बिहार की लोक कला में मधुबनी पेंटिंग, मंजूषा कला, टिंकुली कला, सिक्की कला, टेराकोटा शिल्प, सुजनी कढ़ाई शामिल है। ये लोक कलाएं उनकी संस्कृति को दर्शाती हैं। इनमें से मधुबनी और मंजूषा कला अपनी अनूठी शैलियों, प्राकृतिक रंगों और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।
इन कलाओं को दुनियाभर में प्रसिद्ध मिल रही हैं। ज्यादातर लोगों ने मधुबनी पेंटिंग से लेकर मिथिला के मखाना के बारे में सुना होगा। आज हम आपको बिहार की भागलपुरी सिल्क साड़ी से लेकर छापा प्रिंट तक के बारे में बता रहे हैं। आइए जानते हैं इन कपड़ों में ऐसी क्या खास बात है?
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भागलपुरी सिल्क
भागलपुर सिल्क दुनियाभर में पॉपुलर है। भागलपुर शहर उद्योग के मामले सबसे ऊपर है। यहां पर तसर, मलवरी, मस्राइज समेत अन्य सिल्क से कपड़े बनाएं जाते हैं। बाजार में सबसे ज्यादा तसर सिल्क के कपड़ों की डिमांड है। इन सिल्क पर विभिन्न प्रकार के डिजाइन्स को उकेरा जाता है।
मधुबनी प्रिंट वाली साड़ी
मधुबनी पेटिंग को जीआई टैग मिला हुआ है। दुनियाभर में इस पेंटिंग की लोकप्रियता है। आज कल मधुबनी पेटिंग वाली साड़ियां लोगों को खूब पसंद आ रही हैं। इन साड़ियों में मिथिला पेंटिंग के विभिन्न प्रकार के डिजाइन्स को बनाया जाता है।

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52 बूटी साड़ी
बिहार के नालंदा स्थिति बिहारशरीफ की 52 बूटी साड़ी देश ही नहीं विदेशों में भी काफी पॉपुलर है। बावन का मतलब 52 और बूटी का मतलब मोटिफ्स है। इसमें 6 गजे के सादे कपड़े पर रेशम के धागे से हाथों से कढ़ाई की जाती है। इन साड़ियों में बौद्ध धर्म के प्रतीक चिन्ह जैसे कमल का फूल, त्रिशूल, धर्म का पहिया और शंख आदि बनाया जाता है। एक साड़ी को बनाने में 10 से 15 दिन का समय लगता है।

छापा प्रिंट

बिहार के मुसलमान परिवार की शादियों में छापा प्रिंट वाले कपड़े महिलाएं पहनती हैं। लकड़ी के बने ब्लॉक प्रिंट से कपड़ों पर छपाई की जाती है। पहले के समय में शादी वाले घर में पूरा परिवार छापा प्रिंट वाले कपड़े पहनता था। हालांकि छापा प्रिंट वाले कपड़े को आप एक बार ही पहन सकते हैं। उस कपड़े को धोने के बाद उसमें दूसरा डिजाइन बनवा सकते हैं।