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आयोडीन खाकर हो सकता है रेडियो ऐक्टिव रेडिएशन से बचाव? कब, कितना खाएं?

इस आर्टिकिल में खबरगांव आपको बता रहा है कि क्या आयोडीन रेडियो ऐक्टिव रेडिएशन से बचाने में मददगार है और अगर है तो कितना है?

Representational Image । Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: wikimedia commons

इजरायल और ईरान के बीच युद्ध जारी है और दौरान लगातार ईरान द्वारा परमाणु हथियार बनाने की कोशिश की खबरें भी आ रही है। इजरायल भी लगातार इसकी कोशिश में है कि किसी भी तरह से ईरान को न्यूक्लियर हथियार विकसित न करने दिया जाए। इसी क्रम में अमेरिका ने भी इजरायल-ईरान के युद्ध में कूदते हुए ईरान के नतांज, फोर्डो और इस्फहान पर हमला कर दिया जिससे उसके परमाणु कार्यक्रम को हर तरह से रोका जा सके।

 

इस दौरान इस बात पर लगातार चर्चा होने लगी कि अगर हमलों की वजह से न्यूक्लियर रेडिएशन लीक हो गया तो क्या होगा? चाहे वह 1986 का चेर्नोबिल हादसा हो या 2011 का फुकुशिमा आपदा, दोनों में रेडियो ऐक्टिव रेडिएशन का रिसाव हुआ, जो लंबे समय तक लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करता रहा। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि अगर कभी न्यूक्लियर आपदा का सामना करना पड़ जाए तो बचने के क्या उपाय हों और किस प्रकार पोटेशियम आयोडाइड का उपयोग किया जाए।

 

इस बारे में आईएईए के प्रमुख ने भी जिक्र किया और कहा कि यदि रेडिएशन का खतरा होता है तो लोगों को थोड़ा बहुत आयोडीन का सेवन करना चाहिए। खबरगांव इसी बात की पड़ताल करेगा कि क्या ऐसी स्थितियों में आयोडीन का सेवन फायदा करता है।

 

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कब करें प्रयोग?

पोटेशियम आयोडाइड या KI एक साधारण सा रासायनिक यौगिक है, जो न्यूक्लियर आपदाओं में विशेष परिस्थितियों में लोगों को न्यूक्लियर रेडिएशन से बचाने में सहायक हो सकता है। यह तब उपयोगी है जब रेडियो ऐक्टिव आयोडीन वातावरण में फैलने का खतरा हो। अगर यह तत्व शरीर में प्रवेश कर जाए तो थायरॉयड ग्लैंड में जम सकता है और कैंसर या अन्य गंभीर रोगों का कारण बन सकता है।

 

पोटेशियम आयोडाइड की गोलियां थायरॉयड में साधारण आयोडीन भर देती हैं, जिससे रेडियो ऐक्टिव आयोडीन एब्ज़ॉर्ब नहीं हो पाता। यह शरीर को उस विशेष रेडियो ऐक्टिव तत्व से बचाने में सहायक है, लेकिन यह पूरी बॉडी या सभी प्रकार के रेडिएशन से बचाने का साधन नहीं है।

 

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक आयोडीन थायराइड ब्लॉकिंग (ITB) के रूप में जाना जाने वाला यह सुरक्षात्मक उपाय रेडियो ऐक्टिव आयोडीन के संपर्क में आने से पहले या शुरू होने पर पोटेशियम आयोडाइड की गोलियां देना शामिल है। जब उचित डोज और रेडियो ऐक्टिव आयोडीन के संपर्क में आने के आसपास सही समय अंतराल के भीतर लिया जाता है।

 

कोई भी आयोडीन जो थायराइड हार्मोन (या तो गैर-रेडियो ऐक्टिव या रेडियो ऐक्टिव) के उत्पादन के लिए थायराइड की ज़रूरतों से अधिक है, कुछ दिनों के भीतर पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है।

पूरी तरह बचाव नहीं करता

हालांकि, यह पूरी तरह से बचाव नहीं करता है। यह केवल थायराइड ग्रंथि को बचाता है, और वह भी सिर्फ तभी जब रेडियोएक्टिव आयोडीन के अंदरूनी संपर्क का खतरा हो (जैसे कि न्यूक्लियर पावर प्लांट में हादसा)।

 

ध्यान दें कि KI न्यूक्लियर हादसे में पर्यावरण में फैलने वाले अन्य रेडियोएक्टिव पदार्थों से सुरक्षा नहीं देता, बाहरी रेडिएशन से सुरक्षा नहीं देता, जैसे कि जमीन, सतहों या खाने पर जमा रेडियोएक्टिविटी से और इसके अलावा रेडियोएक्टिव आयोडीन को शरीर में प्रवेश करने से नहीं रोकता, लेकिन इसे थायराइड में जमा होने से रोकता है।

कब और किस मात्रा में लें?

पोटेशियम आयोडाइड का उपयोग केवल तब किया जाना चाहिए जब आप रेडियो ऐक्टिव आयोडीन के संपर्क में हों या सरकारी आपदा प्रबंधन विभाग इसे लेने का निर्देश दें, बेवजह नहीं लेना चाहिए। वयस्क और किशोर (12 साल या उससे अधिक) लोगों को 130 मिलीग्राम KI, 3–12 साल के बच्चों को 65 मिलीग्राम KI ले सकते हैं।


थायराइड की सुरक्षा के लिए इसकी प्रभावशीलता सही समय पर लेने पर निर्भर करती है। स्थिर आयोडीन लेने का सबसे अच्छा समय रेडिएशन के संपर्क में आने से 24 घंटे पहले से लेकर संपर्क के 2 घंटे बाद तक है। संपर्क के 8 घंटे बाद तक KI लेना भी ठीक हो सकता है, लेकिन 24 घंटे बाद लेने से कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी।

 

डब्ल्यूएचओ के अनुसार अगर रेडिएशन का खतरा लंबे समय तक रहे, दूषित भोजन या पानी का सेवन unavoidable हो, और निकासी संभव न हो, तो बार-बार स्थिर आयोडीन लेना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में नवजात शिशुओं (1 महीने से कम उम्र), गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं, और 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को बार-बार KI की खुराक नहीं देनी चाहिए। इन समूहों के लिए अन्य सुरक्षा उपायों पर केस-बाय-केस आधार पर और चिकित्सीय सलाह के तहत विचार करना चाहिए।

 

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चर्नोबिल हादसा (1986):

यूक्रेन में स्थित चर्नोबिल न्यूक्लियर रिएक्टर में हुए विस्फोट से करीब 5,000 से 7,000 पेटाबेकरेल रेडियो ऐक्टिव तत्व वातावरण में फैल गए थे, जिसके बाद लगभग 3.5 लाख लोगों को स्थानांतरित किया गया। हालांकि, उसके बावजूद रिपोर्ट्स के अनुसार, थायरॉयड कैंसर के 6,000 से अधिक मामले सामने आए, खासकर बच्चों में।

फुकुशिमा आपदा (2011)

जापान में 9.0 तीव्रता के भूकम्प और सूनामी के बाद फुकुशिमा दाइचि न्यूक्लियर प्लांट में रिसाव हुआ, जिसमें लगभग 770 पेटाबेकरेल रेडियो ऐक्टिव तत्व निकले। इसके बाद लगभग 1,60,000 लोगों को विस्थापित किया गया। प्रभावित लोगों को बाद में कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा।

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