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जब देश की बिजली के लिए डुबा दी गई पुरानी टिहरी

भिंलगना और भागीरथी के संगम पर बनाया गया टिहरी बांध आज तमाम वजहों से मशहूर है। इसकी एक वजह यह भी है कि अपने विकास के क्रम में यह एक पूरे शहर को ही निगल गया है।

Images of Old Tehri City

पुरानी टिहरी की तस्वीरें, Image Credit: Social Media

उत्तराखंड के टिहरी शहर में नई और पुरानी टिहरी बन गई हैं। वजह है यहां पर बना एक बांध। वही बांध जिसके बारे में कहा जाता है कि अगर यह टूट गया तो पूरा दिल्ली शहर भी डूब सकता है। खैर, न तो यह डैम अभी तक टूटा है और न ही दिल्ली डूबी है। हालांकि, पुराना टिहरी शहर इसी बांध के पानी में लगभग दो दशक से डूबा हुआ है। यहां के लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए, सैकड़ों के घर वैसे के वैसे ही डूब गए और टिहरी नरेश का राजमहल तक डूब गया। आज भी जब कभी पानी कम होता है तो यह महल दिखने लगता है। 2023 में जब यह महल दिखा तो टिहरी की महारानी और तत्कालीन सांसद रहीं माला राज लक्ष्मी शाह भावुक हो गईं।

 

18वीं शताब्दी की शुरुआत में राजा सुदर्शन शाह ने यह छोटा सा शहर बसाया। उसी वक्त राजा के ही मुख्य पुजारी ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह शहर 200 साल से ज्यादा नहीं टिकेगी। यह भविष्यवाणी कालातंर में लगभग सच हो गई और अब इसका वजूद खत्म हो चुका है। हालांकि, इस शहर के बनने और फिर डूब जाने के बीच बहुत कुछ घटा। मसलन, वह क्लॉक टावर 1897 में बना जो इस शहर की आखिरी यादों के रूप में लोगों की आंखों के सामने घूम जाता है। यह क्लॉक टावर रानी विक्टोरिया की डायमंड जुबली मनाने के लिए बनाया गया था। अभी भी पानी कम हो जाने पर यह क्लॉक टावर नजर आ जाता है और इसे देखकर लोगों का दर्द एक बार फिर कुरेद उठता है।

 

क्यों बना टिहरी बांध?

 

हाथ से बने कागजों के लिए मशहूर रहा यह शहर पानी में डूब चुका है। दरअसल, देश को आजादी मिलने के साथ ही आत्मनिर्भरता पर जोर दिया जा रहा था। पंडित नेहरू की अगुवाई में देशभर में कई बांध बनाए जा रहे थे। इन्हीं बांधों के सहारे बिजली बनाने, सिंचाई परियोजनाएं बनाने की कोशिश की जा रही थी। इसी क्रम में साल 1949 में फैसला हुआ कि टिहरी में भी एक बांध बनाया जाएगा।

 

इसके लिए वह जगह चुनी गई जो भिलंगना, भागीरथी और लुप्त हो चुकी घृत गंगा के संगम पर बनाया गया। पहले त्रिहरी नाम से मशहूर इस शहर को समय के साथ टिहरी कहा जाने लगा। बांध बनाने के लिए साल 1961 में जांट और सर्वे शुरू किया गया। साल 1965 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री के एल राव ने ऐलान किया कि टिहरी मेंबांध बनाया जाएगा। शुरुआत में योजना आयोग ने लक्ष्य रक्षा कि 197।92 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे और यहां से 600 मेगावाट बिजली पैदा की जाएगा।

 

1976 में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मंजूरी दे दी और साल 1978 में काम भी शुरू हो गया। हालांकि, तब भारत के पास पैसों और संसाधनों के लिए दूसरे देशों का भी मुंह देखना पड़ रहा था। बार-बार रुक रहे इस प्रोजेक्ट के लिए सोवियत यूनियन ने 1986 में मदद दी लेकिन वहां अस्थिरता आ जाने की वजह से यह प्रोजेक्ट एक बार फिर से रुक गया। साल 1988 में यह प्रोजेक्ट तत्कालीन और संयुक्त उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग से लेकर नई बनाई गई संस्था टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (THDC) को सौंप दिया गया।

संतों ने भी किया विरोध

 

इस दौरान काम जारी रहा। पर्यावरण से जुड़ी संस्थाओं, सरकारी संस्थाओं, स्थानीय लोगों की आपत्तियां आती रहीं, लोग विरोध करते रहे लेकिन काम चलता रहा। भागीरथी का पानी रोकने की वजह से हिंदू संतों ने भी इसका विरोध किया लेकिन प्रोजेक्ट चलता रहा और बांध बनता रहा। 1990 में इस प्रोजेक्ट को 3 स्टेज का बनाने का ऐलान किया गया और 2400 मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा गया।

 

2006 आते-आते बांध पूरी तरह तैयार हो चुका था और इस बांध का पानी लगभग 42 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भरा जाना था। इस खबर ने स्थानीय लोगों की चिंताओं को अब हताशा में बदलना शुरू कर दिया थआ। भूकंप के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में बनाए जा रहे इस बांध के खिलाफ लोगों ने जमकर आवाज उठाई। एक तरफ उनके अपने घर छिन जाने का खतरा था तो दूसरी तरफ नदियों और पहाड़ों से अलग किस्म का लगाव। सरकारी योजनाओं के तहत तय हुआ कि लोगों को नई टिहरी में बसाया जाएगा और यह इलाका खाली ही करना पड़ेगा। हालांकि, कई स्थानीय लोग आज भी बताते हैं कि उन्हें कभी विस्थापित नहीं किया गया।

पानी, विस्थापन और दर्द भरी यादें

 

साल 2005 से 2006 के वक्त को टिहरी के डूबने के लिए जाना जाता है। हालांकि, असलियत यह है कि यह शहर साल 2001 से डूबना शुरू हो गया था। पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा जैसे हजारों लोग प्रदर्शन करते रहे लेकिन आखिरकार साल 2001 से यह शहर डूबने लगा। जो शहर डूब रहा था उसी में खुद सुंदरलाल बहुगुणा का भी घर था। 10 हजार से ज्यादा लोग अपना आशियाना अपनी ही आंखों के सामने गंवा रहे थे। आंखों में आंसू लिए लोगों के दर्द का दरिया शायद उस बांध से कहीं बड़ा था लेकिन अफसोस कि उससे बिजली नहीं बन सकती था। असहाय सुंदरलाल बहुगुणा ने इसे गंगा की हत्या बताया और 30 साल बढ़ी अपनी दाढ़ी कटवा दी और सिर मुंडवा लिया।

 

2001 में शुरू हुआ यह डूबने का सिलसिला 2006 तक चला। 125 से ज्यादा गांव धीरे-धीरे डूबते गए। काफी ऊंचा दिखने वाला घंटाघर सबसे आखिर में डूबा, राजमहल भी गया। आखिरकार लोगों ने भी हार मान ली। मौजूदा समय में राज लक्ष्मी शाह जैसे लोग इसे अपना बलिदान बताते हैं और यह कहते हैं कि उन्होंने देश के लिए अपने घर कुर्बान किए हैं।

अब क्या है हाल?

 

मौजूदा समय में इस प्रोजेक्ट के तीन हिस्से हैं। टिहरी डैम एंड हाइड्रो पावर प्लांट (1000 मेगावाट), कोटेश्वर हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (400 मेगावाट) और टिहरी पम्प्ड स्टोरेज प्लांट (1000 मेगावाट) में बिजली बनाई जा रही है। यह बांध नीचे 1125 मीटर और ऊपर 575 मीटर चौड़ा है। बांध की वजह से बनी झील 42 वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। यहां लगे पावर प्लांट से देश के 9 राज्यों में बिजली जाती है। इतना ही नहीं, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के पीने के पानी का इंतजाम भी इसी बांध के जरिए होता है।

 

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