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पाकिस्तानी चिढ़ गए और भारत लौटते ही हो गई अब्दुल गनी लोन की हत्या

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में सक्रिय सज्जाद लोन अक्सर अपने परिवार पर हुए कथित अत्याचार के बारे में बताते हुए रो पड़ते हैं। उनके पिता को भी एक सभा के दौरान सरेआम गोलियों से भून दिया गया था।

Abdul ghani lone and sajjad lone

अब्दुल गनी लोन और सज्जाद लोन, Image Credit: Social Media

'मैंने उनके बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माने। वह कहते थे कि मैं पाकिस्तान से बंदूक लाऊंगा।' जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला ने जिस शख्स के बारे में ये शब्द कहे उसने अपने बेटे की शादी पाकिस्तान में करवाई थी और कश्मीर में अलगाववादियों के संगठनों को साथ ला रहा था। उसी शख्स की एक दिन सरेआम हत्या कर दी जाती है। अब तक कारोबार में व्यस्त बेटा कसम खा लेता है कि वह अलगाववादी ही रहेगा। समय बदलता है और वही नेता मुख्य धारा की राजनीति में आ जाता है। वह मुख्य धारा में इस कदर आ जाता है कि धुर दक्षिणपंथी और 'एक विधान, एक प्रधान और एक संविधान' का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ बनी सरकार में मंत्री बनता है। यह करीबी इतनी बढ़ती है कि उसी शख्स के बेटे के मुख्यमंत्री बनने तक की चर्चाएं शुरू हो जाती है। हालांकि, यह ख्वाब पूरा नहीं होता। खैर, ख्वाब तो अब्दुल गनी लोन का भी नहीं पूरा हुआ जिनकी हत्या कश्मीर में सक्रिय उग्रवादियों ने कर डाली थी।

 

यह कहानी है कभी एक प्रतिष्ठित वकील और कांग्रेस के विधायक रहे अब्दुल गनी लोन की। यह कहानी उस शख्स की भी है जिसने अलग विचार रखते हुए भी शांति का रास्ता चुना और यही शांति भारी पड़ गई। कभी बंदूकों की बातें करने वाले उस शख्स पर बंदूकें ही भारी पड़ गईं और उसे गोलियों से छलनी कर दिया गया। यह वही शख्स था जिसने पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ को कहा था- 'कश्मीर की चिंता मत कीजिए, पाकिस्तान को देखिए, आपके कट्टरपंथी उसी हाथ को काट लेंगे जो उन्हें खिलाते हैं।'

कैसे शुरू हुई अब्दुल गनी लोन की कहानी

 

साल 1932 में जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के डार हर्र गांव में अब्दुल गनी लोन का जन्म हुआ। परिवार भविष्य की सोच रखता था तो बेटे को पढ़ाया लिखाया गया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से साल 1957 में LLB की पढ़ाई पूरी हुई और अब्दुल गनी लोन ने वकालत शुरू कर दी। जम्मू-कश्मीर में सक्रिय कांग्रेस ने अब्दुल गनी लोन को आकर्षित किया और वह राजनीति में उतर गए। साल 1967 में कांग्रेस ने टिकट दिया और वह जम्मू-कश्मीर के विधायक भी बन गए।

 

हालांकि, सबकुछ इतना आसान नहीं हुआ। साल 1949 में जब वह 9वीं क्लास में पढ़ते थे तब उन्हें गिरफ्तार किया गया था। दरअसल, उन पर आरोप था कि वह स्थानीय स्कूल टीचर के घर पर हो रही साजिश में शामिल थे। यह साजिश हथियार उठाने को लेकर हो रही थी। इसके बारे में खुद अब्दुल गनी लोन ने बताया था, 'मैं सीधे तौर पर इसमें शआमिल नहीं था। जब पुलिस आई तो घर के मालिक को गिरफ्तार किया और मुझे भी पकड़ ले गई। दो महीने बाद मुझे छोड़ दिया।' साल 1953 में जब शेख अब्दुल्ला को पद से हटाकर जेल भेजा गया तो अब्दुल गनी लोन भी जेल गए। 6 महीने की सजा हुई और 5 रुपये का जुर्माना लगा। 

 

साल 1969 में कांग्रेस की सरकार थी। उस साल गनी लोन को सिंचाई और ऊर्जा विभाग में उपमंत्री बनाया गया। मीर कासिम जब सीएम बने तो उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में राज्यमंत्री का दर्जा मिला। हालांकि, साल 1973 में अब्दुल गनी लोन ने खुद ही मंत्री पद छोड़ दिया। साल 1976 में इंदिरा गांधी ने लोन को कांग्रेस से निकाल दिया। 1977 में अब्दुल गनी लोन ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस बारे में खुद अब्दुल गनी लोन ने बताया था कि वह निर्दलीय ही चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन लोगों के कहने पर जनता पार्टी के टिकट पर लड़े। जनता पार्टी के दो ही नेता चुनाव जीते जिसमें से एक अब्दुल गनी लोन थे। हालांकि, लोन ने एक ही साल में इस्तीफा दिया और साल 1978 में अपनी पार्टी पीपल्स कॉन्फ्रेंस का गठन किया।

हुर्रियत क्यों बनाई?

 

1980 आते-आते अब्दुल गनी लोन अलगाववादी राह पकड़ चुके थे। साल 1990 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और रिहाई मिली दो साल के बाद। जेल से बाहर आने के बाद अब्दुल गनी लोन ने फैसला कर लिया था कि अब सभी अलगाववादी संगठनों को साथ लाना है। यहीं से ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) की नींव पड़ी। साल 1993 में इस APHC की शुरुआत के बाद लोन की मौत तक यही उनकी पहचान रही। लोन पर आरोप लगे कि वह आईएसआई और पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रहे है। वहीं, हिजबुल मुजाहिदीन को शक था कि अब्दुल गनी लोन भारत सरकार के मंत्रियों को संपर्क में हैं और शायद यही वजह उनकी हत्या की वजह भी बनी।

 

अब्दुल गनी लोन के बारे में पूर्व RAW चीफ ए एस दौलत अपनी किताब 'कश्मीर: द वाजपेयी इयर्स' में लिखते हैं, 'अब्दुल गनी लोन ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस बनाने का फैसला किया था। हुर्रियत का मतलब आजादी है। उन्होंने इसके बारे में ISI से भी बात की। 1992 में जेल से निकलते ही वह सऊदी अरब गए जहां पाकिस्तान के ब्रिगेडियर सलीम से मुलाकात की। हालांकि, यहां बात बनी नहीं क्योंकि लोन ने कहा कि उन्हें वर्दीधारी लोगों से बात करने की आदत नहीं है। इस पर सलीम ने जवाब दिया कि अब वर्दी वालों से मिलने की आदत डाल लो क्योंकि फैसले हम ही लेते हैं।'

जब गिलानी से टकराए अब्दुल गनी लोन

 

APHC की एक समस्या यह थी कि उसमें कई तरह के लोग और संगठन थे। कुछ कश्मीर की आजादी चाहते थे, कुछ पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे और कुछ इसे वैश्विक खिलाफत में शामिल करना चाहते थे। अब्दुल गनी लोन सबसे कहते, 'हमें भारतीयों को समझाना होगा कि कश्मीर विवादित क्षेत्र है और इसका भविष्य तय होना बाकी है। इसके बाद ही यह तय हो पाएगा कि मुद्दा कैसे हल होगा।' उग्रवाद के विरोधी अब्दुल गनी लोन उस समय सैयद अली शाह गिलानी के विरोध में खड़े हो गए जब गिलानी ने लश्कर के लोगों को कहा कि ये 'मेहमान' हैं। इस पर अब्दुल गनी लोन कहते, 'ये लोग हमारे मेहमान नहीं हो सकते, जो यहां आकर कश्मीरियों को ही मार रहे हैं।'

 

अब्दुल गनी लोन ही वह शख्स थे जो हुर्रियत को मनाते कि चुनाव में हिस्सा लेना जरूरी है। हालांकि, हुर्रियत में शामिल बाकी दलों का मानना था कि इससे तो वे भारत की सत्ता को स्वीकार कर लेंगे।

 

18 अप्रैल 2002 को अब्दुल गनी लोन अपनी बहू के साथ दुबई गए। शायद यही दौरा उनकी हत्या की वजहों में से एक बना। दुबई में उनकी मुलाकात पीओके के सरदार अब्दुल कयूम खान, फिर वॉशिंगटन डीसी में ISI के कुछ अधिकारियों से भी मुलाकात की। उन्होंने अब्दुल कयूम से कहा कि वह पाकिस्तान सरकार से कहें कि कश्मीर से जिहादी ग्रुप के लोगों के बुला ले। परिवार रोक रहा था लेकिन उस वक्त लोन ने ISI चीफ लेफ्टिनेंट जनरल एहसानुल हक से भी मुलाकात की। पाकिस्तानियों को इन मुलाकातों के बाद लगा कि लोन अब भारत के करीब चले गए हैं। दुबई से लंदन, लंदन से वॉशिंगटन डीसी, फिर कुआलालांपुर पहुंचे लोन को आगे सिंगापुर जाना था। 

अटल का दौरा और अब्दुल गनी लोन की हत्या

 

अचानक उन्हें मीरवाइज उमर फारुख की ओर से संदेश मिला कि लोन अपनी यात्रा रोक दें और मीरवाइज मौलवी फारुख की हत्या की 12वीं बरसी में शामिल हों। लोन को संदेशा मिला और वह 18 मई को दिल्ली पहुंच गए। 20 मई को श्रीनगर। 22 मई को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी कश्मीर आने वाले थे। श्रीनगर शहर के ईदगाह में मौलवी उमर फारुख की बरसी आयोजित की गई थी। तमाम दिग्गज जुटे थे। इसमें खुद मीरवाउज उमर फारुख, मौलवी अब्बास अंसारी और प्रोफेसर अब्दुल गनी भट भी शामिल थे। लोन ने भी दोपहर की नमाज घर पर पढ़ी और ईदगाह पहुंच गए। कई नेताओं ने भाषण दिया। हालांकि, यह चौंकाने वाला था कि उस दिन अब्दुल गनी लोन ने कोई भाषण नहीं दिया।

 

आखिर में जब मीरवाइज उमर फारुख का भाषण खत्म हुआ तो आवाज आई 'ग्रेनेड-ग्रेनेड'। भगदड़ मची, नेता मंच से उतरने लगे। अचानक तड़ातड़ गोलियां चलीं। लोग भाग रहे थे और अब्दुल गनी लोन वहीं ढेर होकर गिर गए थे। उनके साथ मौजूदा दो सुरक्षाकर्मियों को भी गोली मारी गई। उनके बेटे सज्जाद लोन उस वक्त आईएसआई को इसका जिम्मेदार बताया। हालांकि, सज्जाद की मां ने उनसे कहा कि वह अपना बयान बदल दें। अब्दुल गनी लोन का मानना था कि भारत ताकत के बलबूते कश्मीर को नहीं ले सकता है। हालांकि, वह बातचीत के पक्षधर थे।

 

शुरुआत में अलगाववादियों के पक्ष में बात करने वाले सज्जाद लोन ने समय के साथ अपना विचार बदला। 2004 में सज्जाद ने अपने भाई बिलाल गनी लोन से अलग होकर पीपल्स कॉन्फ्रेंस का नया गुट बना लिया। 2008 में जब अमरनाथ जमीन विवाद में 60 लोग मारे गए तो सज्जाद लोन ने अलगाववादियों से कहा कि वे अपनी रणनीति में बदलाव करे। 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव हार चुके सज्जाद लोन ने 2014 में हंदवाड़ा से विधानसभा का चुनाव जीता और बीजेपी-पीडीपी की सरकार में मंत्री भी बने।

 

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