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अपने ससुर को दिया धोखा और मार ली बाजी, पढ़ें चंद्रबाबू नायडू की कहानी

आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक समय पर अपने ही ससुर के साथ बगावत करके सत्ता तक पहुंचने में कामयाब रहे थे। इस घटना को आंध्र प्रदेश के इतिहास में काफी अहम माना जाता है।

Chandrababu Naidu pays tribute to NT Rama Rao

एन टी रामाराव को श्रद्धांजलि देते चंद्रबाबू नायडू, Image Credit: PTI

'राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता...' जैसी बातें उस वक्त और मजबूत हो जाती हैं जब भाई-भाई को बर्दाश्त नहीं कर पाता, सत्ता के लिए भाई बहन में झगड़ा हो जाता है या फिर एक दामाद सत्ता के लिए अपने ही ससुर को धोखा देता है। आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। 2019 में एक चुनावी रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'आप (चंद्रबाबू नायडू) सीनियर हैं अपने खुद के ससुर की पीठ में छुरा भोंकने में, आप सीनियर हैं लेकिन एक चुनाव के बाद दूसरा चुनाव हारने में।' इससे पहले भी चंद्रबाबू नायडू के बारे में कहा गया कि वह सत्ता में आए तो अपने ही ससुर और आंध्र प्रदेश के दिग्गज नेता एनटीआर को धोखा देकर। रोचक बात यह है कि इस राजनीतिक तख्तापलट में चंद्रबाबू नायडू के साथ-साथ एनटीआर के बड़े दामाद दग्गुबाती वेंकटेश्वर राव भी शामिल थे।

 

फिल्मी दुनिया से राजनीति में आए एन टी रामा राव उर्फ एनटीआर ने ही तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) बनाई थी। पहली बार 1983 से 1984, दूसरी बार 1984 से 1989 तक आंध्र प्रदेश के सीएम रहने वाले एनटीआर ने दिसंबर 1994 में तीसरी बार सरकार बनाई। हालांकि, तब तक उनकी ही पार्टी के बाकी नेता भी सिर उठाने लगे थे। सिर उठाने वालों में कोई और नहीं बल्कि उनके ही दामाद थे।

क्यों हो गई बगावत?

एनटीआर की बेटी भुवनेश्वरी के पति चंद्रबाबू नायडू, दूसरे दामाद दग्गुबाती वेंकटेश्वर राव और उनके बेटों ने बगावत की योजना बना ली थी। दरअसल, साल 1985 में एनटीआर की पहली पत्नी की मौत हो गई थी और एनटीआर ने 1993 में लक्ष्मी पार्वती से शादी कर ली थी। चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाए कि एनटीआर अब लक्ष्मी पार्वती के प्रभाव में हैं और उन्हीं के हिसाब से काम कर रहे हैं। वहीं, एनटीआर इस सबसे अनजान थे। इससे पहले, एक बार एनटीआर ने एक बार लक्ष्मी पार्वती को मंच पर बुलाया था और जनता के सामने ही मंगलसूत्र डालने की कोशिश की थी। अचानक चंद्रबाबू नायडू ने बिजली कटवा दी और हल्ला मच गया। किसी को पता भी नहीं चल पाया कि एनटीआर मंगलसूत्र बांध पाए या नहीं। इसी के बाद से ही चंद्रबाबू नायडू ने बगावत का मन बना लिया था।

 

16 अगस्त 1995  को एनटीआर खुद पर बनी फिल्म की रिलीज पर गए थे। इधर चंद्रबाबू नायडू टीडीपीके विधायकों को लेकर हैदराबाद के वायसराय होटल चले गए। एकदम आज की रिजॉर्ट पॉलिटिक्स की तरह। एनटीआर को काटो तो खून नहीं। हैरान-परेशान एनटीआर अपने विधायकों से अपील करने होटल पहुंच गए। उन्होंने बाहर से अपील की कि वे उनके साथ आ जाएं। इस पर उनका स्वागत चप्पलों से किया गया। इसी बीच एनटीआर की तबीयत बिगड़ गई। उन्होंने राज्यपाल कृष्ण कांत से मांग की कि वह विधानसभा भंग कर दें। अस्पताल से ही अपना इस्तीफा भी भेजा लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी।

 

चंद्रबाबू नायडू ने खेल कर दिया था। 7 सितंबर 1995 को जब बहुमत परीक्षण हुआ तो एनटीआर के समर्थन में सिर्फ 28 विधायक थे जबकि टीडीपी के कुल विधायकों की संख्या 219 थी। एनटीआर को सदन में बोलने तक का मौका नहीं दिया गया और हंगामा करने वाले उनके समर्थक विधायकों को सस्पेंड कर दिया गया। सीएम बनने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने 11 सितंबर को एक रैली बुलाई। वहीं, एनटीआर अब नायडू को गद्दार साबित करने में लग गए थे। उन्होंने पूरे राज्य में यात्रा भी निकाली लेकिन अब शायद जनता भी उनके साथ नहीं थी। 

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