वोडाफोन आइडिया कंपनी को बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को कंपनी के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) बकाया को दोबारा जांचने की इजाजत दे दी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सरकार की नीति का हिस्सा है। यह फैसला कंपनी के 20 करोड़ ग्राहकों के हित को ध्यान में रखकर लिया गया है।
चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने यह आदेश सुनाया। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सरकार ने कंपनी में 49% हिस्सेदारी के लिए पैसा लगाया है। इसका एक बड़ा कारण 20 करोड़ उपभोक्ता हैं। अगर कंपनी परेशानी में पड़ी तो ग्राहकों को नुकसान होगा। डुप्लिकेट बिलिंग, ज्यादा बिल जैसी शिकायतें आ सकती हैं। मेहता ने यही सब कोर्ट को बताया।
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खास परिस्थिति में दी जा रही राहत
कोर्ट ने साफ किया कि यह राहत सिर्फ खास परिस्थिति में दी जा रही है। सरकार ने कंपनी में पैसा डाला है और 20 करोड़ ग्राहकों का ध्यान रखा है। इसलिए केंद्र को दोबारा जांच करने से नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने रिट पेटीशन को खत्म कर दिया। लेकिन यह फैसला हर मामले के लिए नहीं है, सिर्फ इस खास स्थिति के लिए है।
इस फैसले से वोडाफोन आइडिया को नई उम्मीद मिली है। कंपनी लंबे समय से आर्थिक तंगी झेल रही है। वह ऑपरेशन चलाने और नया निवेश लाने के लिए राहत चाहती थी। अब सरकार AGR बकाया को दोबारा गिन सकती है। इससे कंपनी को सांस लेने की जगह मिलेगी।
शेयर में जोरदार उछाल
फैसले के बाद कंपनी के शेयर में जोरदार उछाल आया। सुबह 2% से ज्यादा नीचे खुले शेयर 11.4% तक चढ़ गए। एनएसई पर 52 हफ्ते का नया उच्चतम स्तर 10.52 रुपये पहुंच गया। सुबह 11:35 बजे तक शेयर 7% ऊपर कारोबार कर रहे थे। शुरुआती नुकसान पूरी तरह मिट गया।
AGR बकाया का मामला काफी पुराना है। 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की याचिका पर सुनवाई टाल दी थी। कंपनी ने ब्याज, पेनल्टी और पेनल्टी पर ब्याज माफ करने की मांग की थी। कंपनी ने 2016-17 के लिए टेलीकॉम विभाग (DoT) की 5,606 करोड़ रुपये की नई मांग को चुनौती दी थी।
समाधान निकालने की कोशिश
पहले केंद्र ने कोर्ट को बताया था कि समाधान निकालने की कोशिश चल रही है। सरकार के पास कंपनी में करीब 50% हिस्सेदारी है। इसलिए कंपनी के बचने में सरकार का सीधा हित है। वोडाफोन आइडिया ने DoT से 2016-17 तक के सभी AGR बकाया को दोबारा जांचने को कहा था। इसके लिए 3 फरवरी 2020 के डिडक्शन वेरिफिकेशन गाइडलाइंस का पालन करने को कहा गया।
इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने 2021 के अपने फैसले की समीक्षा से इनकार कर दिया था। 2021 में कोर्ट ने भारती एयटेल और वोडाफोन आइडिया समेत कंपनियों की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। कंपनियां AGR कैलकुलेशन में गणितीय गलतियां और डुप्लिकेट एंट्री सुधारना चाहती थीं। लेकिन कोर्ट ने मना कर दिया। 23 जुलाई 2021 को कोर्ट ने फिर कहा कि DoT द्वारा तय बकाया अंतिम है। इसे दोबारा नहीं गिना जा सकता। कोई नया विवाद या पुनर्मूल्यांकन नहीं होगा।
2019 से शुरू हुई विवाद
AGR विवाद अक्टूबर 2019 से शुरू हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने DoT की AGR परिभाषा को सही ठहराया। इसमें टेलीकॉम के साथ-साथ गैर-टेलीकॉम आय भी शामिल की गई। जैसे ब्याज, संपत्ति बिक्री आदि। इससे लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम चार्ज निकाले जाते हैं।
सितंबर 2020 में कोर्ट ने कंपनियों को 10 साल में बकाया चुकाने की मोहलत दी। कुल बकाया 93,520 करोड़ रुपये था। 31 मार्च 2021 तक 10% देना था। बाकी हर साल 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2031 तक किस्तों में। कोर्ट ने कहा कि अब कोई नया विवाद नहीं चलेगा।
20 साल की मांगी थी मोहलत
DoT ने पहले 20 साल की मोहलत मांगी थी। लेकिन कोर्ट ने 10 साल दिए। 2021 में उद्योग के दबाव पर सरकार ने AGR की परिभाषा बदल दी। अब गैर-टेलीकॉम आय बाहर रखी जाती है। इससे कंपनियों का बोझ काफी कम हुआ। यह सेक्टर की रिकवरी के लिए बड़ा सुधार माना जाता है। लेकिन पुराने बकाये पर यह लागू नहीं हुआ। पुराना विवाद सालों से कोर्ट में चल रहा था।
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कुल मिलाकर यह फैसला वोडाफोन आइडिया के लिए जीवनरेखा जैसा है। कंपनी पर AGR का भारी बोझ था। सरकार की हिस्सेदारी और ग्राहकों के हित ने कोर्ट को नीति का रास्ता खोलने पर मजबूर किया। अब दोबारा गणना से बकाया कम हो सकता है। इससे कंपनी निवेश ला सकेगी और सेवाएं बेहतर रख सकेगी।