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चरखी दादरी प्लेन क्रैश: जब दिल्ली के आसमान में ही मर गए थे सैकड़ों लोग

दिल्ली की हवा में उड़ रहे दो विमान अचानक आमने-सामने आ जाते हैं और बचाने की कोशिश करते-करते देर हो जाती है। यह हादसा देश के इतिहास के सबसे वीभत्स हादसों में से एक है।

Plane Crash Site of Charkhi Dadri

चरखी दादरी विमान हादसा, Image Credit: Bureau of Aircraft Accidents Archives

अस्तग़्फ़िरुल्लाह, अशहद, इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन- दिल्ली के आसमान में हवाई जहाज उड़ा रहे चालक दल में से एक शख्स ने अचानक ये बातें कहीं। इसका मतलब था- हम अल्लाह से हैं और अल्लाह के पास ही जाना है। मैं अल्लाह से माफी मांगता हूं। ऐसा कहने की वजह थी कि इस विमान के चालक दल को अपनी मौत सामने दिखाई दे रही थी। हवा में उड़ते इस हवाई जहाज के ठीक सामने एक दूसरा हवाई जहाज था और दोनों आपस में टकराने वाले थे। चंद पल और बीते और तमाम कोशिशों के बावजूद ये दोनों प्लेन हवा में ही टकरा गए। आसमान में उड़ रहे एक तीसरे जहाज के पायलट ने देखा कि एक विशालकाय आग का गोला तेजी से बड़ा हुआ और फिर दो टुकड़ों में टूटकर नीचे गिरने लगा। हैरान-परेशान उस पायलट ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से संपर्क कर किया। ATC ने तुरंत उन हवाई जहाजों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन चंद मिनट पहले तक जवाब देने वाले हवाई जहाज की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।

 

देर हो चुकी थी। कुछ गलतियां हुई थीं और इनका नतीजा हरियाणा के चरखी दादरी के पास मलबे के रूप में नीचे गिर रहा था। घरों में बैठे लोग तेज शोर सुनकर हिल गए थे। वे बाहर भागे तो दूर आग जलती दिखाई दे रही थी। आसपास के खेतों में लोगों के पासपोर्ट, जूते और सामान बिखरे पड़े थे। हवाई जहाज में सवार लोगों के हाथ-पैर और शरीर के दूसरे अंग सड़क और खेतों में बिखर गए थे। पेड़ों पर शरीर के टुकड़े फंसे हुए थे और चारों तरफ एक सन्नाटा पसर गया था। उधर ATC को कुछ पता ही नहीं चल पा रहा था कि आखिर ये दोनों प्लेन अचानक गायब कहां हो गए। साल 1996 के नवंबर महीने की यह 12 तारीख सैकड़ों परिवारों के लिए दर्द लेकर आई और चरखी दादरी प्लेन क्रैश के लिए मशहूर हो गई।

 

उस समय दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास का हवाई क्षेत्र सेना के कब्जे में था। इसके चलते एयरपोर्ट पर उतरने और वहां से उड़ने वाले जहाजों को एक सीमित इलाके में ही खुद को रखना पड़ता था। यही वजह थी कि दो विमान हवा में लगभग 15 हजार फीट की ऊंचाई पर होने के बावजूद आमने-सामने आ गए थे। इनको निर्देश भी मिले थे कि वे अपनी ऊंचाई में बदलाव करें, उन्होंने इसकी कोशिश भी की लेकिन तकनीकी चूक ने हवा में ही तबाही मचा दी। यह चूक कैसे हुई और हादसे से ठीक पहले क्या हुआ था, इसे समझकर ही पता चलेगा कि आखिर सैकड़ों निर्दोष लोगों को अपनी जान क्यों गंवानी पड़ी थी।

कहां से आए दो प्लेन?

 

नौकरी और रोजगार की तलाश में सैकड़ों लोग दुबई जाने के लिए दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे थे। एक आम दोपहर चंद मिनटों में कितनी भीषण शाम और दर्दभरी रात में बदलने वाली थी इसका शायद ही किसी को अंदाजा रहा होगा। शाम के साढ़े 6 बजे के आसपास सऊदी एयरलाइंस की एक फ्लाइट केबिन क्रू और यात्रियों को मिलाकर कुल 313 लोगों को लेकर दिल्ली से उड़ान भरती है। 45 साल के कैप्टन खालिद अल-सुबैली इसे उड़ा रहे थे और उनका साथ दे रहे फर्स्ट ऑफिसर नाजिर खान और फ्लाइट इंजीनियर अहमद इदरीस।

 

कुछ घंटों पहले कजाकिस्तान के शिमकेंत से उड़े एक दूसरे प्लेन में कुछ लोग भारत में खरीदारी करने आ रहे थे। दिल्ली में लैंड करने की तैयारी कर रहे इस प्लेन को उड़ा रहे थे 44 साल के कैप्टन अलेक्जेंडर शेरपेनोव और उनका साथ दे रहे थे फर्स्ट ऑफिसर एरमेक। कई अन्य फ्लाइट इंजीनियर भी साथ थे। इस फ्लाइट में कुल 10 क्रू मेंबर और 27 यात्री ही सवार थे।

हवाई जहाज आमतौर पर 30 से 40 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ते हैं। किसी हवाई अड्डे पर उतरने से पहले ये धीरे-धीरे अपनी उड़ान कम करने लगते हैं। कजाकिस्तान से फ्लाइट भी दिल्ली के ATC के संपर्क में थी और 23 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर आ चुकी थी। एयरपोर्ट से दूरी सिर्फ 74 मील बची थी। एयर ट्रैफिक कंट्रोलर ने इस फ्लाइट को 15 हजार फीट की ऊंचाई तक उतर आने की परमिशन दे दी थी।

आमने-सामने कैसे आ गए ये प्लेन?

 

उधर दिल्ली से उड़ी सऊदी एयरलाइन्स की फ्लाइट तेजी से आगे बढ़ रही थी। इस फ्लाइट को 14 हजार फीट तक जाने की अनुमति मिल गई थी और कुछ ही मिनटों में यह विमान उस ऊंचाई तक पहुंच भी गया। अचानक एयर ट्रैफिक कंट्रोलर ने अपने सामने लगे डिस्प्ले पर देखा कि ये दोनों फ्लाइट तो ठीक सामने हैं। हालांकि, उन्होंने दोनों फ्लाइट को अलग-अलग ऊंचाई दे रखी थी इसलिए वह चिंतित नहीं हुए। एटीसी के इनचार्ज थे वी के दत्ता। उनकी ओर से कजाकिस्तान की फ्लाइट को सूचना दी गई कि आपसे ठीक 10 मील की दूरी पर आपके सामने एक और फ्लाइट है जो 5 मील बाद आपको पार करेगी, यह फ्लाइट आपको दिखे तो इसकी सूचना दीजिए। यानी इन दोनों को एक-दूसरे के ऊपर से निकल जाना था। गुणा-गणित एकदम सटीक था और आमतौर पर ऐसा होता भी है। हालांकि, वह दिन न तो आम था और न ही उस दिन ऐसा हुआ।

 

दरअसल, दुबई की ओर जाने वाली फ्लाइट अपनी तय ऊंचाई 14 हजार फीट पर उड़ रही थी। वहीं, कजाकिस्तान से आ रही फ्लाइट 15 हजार के बजाय 14 हजार फीट की ऊंचाई तक उतर आई थी। दोनों विमान एक दूसरे के सामने थे, तेजी से आगे बढ़ रहे थे, उस जमाने में कम्युनिकेशन तेज नहीं थे और बीच में भाषा की दिक्कत आ गई। दरअसल, कजाकिस्तान के पायलट को अंग्रेजी समझ में नहीं आती थी और उनके साथ एक ट्रांसलेटर था। इसके अलावा, उनके दूरी मापने के पैमाने भी अलग थे इसलिए जो बताया जाता पहले उसे उनके हिसाब से बदला जाता। इन सब में समय लगना था लेकिन उस समय ही तो नहीं था।

आखिरी वक्त की कोशिश काम नहीं आई

 

कजाकिस्तान के हवाई जहाज ने एटीसी से जानकारी मिली तो जवाब मिला, '8 मील की दूरी और 14 हजार फीट की ऊंचाई पर दूसरा प्लेन है।' कजाकिस्तान के पायलट ने कहा, '150 (15 हजार फीट) पर चलो।' प्लेन की ऊंचाई बढ़नी शुरू हुई लेकिन देर हो चुकी थी। दुबई जा रहा प्लेन बिल्कुल पास आ चुका था, आखिरी वक्त में की गई कोशिशों का नतीजा बाद में प्लेन के मलबे में दिखा। दरअसल, कजाकिस्तान के प्लेन ने नीचे से ऊपर जाने की कोशिश की थी और दुबई जा रहा प्लेन पहले से तय ऊंचाई पर उड़ रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि ये दोनों प्लेन सामने से नहीं टकराए। कजाकिस्तान का प्लेन नीचे की ओर से दुबई के प्लेन से टकराया था यही वजह है कि उसके अगले हिस्से को उतना नुकसान नहीं हुआ था।

 

दोनों प्लेन के ब्लैक बॉक्स से जो जानकारी मिली उसके मुताबिक, कजाकिस्तान के प्लेन के क्रू मेंबर्स को हादसे के 4 सेकेंड पहले दूसरा प्लेन दिख गया था। वहीं, दुबई के प्लेन के क्रू मेंबर ने तो मौत से पहले की जाने वाली दुआ पढ़ना शुरू कर दिया था। न दुआएं कम आईं और न ही तकनीक। दोनों प्लेन टकरा चुके थे। इसके आगे का जवाब देने के लिए दोनों ही प्लेन में कोई सुरक्षित नहीं था। इसका आगे का वाकया हवा में प्लेन उड़ा रहे एक तीसरे पायलट ने बताया। अमेरिकी एयरफोर्स यह विमान इस्लामाबाद से दिल्ली आ रहे थे। इसके पायलट ने दोनों प्लेन को टकराते देखा। उसने तुरंत एटीसी से कहा, 'हमने अपने दाहिनी ओर आग के गोले जैसा कुछ देखा है। जैसे कोई बड़ा धमाका हो।' कुछ सेकेंड बाद उन्होंने फिर से कहा, 'हमसे लगभग 44 मील दूर उत्तर पश्चिम की ओर आग का गोला दो टुकड़ों में होकर नीचे गिर रहा है।'

 

वी के दत्ता के सामने की स्क्रीन से दो प्लेन गायब हो चुके थे। एक तीसरा पायलट यह बता रहा था कि आग के दो गोले नीचे गिर रहे हैं। तरह-तरह के बुरे ख्यालों को मन में लिए दत्ता सुन्न हो चुके थे। उन्होंने दोनों हवाई जहाजों से संपर्क करने की कोशिश भी की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। दोनों प्लेन आपस में टकराने के बाद नीचे गिर चुके थे। हरियाणा के चरखी-दादरी में कई किलोमीटर तक इनका मलबा फैल रहा था।

ट्रैक्टरों में बटोरी गईं लाशें

 

कुछ घंटों के बाद स्थानीय किसान चंद्रभान अपना ट्रैक्टर लेकर पहुंचे थे। अनाज और खेती से जुड़े सामान ढोने वाली ट्रॉलियों में लोगों की लाशें, उनके हाथ-पैर और शरीर से जले हुए टुकड़े बटोरे जा रहे थे। कुछ ही देर में रात हो गई तो गांव के लोगों ने पेट्रोमैक्स, जेनरेटर आदि की मदद से रोशनी की। कुछ और समय में पुलिस के साथ-साथ अन्य प्रशासनिक टीमें भी पहुंच चुकी थीं। जब तक दिल्ली के मीडिया को इसकी सूचना मिलती तब तक टीवी और रेडियो के लिए शाम के बुलेटिन रिकॉर्ड हो चुके थे। 

 

प्लेन जहां गिरा वहां 20 फीट गड्ढा हो गया था। चरखी-दादरी एक छोटी सी जगह थी। न तो वहां बड़े अस्पताल थे और न ही यह जगह इतनी लाशें एकसाथ देखने की आदी थी। नतीजा अव्यवस्था के रूप में दिखा। बड़ी मुश्किल से बहुत सारी बर्फ मंगाई गई। अस्पताल ले जाए गए शवों को इन्हीं बर्फ के टुकड़ों पर रख दिया गया। कई शव तो ऐसे थे जिन्हें सिर्फ शरीर के अंगों, उन पर बंधी चीजों या गहनों से पहचाना जा सकता था। कई शव ऐसे भी थे जिन्हें कभी पहचाना नहीं जा सका। शव सड़ रहे थे ऐसे में उनका अंतिम संस्कार करना जरूरी थी। 

 

हालांकि, इस बीच धर्म की लकीर फिर से दिखी। अलग-अलग धर्मों के लोग आपस में लड़ गए। हिंदू इन शवों को जलाना चाहते थे तो मुस्लिम इन शवों को दफनाना चाहते थे। जितने तो शव नहीं बचे थे उतने तरह की बातें थीं। आखिर में मरने वालों की संभावित संख्या के अनुपात में शव बांट लिए गए। कुछ शव चरखी-दादरी से दिल्ली ले जाए गए।  इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबित, 12 घंटे बाद भी शव धूप में पड़े थे और उनके ऊपर चील-कौवे मंडरा रहे थे। तब न तो इतने मोबाइल थे और न ही फोन करने का आसान तरीका। जिनके घरों के लोग प्लेन में सवार थे, वे सूचना के लिए इधर से उधर भटक रहे थे। मारे गए लोगों में भारत के 331, सऊदी अरब के 18 नेपाल के 9, पाकिस्तान के 3, अमेरिका के दो और ब्रिटेन और बांग्लादेश के एक-एक लोग थे। 

जांच में क्या आया?

 

हादसा तो हो चुका था। अब समय था जांच का, दोष मढ़ने का और जिम्मेदारी तय करने का। दिल्ली के एटीसी के बारे में कहा गया कि उसके उपकरण पुराने हैं। किसी ने सारी गलती पायलट की बता दी। भारत में इसकी जांच के लिए दिल्ली हाई कोर्ट के जज आरसी लाहोटी की अगुवाई में एक आयोग बनाया गया। लाहोटी आयोग ने दोनों हवाई जहाजों के ब्लैक बॉक्स की जांच भारत की नेशनल एयरोनॉटिकल लेबोरेटरी में करने की बात कही लेकिन दोनों एयरलाइन ने यह काम किसी दूसरे देश में करने को कहा। आखिर में लाहोटी आयोग के सदस्यों की मौजूदगी में सऊदी के प्लेन के ब्लैक बॉक्स की जांच ब्रिटेन में और कजाकिस्तान वाले की जांच मॉस्को में हुई।

 

जांच में सामने आया कि कजाकिस्तान के पायलट को अंग्रेजी न आने की वजह से कम्युनिकेशन समझने में दिक्कत हुई। आयोग ने यह भी स्पष्ट हुआ कि दिल्ली एयरपोर्ट के एटीसी की इसमें कोई गलती नहीं है क्योंकि उसकी ओर से स्पष्ट निर्देश दिए गए थे। यह भी स्पष्ट हुआ कि किसी एक प्लेन की किसी तकनीकी खामी की वजह से ऐसा नहीं हुआ। हालांकि, इसी हादसे के बाद दिल्ली के राडार सिस्टम को अपग्रेड किया गया।

 

 

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