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साउथ एशिया में कैसे शुरू हुई 'अरब स्प्रिंग'? नाजुक मोड़ पर PAK

दक्षिण एशिया में भीड़तंत्र के आगे लोकतांत्रिक सरकारें धराशयी हो रही हैं। यह हाल तब है जब देश की जनता को हर पांच साल में अपना मन पसंदीदा नेता को चुनने का मौका मिलता है।

South Asia Spring.

सांकेतिक फोटो। (AI Generated Images)

17 दिसंबर 2010 को ट्यूनीशिया से अरब स्प्रिंग की शुरूआत हुई। देखते ही देखते क्रांति अरब के कई देशों में फैल गई। ट्यूनीशिया से मिस्र और लीबिया से यमन तक सरकारें ढह गईं। सीरिया में बसर अल असद की सरकार तो बच गई, लेकिन 2024 में उठी विरोध की नई लहर ने उन्हें भी सत्ता से उखाड़ फेंका। 

 

सीरिया में ताकत के सबसे बड़े पर्याय बशर अल असद अब मॉस्को की शरण में है। अरब की तर्ज पर दक्षिण एशिया में नई स्प्रिंग की शुरुआत हुई है। श्रीलंका से नेपाल तक सत्ता भीड़ के हाथों बदली जा रही है। लोकतांत्रिक तरीकों से चुनी गईं सरकारें आज सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं। आइये समझते हैं अरब स्प्रिंग से नेपाल तक का विद्रोह कैसे शुरू हुआ? 

 

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क्या है अरब स्प्रिंग?

अरब देशों में सत्तावादी नेताओं के खिलाफ विद्रोह भड़का। विद्रोह के खिलाफ सरकारों ने दमन को हथियार बनाया है। बाद में इन सत्ताधीशों को अपना पद और देश तक छोड़ना पड़ा। अरब के अलग-अलग देशों में सत्ता के खिलाफ भड़के विद्रोह को अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है। 

 

ट्यूनीशिया: अरब स्प्रिंग की शुरुआत एक सब्जी बेचने वाली की आत्महत्या से हुई। पुलिस उत्पीड़न से परेशान मोहम्मद बौअजीजी ने 17 दिसंबर 2010 को आग लगा ली। 4 जनवरी 2011 को उसकी मौत हो गई। इसके बाद पूरे ट्यूनीशिया में विद्रोह की आग भड़की। 10 दिन बाद राष्ट्रपति जीन अल अबिदीन बेन का लगभग 23 साल पुराना शासन खत्म हो गया। इसके बाद उन्हें सऊदी अरब भागना पड़ा।

 

मिस्र: ट्यूनीशिया से लगभग 11 दिन बाद मिस्र में होस्नी मुबारक शासन के खिलाफ जनता का विद्रोह भड़क उठा। 26 जनवरी को राजधानी काहिरा और अलेक्जेंड्रिया समेत अन्य शहरों में जनता सड़कों पर उतर आई। हिंसक मार्च के बाद 11 फरवरी को लगभग 10 लाख की उग्र भीड़ के सामने होस्नी की एक नहीं चली। उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और पूरा मिस्र सेना के कब्जे में आ गया। 

 

लीबिया: 15 फरवरी को लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी के तानाशाही शासन के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आवाज उठी तो गद्दाफी ने विद्रोहियों को चूहा कहा। विद्रोह के खिलाफ दमन को हथियार बनाया। बाद में यह हिंसा की आग गृह युद्ध में बदल गई। अमेरिका और फ्रांस की वायुसेना ने गद्दाफी के खिलाफ एक्शन शुरू किया। 20 अक्तूबर 2011 को गद्दाफी की मौत के बाद उनका शासन भी खत्म हो गया।   

 

यमन: अली अब्दुल्ला सालेह ने 33 वर्षों तक यमन की सत्ता पर शासन किया। 27 फरवरी 2012 को विरोध प्रदर्शन के बाद उन्हें अपने डिप्टी अब्दराबुह मंसूर हादी को अपनी सत्ता सौंपनी पड़ी। आज भी आधे से अधिक यमन पर हूती विद्रोहियों का कब्जा है। हालांकि हूती शासन को ईरान के अलावा किसी ने मान्यता नहीं दी है।

विद्रोह हुआ मगर बच गए ये देश

बहरीन: 15 फरवरी 2011 को खाड़ी के देश बहरीन में राजशाही के खिलाफ जनता सड़क पर उतरी। राजधानी में बने पर्ल स्क्वायर पर विद्रोहियों का कब्जा हो गया। विद्रोही संवैधानिक राजतंत्र की मांग कर रहे थे। दंगा पुलिस ने शिविरों पर हमला किया। इसमें तीन लोगों की जान गई और कई घायल हुए। मगर बहरीन में सत्ता परिवर्तन विफल हो गया।

 

सीरिया: सीरिया में 6 मार्च 2011 को एक बच्चे ने अपनी स्कूल की दीवार पर लिख दिया 'डॉक्टर आपकी बारी' है। डॉक्टर का संबोधन सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के संदर्भ में था। असद एक नेत्र रोग विशेषज्ञ थे। पुलिस ने बच्चों को दीवार पर टांग दिया। उस पर थर्ड डिग्री का अत्याचार किया गया। हिंसक विरोध प्रदर्शन गृह युद्ध में बदल गया। सीरिया के विद्रोह में रूस की एंट्री हुई। उसने 30 सितंबर 2015 को विद्रोहियों के खिलाफ हवाई कार्रवाई शुरू की। 10 साल चली लड़ाई में 3.80 लाख लोग मारे गए। मगर असद की सत्ता बच गई।

दक्षिण एशिया स्प्रिंग

दक्षिण एशिया में जनता का अधिकांश विद्रोह लोकतांत्रिक सरकारों के खिलाफ भड़का। श्रीलंका से विद्रोह शुरू हुआ। इसके बाद बांग्लादेश और नेपाल में सत्ता परिवर्तन हो चुका है। इंडोनेशिया में भीड़ ने सत्ता पलटने की कोशिश की मगर कामयाबी नहीं मिली। 2020 में पाकिस्तान में इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के नाम पर हटाया गया। 9 मई 2023 को इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद पूरा पाकिस्तान चल उठा। सेना की मदद से शहबाज शरीफ अपनी सत्ता बनाने में कामयाब रहे। म्यांमार में साल 2021 में आंग सान सू की लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ वहां की सेना ने तख्तापलट किया।  


श्रीलंका: साल 2022 में श्रीलंका में सबसे खराब आर्थिक हालात पैदा हुए। बढ़ती महंगाई और देशभर में जरूरी सामान की कमी के बाद लोगों का गुस्सा फूटने लगे। पूरे श्रीलंका से बड़ी भीड़ राजधानी कोलंबो पहुंची। भीड़ पर आंसू गैस के गोले दागे गए और पानी की बौछार की गई, लेकिन विद्रोही डटे रहे। अंत में 13 जुलाई 2022 को विद्रोहियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा। 

 

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बांग्लादेश: जुलाई 2024 में आरक्षण के खिलाफ बांग्लादेश में छात्रों का आंदोलन शुरू हुआ। सरकार ने कदम पीछे तो आंदोलन थम गया। अगस्त में चुनाव में धांधली और आंदोलन में मारे गए साथियों के खिलाफ बांग्लादेश में छात्रों का आंदोलन दोबारा उग्र हो उठा। 5 अगस्त को उग्र भीड़ ढाका पहुंच गई। पूरे ढाका में आगजनी, लूटपाट और हिंसक की तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी। 5 अगस्त की दोपहर को तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ने के बाद भारत में शरण लेनी पड़ी।

 

नेपाल: नेपाल की सरकार ने यूट्यूब समेत कुल 26 एप पर प्रतिबंध लगाया। इसके बाद जेन जी ने अपना विरोध प्रदर्शन शुरू किया। बाद में लोगों का विद्रोह भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार के खिलाफ लामबंद हो गया। एक दिन की हिंसा के बाद नेपाल की सरकार ने घुटने टेक दिया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। प्रदर्शनकारियों ने संसद समेत अहम इमारतों पर आग लगा दी। पूरे देश में लूटपाट और हिंसा का दौर जारी है। सेना ने मोर्चा संभाल लिया है। पूरे देश में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है।

नाजुक मोड़ पर पाकिस्तान क्यों?

पड़ोसी देश पाकिस्तान बारूद की ढेर पर बैठा है। जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान सेना पर लगातार दमनकारी हथकंडे अपनाने का आरोप लगा रहे हैं। वह देश की जनता को 1971 के बांग्लादेश विद्रोह की याद दिलाते हैं। उनका कहना है कि अब लोगों की आवाज सुनने का समय आ चुका है। वह सेना के खिलाफ लोगों को उठ खड़े होने की अपील कई बार कर चुके हैं। 9 मई 2023 को पाकिस्तान में इमरान खान की गिरफ्तारी पर भड़की हिंसा ने सेना की चूल्हे हिला दी थी। आज पाकिस्तान उसी नाजुक मोड़ पर है। किसी भी वक्त वहां कुछ भी हो सकता है।

 

 

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