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दिल्ली का डूबता 'मिंटो ब्रिज', 1958 से हर मानसून की वही कहानी

हर साल राजधानी दिल्ली में बारिश के दौरान जगह-जगह जलभराव की समस्या देखने को मिलती है लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियों में मिंटो ब्रिज आता है, जहां 1958 से अब तक हर मानसून में पानी भरना जैसे परंपरा बन चुकी है।

Delhi minto bridge

मिंटो ब्रिज दिल्ली, Photo Credit: PTI

हर साल मॉनसून के आते ही दिल्ली की सड़कों पर जलजमाव की तस्वीरें देश-दुनिया में सुर्खियां बन जाती हैं। इनमें सबसे चर्चित तस्वीर होती है-मिंटो ब्रिज के नीचे पानी में डूबी बसें और राहगीर की। यह तस्वीर अब दिल्ली की बारिश की एक 'क्लासिक सिंबल' बन चुकी है।

 

मिंटो ब्रिज की कहानी दिल्ली के बुनियादी ढांचे की पुरानी दास्तान है। यह पुल विवेकानंद रोड (जिसे पहले मिंटो रोड कहा जाता था) पर स्थित है और कनॉट प्लेस को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन और पुरानी दिल्ली के अजमेरी गेट से जोड़ता है। इस पुल का निर्माण नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक एक नई रेलवे लाइन लाने के लिए किया गया था। इसका नाम ब्रिटिश काल के वायसराय लॉर्ड मिंटो द्वितीय (1905–1910) के नाम पर रखा गया था। आज भले ही इसका नाम बदलकर 'शिवाजी ब्रिज' कर दिया गया हो लेकिन लोगों की जुबान पर आज भी यह मिंटो ब्रिज ही है। दिल्ली हर साल बारिश में डूबती है और मिंटो ब्रिज हर बार इसकी गवाह बनता है जिसे देखने के बाद ऐसा लगता है कि शहर का विकास कहीं ठहर सा गया है। 

 

1958

 

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67 साल से जलभराव की गिरफ्त में मिंटो ब्रिज

भारत की आजादी के बाद से ही दिल्ली का मिंटो ब्रिज अंडरपास जलभराव की वजह से चर्चा में रहा है। यह कोई हालिया समस्या नहीं है। इस स्थान पर पानी भरने की शुरुआत 1958 से दर्ज की गई है। तब से अब तक 67 साल बीत चुके हैं लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। जलभराव इतना गंभीर मुद्दा बन गया कि दिल्ली सरकार का लोक निर्माण विभाग (PWD) कई वर्षों तक मॉनसून के दौरान इस अंडरपास को 24 घंटे सीसीटीवी निगरानी में रखता रहा।

 

हिंदुस्तान टाइम्स में जुलाई 1958 में छपी एक रिपोर्ट में दिल्ली के तत्कालीन नगर निगम आयुक्त पी.आर. नायक ने दावा किया था कि मिंटो ब्रिज के नीचे जलभराव रोकने के लिए पंप सेट लगाए गए हैं। यह पहल उस समय की रेड्डी समिति की सिफारिशों के अंतर्गत की गई थी जो बाढ़ से निपटने के लिए बनाई गई थी लेकिन हैरानी की बात यह है कि छह दशकों से अधिक समय बीत जाने के बावजूद अब तक कोई भी सरकारी एजेंसी इस जलसंकट का स्थायी समाधान नहीं ढूंढ पाई। हर साल बरसात आती है और मिंटो ब्रिज की तस्वीरें फिर हर जगह वायरल होने लगती है। 

 

2024

 

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मिंटो ब्रिज की अधूरी योजनाएं

दिल्ली का मिंटो ब्रिज महज एक अंडरपास नहीं, बल्कि राजधानी की एक ऐसी मिसाल है जहां विरासत, तकनीकी सीमाए और अधूरी योजनाएं एक-दूसरे से अछूते रहे। दिल्ली नगर निगम की कार्य समिति के पूर्व अध्यक्ष जगदीश ममगैन के अनुसार, यह पुल एक विरासत संरचना है। इसका मतलब यह है कि इसे हटाना या बड़ा बदलाव करना आसान नहीं है; सिर्फ इंजीनियरिंग समाधानों के माध्यम से ही कुछ किया जा सकता हैं। 1958 में जब पहली बार मिंटो ब्रिज के नीचे जलभराव  नगरपालिका सदन में बहस का बड़ा मुद्दा बना, तब वहां पहला पंप लगाया गया था। यह जल निकासी की दिशा में शुरुआती कदम था लेकिन इसके बावजूद कोई समाधान नहीं निकला। 

 

2010 में जब दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी कर रही थी, तब इस पुल के रेनोवेशन की एक योजना तैयार की गई थी। योजना थी कि पुल के नीच की सड़क को समतल कर इसकी ऊंचा बढ़ा दी जाए और दो एक्सट्रा रेलवे ट्रैक जोड़ा जाए लेकिन तमाम कोशिशों और तकनीकी तैयारियों के बावजूद यह प्रोजेक् कागजों से आगे नहीं बढ़ सकी। आज, मिंटो ब्रिज न केवल बारिश के पानी में डूबता है, बल्कि अधूरी योजनाओं, आधे-अधूरे समाधानों और अनसुनी चेतावनियों में भी घिरा रहता है। जुलाई 2018 में जब दो डीटीसी बसें एक बाढ़ग्रस्त अंडरपास में डूब गईं और 10 लोगो को बचाया गया, तब दिल्ली हाई कोर्ट ने सभी संबंधित एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे आपसी सहमति के साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक ठोस प्रोजेक्ट तैयार करें। इसके बावजूद, आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। 

 

2021

 

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क्यों भर जाता है मिंटो रोड में पानी?

मिंटो रोड की बनावट सबसे बड़ी समस्या है। उसकी बनावट में गहरी ढलान है, जिसके कारण स्वामी विवेकानंद मार्ग और कनॉट प्लेस सहित आस-पास की सभी सड़कों का पानी इसी ओर बहता है। यहां से पानी बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है और यह क्षेत्र हर मॉनसून में जलभराव का शिकार हो जाता है और अक्सर बसें इसमें फंस जाती हैं। 1967 में जल निकासी की स्थिति सुधारने के लिए अंडरपास की ढलान को चौड़ा किया गया था लेकिन इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। इसके बाद 1980 के दशक में डीडीयू मार्ग के दोनों ओर बरसाती नालियां बनाई गई, फिर भी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। यह अंडरपास आज भी बारिश के बाद जलभराव और बाढ़ का केंद्र बन जाता है। 

 

2025

2020 में हुई थी मौत 

साल 2020 में मिंटो ब्रिज अंडरपास की स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि एक व्यक्ति की बरसाती पानी में डूबकर मौत हो गई। उसका वाहन भारी जलभराव में फंस गया था और वह बाहर नहीं निकल सका। हालांकि, 2022 में पहली बार यहां से जलभराव की कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई, जिससे उम्मीद जगी कि हालात सुधर रहे हैं।

 

इसके बाद 2023 में PWD ने मिंटो ब्रिज अंडरपास को दिल्ली के जलभराव वाले हॉटस्पॉट की सूची से हटा दिया। विभाग ने दावा किया कि यहां लगाए गए अत्याधुनिक पंप बारिश के दौरान पानी जमा नहीं होने देंगे और सड़क हमेशा यातायात के लिए खुली रहेगी लेकिन हाल की बारिश ने एक बार फिर विभाग के दावों की हकीकत उजागर कर दी। भारी बारिश के चलते अंडरपास में फिर से पानी भर गया और इसे यातायात के लिए बंद करना पड़ा। इससे यह स्पष्ट हो गया कि समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए अब भी ठोस और व्यावहारिक कदम उठाने की जरूरत है। 

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