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न शराब की दुकान, न मशीनों से काम, गांधी के रास्ते पर चलने वाला गांव

कर्नाटक के बेलगावी का हुडली गांव ऐतिहासिक महत्व रखता है और उसने इस महत्व को आज भी बरकरार रखा है। यह गांव दशकों बाद भी गांधीवादी रास्ते पर चल रहा है।

Gandhi Ashram hudli village

हुडली गांव, Photo: Gandhi Ashram

कांग्रेस पार्टी अपना अपनी कार्य समिति की बैठक इस बार कर्नाटक के बेलगावी में कर रही है। इसे 'नव सत्याग्रह' का नाम दिया गया है। यह वही जगह है जहां ठीक 100 साल पहले महात्मा गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। 'जय बापू, जय भीम और जय संविधान' जैसे नारे देकर कांग्रेस एक नई दिशा तलाशने की कोशिश में है। पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस ने संविधान के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। डॉ. भीमराव आंबेडकर को प्रमुखता से अपने विचारों में शामिल किया है। ऐसे में इस कार्यक्रम के जरिए बेलगावी इन दिनों चर्चा में है। बेलगावी के बहाने ही हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं जो इस शहर से थोड़ा दूर है लेकिन महात्मा गांधी के विचारों के बिल्कुल पास है। यह गांव दशकों बाद भी महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चल रहा है। लोग बताते हैं कि किसी भी तरह के काम के लिए यहां मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह गांव आज भी चरखा चला रहा है।

 

हम बात कर रहे हैं बेलगावी से लगभग 30 किलोमीटर दूर बसे गांव हुडली की। 17 अप्रैल 1937 से 24 अप्रैल 1937 के बीच महात्मा गांधी इस गांव में आकर रहे थे। स्वतंत्रता सेनानी गंगाधरराव देशपांडे के निमंत्रण पर आए महात्मा गांधी ने तब जो संदेश दिए वे कई पीढ़ियों के बाद भी इस गांव के लोगों के मन में बसे हुए हैं। 'कर्नाटक का शेर' कहे जाने वाले गंगाधरराव देशपांडे इसी गांव के निवासी थे। महात्मा गांधी की अगवानी कर चुके इस गांव को उम्मीद है कि इस बार जब गांधी परिवार के सदस्य बेलगावी आएंगे तो अपने महान पुरखे से जुड़े इस गांव का भी दौरा करेंगे। 

 

खास है यह गांव

 

बताया गया है कि जिस आश्रम में महात्मा गांधी ठहरे थे, वह तो अब नहीं बचा है लेकिन 1982 में कर्नाटक सरकार ने यहां एक गांधी-गंगाधरराव स्मारक जरूर बनवाया था। अब कांग्रेस के इस कार्यक्रम से पहले इस स्मारक को भी चमका दिया गया है। इस आश्रम में आज भी महात्मा गांधी की तस्वीरें रखी हैं और एक छोटा सेक्शन खादी के लिए भी है। लगभग 500 परिवारों वाले इस गांव के 200 परिवार खादी से जुड़े काम ही करते हैं और हर साल करोड़ों के खादी उत्पाद भी यहां से बेचे जाते हैं। रोचक बात यह है कि खादी से जुड़े जितने भी काम यहां होते हैं, उनके लिए आज भी बिजली की मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता है। यहां के लोग सारा काम हाथ से चलने वाले उपकरणों जैसे कि चरखे से ही करते हैं।

 

इस गांव में शराब की एक भी दुकान नहीं है। न ही इस गांव में कहीं पर आपको बीड़ी या सिगरेट भी नहीं मिलेगा। 60 पर्सेंट लिंगायत और 30 पर्सेंट SC-ST जनसंख्या वाले इस गांव में कभी धर्म आधारित या जाति आधारित हिंसा नहीं हुई। यहां तक कि इस गांव में जाति के आधार पर बस्तियां भी नहीं बंटी हैं। गांव के लोग बहुत अमीर नहीं हैं लेकिन इन्हें गर्व है कि ये लोग महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चल रहे हैं और उनकी सीख को आज भी जिंदा रख पा रहे हैं।

 

खादी के अलावा अन्य स्वदेशी उत्पादों से जुड़कर काम करने वाले इस गांव के लोग इस बार बेताबी से इंतजार कर रहे हैं कि जब बेलगावी में गांधी परिवार के लोग जुट रहे हैं तो वे यहां भी आएं। 

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