगा, न कि हर साल।
क्या मौजूदा वीजा धारक अमेरिका छोड़कर वापस आ सकते हैं?
कैरोलिन लेविट ने कहा कि मौजूदा H-1B वीजा धारक सामान्य रूप से अमेरिका छोड़कर वापस आ सकते हैं। इस नए नियम से उनकी आवाजाही पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह नियम अगले लॉटरी साइकिल से लागू होगा।
क्यों लाया गया यह नियम?
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक:-
इस नियम का मकसद टेक कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और उन्हें लाकर अमेरिकियों की नौकरियां लेने से रोकना है। यह कदम अमेरिकी कर्मचारियों के हित में उठाया गया है। यह नया नियम टेक्नोलॉजी क्षेत्र में बड़े बदलाव ला सकता है, क्योंकि कई कंपनियां H-1B वीजा के जरिए भारत और चीन जैसे देशों से कुशल कर्मचारियों को लाती हैं।