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नक्सल विरोधी अभियान में 'शहीद' हुई रोलो, CRPF ने दी अंतिम सलामी

छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर स्थित कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में नक्सल के खिलाफ एक बड़ा अभियान जारी है। इस अभियान में CRPF के एक कुत्ते पर मधुमक्खियों ने हमला कर दिया जिसके कारण उसकी मौत हो गई।

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सीआरपीएफ का कुत्ता, Photo credit: PTI

भारत नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ रहा है। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर स्थित कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में नक्सल के खिलाफ एक बड़ा अभियान जारी है। इस अभियान में सुरक्षा बलों के लगभग 24 हजार जवान शामिल हैं। जवानों के अलावा सुरक्षा बलों के कुत्ते भी इस अभियान में शामिल हैं। इस अभियान में अब तक कुछ सैनिक हताहत हुए हैं और अब इसी अभियान में शामिल एक मादा कुत्ते की मौत हो गई है। मादा कुत्ता इस अभियान का हिस्सा थी और वह भी इन पहाड़ियों में थी। इस दौरान कुत्ते पर मधुमक्खियों ने हमला कर दिया जिसके कारण उसकी मौत हो गई।

 

2 साल की K9 रोलो नाम की एक मादा कुत्ता केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की एलीट कैनाइन स्क्वाड का हिस्सा थी। रोलो बेल्जियन शेफर्ड प्रजाति की थी। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में नक्सल विरोधी अभियान में रोलो शामिल थी। इस अभियान के दौरान ही रोलो पर मधुमक्खियों के झुंड ने हमला कर दिया। इस हमले में वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी और उसे इलाज के लिए ले जाया गया। इलाज के दौरान तमाम कोशिशों के बाद भी रोलो को नहीं बचाया जा सका। अधिकारियों ने जानकारी दी कि मधुमक्खियों ने कुत्ते को 200 डंक मारे थे जिस कारण उसकी मौत हो गई। 

 

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हमले के दौरान बचाने की कोशिश की गई


इस हमले की जानकारी देते हुए सीआरपीएफ ने बताया कि मधुमक्खियों के हमले से बचाने के लिए रोलो पर एक पॉलीथीन डाल दिया गया था। डंक लगने से उसको काफी दर्द हो रहा था जिस कारण वह पॉलीथीन से बाहर आ गई और उस पर मधुमक्खियों ने फिर से हमला कर दिया। इस हमले में उसे 200 से ज्यादा डंक लगे जिसके कारण वह बेहोश हो गई। इसके तुरंत बाद उसे एक सुरक्षित जगह पर ले जाकर आपातकालीन इलाज किया गया और उसके बाद उसे अस्पताल ले जा रहे थे। अस्पताल ले जाते समय ही रोलो की मौत हो गई। 

 

विस्फोटकों से करती थी रक्षा


नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों का यह अब तक का सबसे बड़ा अभियान है और इसमें सुरक्षा बलों के 24 हजार जवान शामिल हैं। इसी अभियान में रोलो भी शामिल थी और उसका काम विस्फोटकों को सूंघना था। IED को सूंघ कर रोलो इसकी जानकारी सुरक्षा बलों को देती थी, जिससे सुरक्षा बल उसे निष्क्रिय करते थे। जिस इलाके में यह अभियान चलाया जा रहा है यह नक्सलियों का अड्डा रहा है और उन्होंने यहां पर IED का जाल बिछा रखा है।

 

IED से हुए विस्फोटों में कई जवान घायल भी हो चुके हैं। IED को सूंघकर यह रोलो सुरक्षा बलों के जवानों की इससे रक्षा करती थी। सीआरपीएफ के अधिकारियों ने कहा, 21 दिनों तक चले इस अभियान में रोलो ने न सिर्फ अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया, बल्कि नक्सलियों के छिपाए हथियारों को पकड़ाने में  भी बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि, अभियान के खत्म होने के बाद वह हमारे बीच नहीं है।' 

 

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खतरों से भरा है जंगल


छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर स्थित कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में यह अभियान चलाया गया। घने जंगल होने की वजह से इन पहाड़ियों में बड़ी संख्या में जंगली जानवर, कीड़े-मकोड़े और मधुमक्खियों जैसे जीव-जंतु पाए जाते हैं। घने जंगल होने के कारण नक्सलियों के लिए यह छिपने का अड्डा बन गया था।

 

रोलो का योगदान


रोलो पहली बार किसी अभियान में नहीं गई थी। इससे पहले भी वह पिछले साल छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियानों में सेवा दे चुकी थी। उसे सीआरपीएफ के कैनाइन ट्रेनिंग कैंप में ट्रेन किया गया था। इस अभियान में सुरक्षा बलों के लगभग 24 हजार जवान शामिल थे। इस अभियान में नक्सलियों को बड़ा झटका लगा है और उनके 31 लोगों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया है। इस अभियान में 18 जवान भी घायल हुए हैं जिनमें एक जवान अपने साथी जवान को बचाते हुए IED पर पैर पड़ने से गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस जवान का इलाज के दौरान एक पैर भी काटना पड़ा था। जवानों के साथ- साथ रोलो के इस बलिदान से इतनी बड़ी कामयाबी मिली है। भारत ने 31 मार्च 2026 तक नक्सल को जड़ से खत्म करने का लक्ष्य रखा है जिसके तहत यह कार्रवाई की जा रही हैं। 

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