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सऊदी-पाकिस्तान के बीच नाटो जैसी डील, भारत के सामने क्या टेंशन?

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच नाटो जैसी डिफेंस डील हुई है। भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुए इस समझौते की पूरी दुनिया में चर्चा है। भारत के सामने क्या चिंताएं हैं? आइये जानते हैं।

Pakistan-Saudi Arabia Defence Agreement.

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच नया रक्षा समझौता। (AI generated image)

कतर की राजधानी दोहा पर इजरायल के एयर स्ट्राइक के बाद दुनियाभर के मुस्लिम देश सतर्क हैं। खासकर खड़ी देशों को अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगी है। कतर में ही अमेरिका का मध्य पूर्व में सबसे बड़ा एयरबेस है। दुनिया इसे अल उदैद एयरबेस के नाम से जानती है। यहां लगभग 8000 अमेरिकी सैनिक तैनात है। बावजूद इसके अमेरिका कतर को न तो ईरानी और न ही इजरायली हमले से बचा सका। 

 

इजरायल ने जब कतर पर हमला किया तो न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया सकते में आ गई। दुनियाभर के मुस्लिम देशों के नेता दोहा पहुंचने लगे। सभी ने एकजुटता दिखाई और एक नए गठबंधन की वकालत की। एक ऐसा गठबंधन जो नाटो की तर्ज पर हो। किसी भी हमले का जवाब देने में सक्षम हो। अभी इस पर मंथन चल ही रहा है। इस बीच पाकिस्तान और सऊदी अरब ने एक बड़ा दांव चला है। यह दांव भारत को असहज कर सकता है। पाकिस्तान का पूरा फोकस सऊदी अरब के अलावा अन्य मुस्लिम देशों के साथ एक ऐसा रक्षा समझौता करने का है, जो युद्ध जैसी स्थिति में एकजुट होकर एक-दूसरे का साथ दे।

 

आइये जानते हैं कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच कौन सा रक्षा समझौता हुआ है? इसमें क्या-क्या प्रावधान हैं। भारत इसे कैसे देखता है। सऊदी अरब को इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

 

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ कतर पर इजरायली हमले के बाद दोहा पहुंचे। इसके बाद उन्होंने सऊदी अरब का दौरा किया। राजधानी रियाद में पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक ऐतिहासिक रक्षा समझौता हुआ। समझौते के बाद सऊद अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने एक दूसरे को गले लगाया। इस दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर भी मौजूद थे।

 

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सऊदी और पाकिस्तान के बीच क्या रक्षा समझौता हुआ?

पाकिस्तान और सऊदी अरब ने नाटो के तर्ज पर आपसी रक्षा समझौता किया है। इसके मुताबिक अगर पाकिस्तान पर हमला हुआ तो वह सऊदी अरब पर हमला माना जाएगा। यदि सऊदी अरब पर समझौता हुआ तो इसे पाकिस्तान पर हमला माना जाएगा। एक संयुक्त बयान में सऊदी अरब ने कहा, यह समझौता दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और क्षेत्र व दुनिया में सुरक्षा व शांति स्थापित करने की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाने वाला है। समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग और किसी भी हमले के खिलाफ संयुक्त प्रतिरोध को मजबूत करने का है। समझौते के मुताबिक किसी भी देश के विरुद्ध हमले को दोनों के खिलाफ आक्रमण माना जाएगा। 

क्या परमाणु हथियार भी समझौते का हिस्सा?

सऊदी अरब के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि पाकिस्तान के साथ नया समझौता किसी खास देश या घटना की प्रतिक्रिया नहीं है। यह समझौता कई वर्षों की बातचीत का नतीजा है। अधिकारी से जब यह पूछा गया कि इस समझौते पर क्या परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है तो उन्होंने कहा कि यह एक व्यापक रक्षात्मक समझौता है। इसमें सभी सैन्य साधन शामिल हैं।

रणनीतिक साझेदारी भी बढ़ाएंगे

पाकिस्तान और सऊदी अरब रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाएंगे। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ विभिन्न क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की। इसके अलावा क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम, साझा हितों, सुरक्षा और स्थिरता पर भी बातचीत हुई। सऊदी अरब का कहना है कि दोनों देशों के बीच यह समझौता ऐतिहासिक साझेदारी और साझा रणनीतिक हितों व घनिष्ठ रक्षा सहयोग पर हुआ है।

सऊदी को क्यों करना पड़ा रक्षा समझौता?

अभी तक खाड़ी देश अपनी सुरक्षा के लिए काफी हद तक अमेरिका पर निर्भर हैं। लेकिन कतर पर इजरायली हमले ने अलार्म बजा दिया है। अमेरिका पर इन देशों का विश्वास डगमगा गया है। शंका यह है कि क्या कतर पर इजरायली हमले के बारे में अमेरिका को नहीं पता था? अगर उसे जानकारी थी तो रोका क्यों नहीं। इसी साल ईरान पर अमेरिका ने हवाई हमला किया था। जवाब में ईरान ने कतर स्थित अमेरिका बेस पर मिसाइलें दागीं। उस वक्त भी अमेरिका ने कतर को ईरानी हमले से नहीं बचाया था। सऊदी अरब की ईरान से नहीं बनती है। यह जगजाहिर है। यही कारण है कि सऊदी अब सिर्फ अमेरिका पर निर्भर नहीं होना चाहता है। वह अपनी रक्षा की नई रणनीति तैयार कर रहा है। 

पाकिस्तान ही क्यों? 

कतर पर इजरायली हमले को पाकिस्तान एक अवसर के तौर पर देख रहा है। आतंकवाद के मामले में दुनियाभर में अलग-थलग पड़ने के बाद पाकिस्तान को लग रहा है कि उसके पास अपनी खोई हुई कथित प्रतिष्ठा को दोबारा स्थापित करने का अवसर है। अगर मुस्लिम देशों के साथ रक्षा समझौता होता है तो दोनों पक्षों को फायदा मिलेगा। भारत के साथ युद्ध होने की स्थिति में यह इस्लामिक गठबंधन उसके काम आएगा।

 

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अब सवाल उठता है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान को ही क्यों चुना? इसकी एक प्रमुख वजह यह है कि पाकिस्तान भी मुस्लिम देश है। सऊदी के साथ उसके रक्षा संबंध दशकों पुराने हैं। 1967 से अब तक पाकिस्तान ने 8,200 से अधिक सऊदी सशस्त्र बल के जवानों को ट्रेनिंग दे चुका है। दोनों देश सैन्य अभ्यास भी करते हैं। दूसरी वजह यह है कि पाकिस्तान मुस्लिम जगत का एकमात्र परमाणु संपन्न देश है। 

भारत के बारे में क्या बोला सऊदी?

मई में भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक संघर्ष चला। चार महीने बाद पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब के नए रक्षा समझौता से चिंता पैदा होना लाजिमी है। जब सऊदी अधिकारी से भारत से जुड़ी चिंताओं के बारे में पूछा गया तो उसने कहा कि भारत के संबंधों को संतुलित करने की जरूरत है। परमाणु शक्ति भारत के साथ उनके देश के रिश्ते मजबूत हैं। हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाते रहेंगे और क्षेत्रीय शांति में हर संभव योगदान देने का प्रयास करेंगे।

भारत ने क्या प्रतिक्रिया दी?

दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते पर भारत ने भी प्रतिक्रिया दी। गुरुवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक्स पर लिखा कि भारत इस घटनाक्रम से अवगत है। नई दिल्ली की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा।

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