पिछले कुछ वर्षों से दुनियाभर में सब्जियों के दाम में बेतहाशा इजाफा देखने को मिल रहा है। न केवल आम इंसान, बल्कि बढ़ती महंगाई से दुनियाभर की सरकारें त्रस्त हैं। अब एक अध्ययन में खुलासा हुआ कि सब्जियों और खाद्य पदार्थों की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी के पीछे जलवायु परिवर्तन है। बार्सिलोना सुपर कंप्यूटर सेंटर के मैक्सिमिलियन कोट्ज की अगुवाई में दुनियाभर के 18 देशों में अध्ययन किया गया। इसमें पता लगा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम की चरम घटनाएं काफी तेजी से बढ़ रही हैं। जैसे अचानक बादल फटना, भीषण गर्मी, एकदम से बाढ़ का आना, रेगिस्तान में बरसात और गर्म इलाकों में बर्फबारी चरम मौसम में आती हैं।
शोध में खुलासा हुआ कि जलवायु परिवर्तन से दुनियाभर में सब्जियों के दाम में इजाफा हो रहा है। तापमान अधिक बढ़ने से सब्जियों का उत्पादन घटा है। इसका असर सप्लाई चेन में पड़ा। अर्थशास्त्र का बेसिक नियम मांग और पूर्ति का है। जब किसी भी वस्तु की पूर्ति कम होती और मांग अधिक होती है तो मूल्य का बढ़ना लाजिमी है। सब्जियों की मांग बढ़ रही और पैदावार प्रभावित होने से पूर्ति उतनी नहीं हो पा रही है, जितनी मांग होती है।
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70 से 80 फीसदी तक बढ़ी सब्जियों की कीमतें
अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है कि 2022 से 2024 के बीच अत्यधिक गर्मी, सूखे और भारी वर्षा की वजह से सब्जियों की कीमत में उछाल आया। शोध के मुताबिक 2022 के अगस्त महीने में दक्षिण कोरिया में गोभी की कीमत में भारी वृद्धि हुई। 2021 की तुलना में यह इजाफा 70 फीसदी था। ठीक इसी तरह अमेरिका के कैलिफोर्निया और एरिजोना में नवंबर 2022 में सब्जियों की कीमतें अचानक बढ़ गईं। जबकि ठीक एक साल पहले यानी नवंबर 2021 में कीमतें लगभग 80 फीसदी तक नीचे थीं। कीमत में वृद्धि के पीछे वजह यह थी कि 2022 की गर्मियों में अमेरिका के कई राज्यों को भीषण जल संकट से जूझना पड़ा। इससे उत्पादन कम हुआ और मूल्य बढ़ गया।
यूरोप में जैतून के तेल और जापान में चावल की कीमत बढ़ी
इटली और स्पेन को साल 2022 और 2023 में सूखे का सामना करना पड़ा। अगले साल 2024 में पूरे यूरोप में जैतून के तेल के दाम बढ़ गए। यह इजाफा लगभग 50 फीसदी हुआ। जापान में पिछले साल 1946 के बाद सबसे भीषण गर्मी पड़ी। इस कारण धान की पैदावार कम हुई। यहां भी 48 फीसदी तक चावल महंगा हो गया।
जलवायु परिवर्तन से मंहगी हो रही आपकी कॉफी
घाना और आइवरी कोस्ट में साल 2024 में भीषण गर्मी पड़ी। पिछले साल की तुलना में यहां तापमान लगभग 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया। इसका खामियाजा दुनियाभर को उठाना पड़ा। भीषण गर्मी से कोको का उत्पादन प्रभावित हुआ और वैश्विक बाजार में उसकी कीमत लगभग 280 फीसद तक बढ़ गई। बता दें कि दुनिया का लगभग 60 फीसदी कोको उत्पादन घाना और आइवरी कोस्ट में ही होता है।
कब तक चलेगा यह सिलसिला?
खाद्य पदार्थों में भारी कीमत के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है। इससे सामाजिक और राजनीतिक अशांति व उथल-पुथल का जोखिम है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब तक दुनिया नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन तक नहीं पहुंच जाती, तब तक मौसम की चरम घटनाएं थमने वाली नहीं हैं। आने वाले समय में मौसम और भी क्रूर होगा। इससे फसलों को भारी नुकसान पहुंचेगा और खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ना लाजिमी है।
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निम्न आय वाले परिवारों पर क्या खतरा?
शोध में खुलासा हुआ है कि फल और सब्जी की कीमतें बढ़ने से कम आय वाले परिवारों के सामने सबसे अधिक जोखिम पैदा हुआ है। दरअसल, इन परिवारों ने भारी कीमत की वजह से अपनी थाली से सब्जी और फल को गायब कर दिया है। पौष्टिक आहारों की कमी का असर उनके स्वास्थ्य में पड़ रहा है। ऐसे परिवारों को ह्रदय रोग, कुपोषण और टाइप 2 मधुमेह से सबसे अधिक खतरा है।