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सरकार 'एक देश एक चुनाव' लाने पर विचार कर रही, पर लागू कैसे करेगी?

सरकार 'एक देश एक चुनाव' लाने पर विचार कर रही है, लेकिन संसद में संख्या बल से लेकर विपक्ष के विरोध तक इसे लागू करने में कई बाधाएं हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर । पीटीआई

सरकार इस सत्र में एक देश 'एक चुनाव' विधेयक लाने पर विचार कर रही है। सूत्रों के मुताबिक सरकार पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाने के रामनाथ कोविंद कमेटी के सुधारों को स्वीकृति दे चुकी है और विधेयक को सदन के पटल पर रखने के बाद सभी पार्टियों के बीच इसको लेकर सहमति बनाने के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेज सकती है।

 

जेपीसी सभी राजनीतिक पार्टियों, विधानसभा अध्यक्षों से सलाह मशविरा करेगी और जनता से उनकी राय भी मांग सकती है।

 

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था, इनमें से 32 ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया था जबकि 15 पार्टियां इसके विरोध में थीं और 15 पार्टियों ने इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया था।

क्या है एक देश एक चुनाव

एक देश एक चुनाव का अर्थ है कि पूरे देश में संसदीय चुनावों के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी करा लिए जाएं। इसके लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि सभी चुनाव एक ही दिन कराए जाएं बल्कि एक टाइम फ्रेम और कई चरणों में भी चुनाव कराए जा सकते हैं। उद्देश्य सिर्फ इतना है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव हो जाने के बाद लगातार चुनावी मौसम देश में नहीं बना रहेगा।

क्या हैं चुनौतियां

एक देश एक चुनाव लागू करने के लिए सरकार को कम से कम 5 ऐसे विधेयक लाने पड़ेंगे जिनको पारित कराने के लिए दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी।

 

चूंकि बीजेपी के पास इस वक्त सदन में साधारण बहुमत ही है, इसलिए इस विधेयक का पारित करा पाना काफी मुश्किल होगा और इसके लिए पार्टियों के बीच सहमति बनानी पड़ेगी।

 

संख्या बल की बात करें तो एनडीए के पास इस वक्त राज्यसभा में 112 सीटें हैं जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी। ऐसे ही लोकसभा में एनडीए के पास 292 सीटें हैं जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए उसे 364 सदस्यों का समर्थन चाहिए होगा। ऐसे में बीजेपी के लिए इस टारगेट को साध पाना बड़ी चुनौती है।

विपक्ष क्यों कर रहा विरोध

विपक्ष एक देश एक चुनाव का लगातार विरोध करता रहा है। विपक्ष का मानना है कि यह प्रस्ताव अव्यावहारिक, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है। उनका मानना है कि एक साथ चुनाव करा पाना बहुत बड़ी चुनौती है और इससे राज्यों की प्रशासनिक प्रक्रिया बाधित होगी और फेडरल सिस्टम को नुकसान पहुंचेगा।

क्या है सरकार का पक्ष

वहीं सरकार का कहना है कि अभी की व्यवस्था से विकास के कार्यों में बाधा पहुंचती है क्योंकि लगातार चुनाव होने की वजह से कहीं न कहीं आचार संहिता लगी रहती है। साथ ही सरकारें और राजनीतिक पार्टियां भी हमेशा चुनावी मोड में रहती हैं, इसलिए वे काम पर उतना फोकस नहीं कर पातीं जितना करना चाहिए।

 

बता दें कि एक देश एक चुनाव मोदी सरकार का बड़ा एजेंडा है। यह बीजेपी के 2024 के लोकसभा चुनाव के मैनिफेस्टो में भी था। इसी साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से सभी को एक देश एक चुनाव के लिए आगे आने की अपील करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि, 'देश में बार-बार होने वाले चुनाव देश की प्रगति में बाधक बन रहे हैं, गतिरोध पैदा कर रहे हैं। आज किसी भी योजना को चुनाव के साथ जोड़ देना आसान हो गया है, क्योंकि हर तीन महीने, छह महीने में कहीं न कहीं चुनाव चल रहा है।' 

क्या है कोविंद कमेटी की रिपोर्ट

कोविंद कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक देश एक चुनाव को लागू करने से पहले पूरे देश में इस पर चर्चा का माहौल तैयार किया जाना चाहिए। इसके अलावा इसे 2029 के बाद ही लागू किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें काफी जटिलताएं हैं जिन पर काम करना होगा।

 

अब जब इस विधेयक को संसद में पेश किए जाने की बात उठी है तो सभी की निगाहें इसी बात पर हैं कि इसमें किस तरह की बाधाएं आएंगी और सरकार इससे कैसे निपटेगी।

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