बीमारियां या बेकाबू प्रदूषण, CAQM को कोल एनर्जी से दिक्कत क्यों है?
कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए नीतियां तैयार करता है।

कोल थर्मल प्लांट। Photo Credit: PTI
दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। अक्टूबर से लेकर फरवरी तक, दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स, गंभीर श्रेणी में बना रहता है। इसमें कोल एनर्जी का भी बड़ा योगदान है। दिल्ली की हवा में सांस लेना मुश्किल है। शहर के ज्यादातर हिस्सों में एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर 300 से ज्यादा है। अक्टूबर से ही दिल्ली की हवा कभी खराब, कभी बहुत खराब स्थिति में पहुंच रही है।
केंद्र शासित प्रदेश की सरकार के निर्देश पर जगह-जगह पानी के फुहारे छोड़े जा रहे हैं, प्रदूषण कम करने की कवायद हो रही है। राजधानी में बढ़ते प्रदूषण का एक वैकल्पिक समाधान, कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) तलाश रहा है। दिल्ली और एनसीआर के बाहरी इलाकों में अगर प्रदूषण संभला तो दिल्ली में भी संभल सकता है।
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CAQM किन बदलावों की मांग कर रहा है?
CAQM ने सुप्रीम कोर्ट में वायु प्रदूषण की स्थिति से उबरने के लिए कई प्रस्ताव दिए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक CAQM की मांग है कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के उद्योगों में कोयले का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद हो जाए। अब तक CAQM सिर्फ दिल्ली पर ध्यान दे रहा था, अब दिल्ली के बाहर के इलाकों में भी प्रदूषण रोकने की कवायद की जा रही है।
पहले दिल्ली-NCR सिर्फ पराली, ईंट भट्ठे और थर्मल पावर प्लांट पर ही नजर रखता था, लेकिन अब CAQM ने कहा है कि NCR से बाहर नजर रखी जाएगी। अब स्टील मिल, फाउंड्री, सीमेंट फैक्ट्री, कागज मिल, टेक्सटाइल, फूड प्रोसेसिंग जैसी फैक्ट्रियां में भी कोयला, पेटकोक और फर्नेस ऑयल का इस्तेमाल होता है। इन्हें बंद करने की जरूरत है।
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CAQM ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब की राज्य सरकारों से 3 महीने के भीतर कोयला खत्म करने का ऐक्शन प्लान मांगा है। दिल्ली में 7,759 में से 7,449 फैक्ट्रियां अब PNG, बिजली, बायोफ्यूल पर शिफ्ट हो चुकी हैं। बची हुई 310 या तो बंद कर दी गईं या खुद बंद हो गईं। अब बारी बाहरी राज्यों की है।
थर्मल-कोल प्लांट को क्यों रोकने की कवायद हो रही है?
CAQM कोर्ट में यह भी कहा है कि दिल्ली से 300 किमी के दायरे में कोई नई कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट नहीं लगना चाहिए। इस इलाके में पहले से 11 पावर प्लांट के 35 यूनिट हैं।
दिल्ली से नजदीक कौन से ऐसे धर्मल प्लांट हैं जो कोयला से चलते हैं
- यमुनानगर TPS, यमुनानगर, हरियाणा
- पानीपत TPS, पानीपत, हरियाणा
- राजीव गांधी TPS, हिसार रोड, हरियाणा
- महात्मा गांधी TPS, झज्जर, हरियाणा
- इंदिरा गांधी सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट, झज्जर, हरियाणा
- दादरी थर्मल पावर प्लांट, यूपी
- हरदुआगंज थर्मल पावर स्टेशन, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
- तलवंडी साबो थर्मल पावर प्लांट, मानसा, पंजाब
- राजपुरा थर्मल पावर प्लांट, राजपुरा, पंजाब
- रोपड़ थर्मल पावर प्लांट, रोपड़, पंजाब
- गुरु हरगोविंद थर्मल पावर प्लांट, बठिंडा, पंजाब
थर्मल-कोल प्लांट के खतरे क्या हैं?

कोयले से चलने वाले थर्मल प्लांट में सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन सामान्य है। कोयले में मौजूद सल्फर से निकलने वाली गैस, हवा में एसिड रेन की वजह बनती है। सांस से संबंधित जटिलताएं भी इसकी वजह से पैदा होती हैं। वर्ल्ड बैंक ग्रुप की एक रिपोर्ट 'पीपुल इनइक्वल एक्सोजर टू एयर पॉल्यूशन' की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वैश्विक स्तर पर 2.3 अरब लोग सल्फर डाइऑक्साइड से होने वाले प्रदूषण की चपेट में है। अस्थमा और हृदय रोग का खतरा, ऐसे मरीजों पर हमेशा बना रहता है। ये गैसें पर कोयला जलने से बनती हैं। ओजोन लेयर के लिए भी ये संकट हैं। इनकी वजह से पास के इलाकों में धुंध भी पैदा होती है।
कोयला जलने से PM2.5 और PM10 जैसे महीन कण निकलते हैं, जो हवा में घुलकर फेफड़ों और रक्तप्रवाह में पहुंचते हैं, मृत्यु दर बढ़ाते हैं। अमेरिकन लंग एसोसिएशन की रिपोर्ट बताती है कि ये कण धातुओं और ऑर्गेनिक्स से बंधे होते हैं, इनकी वजह से अस्थमा और हृदय संबंधित बीमारियों का जोखिम बना रहता है। ऐसे प्लांट्स मरकरी, आर्सेनिक, लेड जैसी धातुएं और डाइऑक्सिन्स छोड़ते हैं। यह न्यूरो सिस्टम को भी प्रभावित कर सकता है। डाइऑक्सिन्स को विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कैंसर की एक वजह मानता है। दिल्ली में प्रदूषण की समस्या के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी वजहें भी हैं, जिनके चलते अब कोल-थर्मल प्लांट को बंद करने की मांग उठी है।
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अगर कोयला नहीं तो फिर क्या है विकल्प?
बढ़ते प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन के दबाव अब देश पर बढ़ता जा रहा है। देश के थर्मल पावर प्लांट कोयले से दूर होने की राह पर हैं। कई प्लांट ऐसे हैं, जो नेचुलर गैस, बायोमास, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट और हाइड्रोसन-अमोनिया को फायरिंग पर शिफ्ट हुए हैं। ये कोयले से कम प्रदूषक पैदा करते हैं लेकिन इन पर खतरा बना रहता है। हालांकि, सभी थर्मल प्लांट का कोयला छोड़कर वैकल्पिक ईंधनों पर शिफ्ट करना महंगा साबित हो सकता है।
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