करोड़ों लोग मर गए पर उनके 'आधार' जिंदा हैं, RTI में सामने आया सच
सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के मुताबिक भारत में 2007 से 2019 के बीच हर साल 83.5 लाख लोगों की मौत हुई, लेकिन इनके आधार नंबर को डिएक्टिवेट करने का प्रतिशत लगभग 10% रहा।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
इंडिया टुडे टीवी द्वारा दायर एक सूचना के अधिकार (RTI) आवेदन से पता चला है कि भारत विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने पिछले 14 सालों में केवल 1.15 करोड़ आधार नंबर डिएक्टिवेट किए हैं, जो देश की मृत्यु दर की तुलना में बहुत कम है। जून 2025 तक, भारत में 142.39 करोड़ आधार धारक हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार, अप्रैल 2025 में भारत की कुल आबादी 146.39 करोड़ थी। वहीं, सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2007 से 2019 के बीच भारत में हर साल औसतन 83.5 लाख लोगों की मृत्यु हुई।
लेकिन इसके बावजूद, UIDAI ने बहुत कम आधार नंबर डिएक्टिवेट किए हैं जो कि कुल अनुमानित मृत्यु का 10 प्रतिशत से भी कम है। अधिकारियों ने माना कि आधार को डिएक्टिवेट करने की प्रक्रिया काफी जटिल है और यह मुख्य रूप से राज्य सरकारों द्वारा जारी मृत्यु प्रमाणपत्रों और परिवार वालों से मिली जानकारी पर निर्भर करती है। UIDAI की स्थापना 2009 में हुई थी और पहला आधार नंबर 29 सितंबर, 2010 को महाराष्ट्र के नंदुरबार के एक निवासी को जारी किया गया था। लेकिन, UIDAI के पास आधार डेटा से बाहर किए गए लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है। इंडिया टुडे के मुताबिक जब उनसे पूछा गया कि क्या वे उन लोगों के बारे में भी कोई सूचना रखते हैं जिनके पास आधार नहीं है, तो UIDAI ने जवाब दिया: ‘ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।’
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बाहरी डेटा पर निर्भरता
UIDAI ने पुष्टि की कि मृत व्यक्ति के आधार को डिएक्टिवेट करने की प्रक्रिया काफी हद तक रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) द्वारा मृत्यु रिकॉर्ड साझा करने पर निर्भर है। UIDAI ने RTI जवाब में कहा, ‘जब RGI मृत्यु रिकॉर्ड और आधार नंबर की जानकारी UIDAI को देता है, तब UIDAI उचित प्रक्रिया के बाद मृतक का आधार नंबर डिएक्टिवेट करता है।’
इस अंतर को कम करने के लिए, अगस्त 2023 में एक आधिकारिक ज्ञापन के माध्यम से संशोधित दिशानिर्देश जारी किए गए, जिसमें सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के मृत्यु के रिकॉर्ड के आधार पर आधार नंबर को डिएक्टिवेट करने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी गई।
इन नियमों के तहत, मृत्यु संबंधी रिकॉर्ड को पहले आधार डेटाबेस से मिलाया जाता है। आधार नंबर को डिएक्टिवेट करने के लिए जरूरी है कि नाम कम से कम 90 प्रतिशत समान हो और लिंग 100 प्रतिशत समान हो।
अगर दोनों शर्तें पूरी होती हैं, तो UIDAI अंतिम जांच करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मृत्यु की तारीख के बाद आधार नंबर का उपयोग बायोमेट्रिक ऑथेन्टिकेशन या किसी अपडेट के लिए नहीं हुआ हो। अगर मृत्यु के बाद कोई गतिविधि नहीं पाई जाती, तो नंबर डिएक्टिवेट कर दिया जाता है।
UIDAI के पास हिसाब नहीं
हालांकि, अगर कोई गतिविधि पाई जाती है, तो आगे की जांच की जाती है। अगर डिएक्टिवेट किए गए आधार नंबर का बाद में ऑथेन्टिकेशन के लिए उपयोग होता है, तो सिस्टम व्यक्ति को सचेत करता है और उसे आधार केंद्र या UIDAI क्षेत्रीय कार्यालय में बायोमेट्रिक सत्यापन के लिए जाने को कहता है ताकि नंबर को फिर से ऐक्टिवेट करने का अनुरोध किया जा सके।
इसके बावजूद, UIDAI साल-दर-साल डिएक्टिवेट किए गए नंबरों का हिसाब नहीं रखता। पिछले पांच सालों के वार्षिक आंकड़ों के बारे में पूछे जाने पर UIDAI ने कहा, ‘ऐसी कोई जानकारी साल-दर-साल नहीं रखी जाती। हालांकि, आधार कार्यक्रम शुरू होने से लेकर 31.12.2024 तक, RGI से प्राप्त मृत्यु रिकॉर्ड के आधार पर कुल 1,14,69,869 आधार नंबर डिएक्टिवेट किए गए हैं।’
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किस तरह की हैं समस्याएं?
भारत के मृत्यु संबंधी आंकड़ों और आधार को डिएक्टिवेट करने के बीच का अंतर कई समस्याएं पैदा करता है। हाल ही में बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल समरी रिवीज़न (SSR) के दौरान यह बात सामने आई।
सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों—किशनगंज (126%), कटिहार और अररिया (123% प्रत्येक), पूर्णिया (121%), और शेखपुरा (118%)—में आधार सेचुरेशन लेवल 100% की सीमा को पार कर गया यानी कि इन जिलों में अनुमानित जनसंख्या से ज्यादा आधार बने हुए हैं। यह सहज ही सवालिया निशान खड़े करता है।
आधार सेचुरेशन लेवल उस क्षेत्र की अनुमानित आबादी का प्रतिशत दर्शाती है, जिसके पास आधार नंबर है। 100% से अधिक का आंकड़ा डेटा के दोहराव, आबादी के अनुमान में गलती, माइग्रेशन या मृत व्यक्तियों को डेटाबेस से हटाने में विफलता को दर्शाता है।
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UIDAI के RTI जवाब में यह स्पष्ट किया गया कि ऐसा क्यों होता है: जब मृत व्यक्तियों के आधार नंबर तुरंत डिएक्टिवेट नहीं किए जाते, तो वे उस क्षेत्र के सेचुरेशन लेवल को बढ़ा देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी आधार धारकों की संख्या वास्तविक निवासियों से अधिक हो जाती है।
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