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डेढ़ करोड़ यूनिट ब्लड कलेक्शन, फिर भी लाखों लोग खून न मिलने से मर रहे

भारत ने 2024-25 में पहली बार 1.46 करोड़ यूनिट ब्लड कलेक्ट कर अपनी सालाना जरूरतें पूरी करने के करीब सफलता पाई है। यह उपलब्धि 70% स्वैच्छिक रक्तदान की वजह से हुआ।

Representational Image । Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में भारत में कुल 1.46 करोड़ यूनिट ब्लड एकत्र किया गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में करीब 15% अधिक है। देश की वार्षिक आवश्यकता भी लगभग इतनी ही है। यानी भारत ने पहली बार अपनी कुल ब्लड की जरूरतें पूरी करने के करीब-करीब सफलता हासिल की है। इसमें से लगभग 70% योगदान स्वैच्छिक रक्तदान का रहा है, जो समाज में जागरूकता का सकारात्मक संकेत देता है।

 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि 2023 में 1,26,95,363 यूनिट ब्लड एकत्र किया गया था। उन्होंने बताया कि देश की खून की सालाना जरूरत करीब 1.46 करोड़ यूनिट है। पटेल ने बताया कि कुल ब्लड कलेक्शन में से लगभग 70 प्रतिशत योगदान स्वैच्छिक रक्तदान का रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार ने सुरक्षित रक्तदान और संक्रमण-मुक्त ब्लड उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कई कदम उठाए हैं। इसके तहत विभिन्न सरकारी विभागों, इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी, ब्लड डोनेट करने वाली संस्थाओं, पेशेवर संस्थाओं और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर जागरूकता बढ़ाने और लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने की दिशा में काम किया जा रहा है।

 

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मंत्री ने बताया कि इस सिलसिले में रक्तदान शिविरों का आयोजन, स्वैच्छिक रक्तदान दिवस पर विशेष कार्यक्रमों के साथ ही विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के युवाओं को प्रोत्साहित किया जाता है।सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए भी विशेष प्रावधान किया है, जिसके तहत रक्तदान के लिए उन्हें साल में चार बार विशेष आकस्मिक अवकाश (कैज़ुअल लीव) लेने की सुविधा दी गई है।

हर साल लाखों मौत

आंकड़ों के मुताबिक हर दो सेकंड में देश में किसी न किसी मरीज को ब्लड की जरूरत होती है। सड़क हादसे, बड़ी सर्जरी, कैंसर के इलाज, गर्भवती महिलाओं में प्रसव के दौरान खून बहने की परिस्थितियों में ब्लड की उपलब्धता ही मरीज की जिंदगी और मौत के बीच का फर्क तय करती है। लेकिन दुख की बात है कि समय पर ब्लड न मिलने की वजह से भारत में हर दिन औसतन 12,000 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। यानी कि साल के लगभग 43,8000 लोगों की मौत खून न मिलने की वजह से हो जाती है।

 

फिर भी चुनौती खत्म नहीं हुई है। सुरक्षित और संक्रमण-मुक्त ब्लड की उपलब्धता, सही समय पर ब्लड का मिलना, और दुर्लभ ब्लड समूहों का संग्रह—ये सभी अब भी गंभीर मुद्दे हैं। यही कारण है कि रक्तदान को राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा माना जाता है।

क्यों महत्वपूर्ण है रक्तदान?

सुरक्षित और समय पर ब्लड की उपलब्धता का सीधा संबंध जीवन बचाने से है। एक अकेली रक्तदान की यूनिट से तीन लोगों की जान बच सकती है, क्योंकि इसे विभिन्न कंपोनेंट – रेड ब्लड सेल्स, प्लाज्मा, प्लेटलेट्स – में विभाजित करके अलग-अलग मरीजों को दिया जा सकता है।

 

भारत में हर साल 10 लाख से अधिक नए कैंसर मरीज सामने आते हैं, जिनमें से कई को कीमोथेरेपी के दौरान नियमित रूप से ब्लड की जरूरत पड़ती है। एक सड़क हादसे के शिकार व्यक्ति को कभी-कभी 100 यूनिट तक ब्लड की आवश्यकता हो सकती है।

सुरक्षा जरूरी

रक्तदान के साथ सबसे बड़ी चिंता उसकी सुरक्षा है। भारत में हर रक्तदान पर हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, एचआईवी, मलेरिया और सिफलिस की स्क्रीनिंग अनिवार्य है। लेकिन वर्तमान में ज्यादातर जांच सीरोलॉजिकल तकनीक पर आधारित है, जिससे संक्रमण की शुरुआती अवस्था (window period) में मौजूद वायरस पकड़ में नहीं आ पाते।

 

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इस कमी को दूर करने के लिए विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि पूरे देश में Individual Donor Nucleic Acid Testing (ID-NAT) को लागू किया जाए तो हर साल करीब 90,000 नई संक्रमणों को रोका जा सकता है। यह तकनीक संक्रमण को शुरुआती चरण में पहचानने में सक्षम है।

 

भारत ने 2024-25 में पहली बार अपनी ब्लड की सालाना जरूरतों को पूरा करने के करीब-करीब सफलता पाई है। यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन वास्तविक चुनौती है ब्लड की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करना, ताकि किसी भी मरीज को संक्रमण का खतरा न हो।

 

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