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सोनभद्र में यूरेनियम मिलने की उम्मीद, भारत का क्या फायदा होगा?

भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरेनियम की भारी जरूरत है। इसी कड़ी में यूपी के सोनभद्र में 785 टन यूरेनियम ऑक्साइड मिलने के साक्ष्य मिले हैं। 

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प्रतीकात्मक तस्वीर, AI Generated Image

परमाणु ऊर्जा की ओर देख रहे भारत को यूरेनियम की बहुत ज्यादा जरूरत है। यूरेनियम परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है। भारत का लक्ष्य है कि देश में 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जा सके। सीमित घरेलू भंडार होने के कारण हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है इसलिए भारत में नई खदानों की खोज हमेशा चलती रहती है। इसी खोज के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में यूरेनियम होने के साक्ष्य मिले हैं। यहां म्योरपुर ब्लॉक के नकटू में 785 टन यूरेनियम ऑक्साइड होने की संभावना जताई जा रही है। हमें समझने की जरूरत है कि देश में यूरेनियम के भंडार मिलने से भारत को क्या फायदा होगा।  

 

ऐसा नहीं है कि भारत यूरेनियम के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर है। वर्तमान में भारत में लगभग 8-10 सक्रिय यूरेनियम खदानें हैं। इनका संचालन यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL) करता है। इसमें सबसे पुरानी खदान झारखंड के जादूगोड़ा में है। राज्य में कुल 6-7 खदानें हैं। इनमें लगभग 27,156 टन यूरेनियम है। आंध्र प्रदेश के तुम्मालापल्ली में भी इसके भंडार हैं। यहां 85,000 से 1.5 लाख टन अनुमानित यूरेनियम भंडार है। मेघालय के डोमियासियाट और वाहकाजी में भी भंडार होने की बात कही गई है लेकिन स्थानीय विरोध के कारण वहां खनन का काम शुरू नहीं हो पाया। 

 

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यूरेनियम का आयात

भारत की यूरेनियम निर्भरता मुख्य रूप से आयात पर निर्भर है क्योंकि देश के घरेलू भंडार सीमित हैं। वर्तमान में (2025 तक) भारत अपनी परमाणु ऊर्जा जरूरतों के लिए यूरेनियम का बड़ा हिस्सा कई देशों से आयात करता है:

 

  • कजाकिस्तान दुनिया में यूरेनियम का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश है। भारत ने 2015 में 5,000 टन यूरेनियम के लिए करार किया था।
  • रूस, लंबे समय से पूर्ति करता आ रहा है। भारत को रूस से 2009 से 2,058 टन से अधिक का यूरेनियम मिल चुका है।
  • कनाडा से 2015 से 3,200 टन के करार के तहत आयात होता है, जिसमें 2016-17 में 1,234 टन शामिल है।
  • उज्बेकिस्तान से 2014-2018 के बीच 2,000 टन और उसके बाद लंबे समय के लिए करार।
  • फ्रांस (2009 में 300 टन), नामीबिया, मंगोलिया, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका से भी समझौते हुए हैं।

 

कुल मिलाकर, 2013 में भारत अपनी यूरेनियम आवश्यकताओं का लगभग 40% आयात करता था। अब यह बढ़कर काफी अधिक हो गया है क्योंकि हम तेजी से परमाणु ऊर्जा क्षमता का विस्तार कर रहे हैं। 2025-2033 के बीच कम से कम 9,000 मीट्रिक टन का आयात किए जाने की उम्मीद है।

 

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देश में यूरेनियम खदान मिलने के फायदे

  • भारत के पास अनुमानित 76,000 टन यूरेनियम भंडार है, जो 10,000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा के लिए 30 सालों के लिए पर्याप्त हो सकता है। 
  • आयात निर्भरता में कमी: विदेशी से आपूर्ति पर निर्भरता घटेगी, जिससे खर्च में बचत और आपूर्ति शृंखला की स्थिरता बढ़ेगी। 
  • ऊर्जा सुरक्षा में मजबूती: देश में खदान मिलने से परमाणु ऊर्जा विस्तार (100 गीगावाट का लक्ष्य) तेज होगा और नेशनल ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी।
  • नई खदानों (जैसे आंध्र प्रदेश के तुम्मलापल्ली, झारखंड, मेघालय आदि) से जीडीपी में योगदान बढ़ेगा। निजी निवेश भी बढ़ने की उम्मीद है। 2025 से निजी कंपनियों को माइनिंग का आदेश दिया जाएगा जिससे उत्पादन और बढ़ेगा। 

 

भारत में 22 परमाणु रिएक्टर ऑपरेशन में हैं और 10 अन्य निर्माणाधीन हैं। इनके लिए हर साल हजारों टन यूरेनियम की जरूरत होती है। आयात पर निर्भरता (कजाकिस्तान, रूस, कनाडा आदि से) लागत और भू-राजनीतिक जोखिम बढ़ जाती है, जिसके कारण घरेलू उत्पादन और नए खनन पर जोर है। प्राइवेट सेक्टर को खनन में शामिल करने की हालिया नीति (2025) से भविष्य में आपूर्ति बढ़ सकती है।

 

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