logo

ट्रेंडिंग:

भोपाल: गैस त्रासदी के 4 दशक, अब हटाया गया जहरीला कचरा, आखिर क्यों?

भोपाल गैस त्रासदी के जहरीले कचरे को 250 किलोमीटर ग्रीन कॉरिडोर के जरिए बाहर निकाला जा रहा है। एंबुलेंस, पुलिस की गाड़ियां और फायर बिग्रेड की संयुक्त टीम इस काम को अंजाम दे रही है।

1984 Gas Tragedy

भोपाल के इसी प्लांट में 1984 में हुआ था हादसा। (तस्वीर-PTI)

भोपाल गैस त्रासदी के 4 दशक बीत गए हैं। 40 साल बात अब जाकर यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीले कचरे को निकाला जा रहा है। यहां करीब 337 मीट्रिक टन खतरनाक कचरा है, जिसे 12 कंटेनरों के जरिए पीथमपुर भेजा जा रहा है। कचरे को 250 किलोमीटर लंबे ग्रीन कॉरिडियोर के जिए भेजा जा रहा है।

कंटेनरों के आसपास सुरक्षा के मद्देनजर ट्रैफिक रोकी गई है। सड़क पर इसी तरह के इंतजाम किए गए हैं। काफिले में पुलिस की 5 गाड़ियां भी हैं। भोपाल गैस त्रासदी में 2259 लोगों की मौत हुई थी। रविवार दोपहर से ही कचरे को अलग-अलग बैग में भरा गया। 4 दिन में कचरे को कंटेनरों में डाला गया।

मंगलवार से यह काम शुरू हुआ था। बुधवार रात तक यह प्रक्रिया पूरी हो गई थी। हर कंटेनर पर एक विशेष नंबर दर्ज है। रूट की पूरी जानकारी जिला प्रशासन और पुलिस के पास है। कंटेनर की अधिकतम रफ्तार 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे की है। कुछ जगहों पर यह काफिला रुकेगा भी। हर कंटेनर पर दो ड्राइवर भी हैं। 

किन कंटेनरों में रखा गया है कचरा?
कंटेनर एंटी लीकेट पैटर्न पर बने हैं। कचरे को अग्निरोधी टैंकरों में लोड किया गया है। हर कंटेनर में करीब 30 टन कचरा है। इन्हें जंबो एचडीपीई बैग में पैक किया गया है। शिफ्ट से पहले फैक्ट्री के 200 मीटर दायरे को सील कर दिया गया था। इस काम में 200 से ज्यादा कर्मचारी शामिल किए गए हैं, जिन्होंने 30-30 मिनट की शिफ्ट में काम किया है।

4 दशक बाद क्यों हुआ ऐसा?
3 दिसंबर को हाई कोर्ट ने अधिकारियों को जहरीले कचरे को हटाने के लिए 4 सप्ताह की समयसीमा तय की थी। 5 दिसंबर को हाई कोर्ट ने 337 मीट्रिक टन कचरे को लेकर राज्य सरकार को फटकारा था। कोर्ट ने कहा था कि अधिकारी अब भी सोए हुए हैं, जबकि हादसे के 4 दशक बीत गए हैं।

पीथमपुर ही क्यों चुना गया?
इंदौर के पास पीथमपुर एक औद्योगिक शहर है। यहां जहरीले कचरे को जलाने वाले कई प्लांट हैं। यहां के स्थानीय लोग कचरे को लेकर विरोध करते रहे हैं। हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हैं कि औद्योगिक कचरों को यहां न डाला जाए। गैस त्रासदी के रिलीफ डिपार्टमेंट के डायरेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह का कहना है कि यूनियन कार्बाइड प्लांट से निकलने वाले जहरीले कचरे से गांव की मिट्टी और जमीन पर कोई भी असर नहीं पड़ेगा। 

कितने दिनों में साफ होगा कचरा?
इस प्रोजेक्ट में कम से कम 180 दिन लगेंगे। पहले 20 दिन में दूषित कचरे को ड्रमों से भरकर उस टैंक तक ले जाया जाएगा, जहां इन्हें जलाना है। कचरे को स्टोरेज से एक ब्लेंडिंग शेड में भेजा जाएगा, वहां इसमें कुछ रीजेंट मिलाए जाएंगे। इन्हें 3 से 9 किलोग्राम वजन वाले छोटे बैग में पैक किया गया है। कचरे को 76 दिन बाद जलाया जाएगा। जलाने से पहले सभी रिपोर्टों को अधिकारी जांचेंगे। यह तय किया जाएगा कि इससे हवा की गुणवत्ता प्रभावित न हो। 

किस तरह के बैग में पैक किया गया कचरा?
कचरे को हाई डेंसिटी पॉलीइथाइलीन नॉन रिएक्टिव लाइनर में पैक किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया जिससे लीकेज न हो और कोई रासायनिक क्रिया न होने पाए। पीपीई किट पहनकर मजदूरों ने इसे पैक किया। डॉक्टरों की एक टीम उनकी सेहत पर नजर रखे हुए थी।

Related Topic:

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap