फसलों की मिक्स ब्रीड से फायदा या नुकसान? वैज्ञानिक से समझिए
कृषि वैज्ञानिक बेहतर पैदावार और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए फसलों की संकर प्रजातियों पर शोध करते हैं। इनसे किसानों को फायदा क्या होता है, सेहत पर इसका प्रभाव क्या है, जोखिम क्यों हैं, आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब, विस्तार से।

नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत सरकार संकर बीजों को उन्नत करने पर जोर देती है। (तस्वीर-PTI)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब साल 2014 में प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था। वे कई बार सार्वजनिक मंचों से अपने इस वादे को दोहराते भी हैं। कृषि वैज्ञानिकों का एक धड़ा मानता है कि फसलों की जो मौजूदा किस्में हैं, उनमें जेनेटिक बदलाव करके उनका उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, जिससे किसानों की आय बढ़ सकती है। ज्यादा अनाज मतलब ज्यादा आय। चीन और अमेरिका जैसे देशों ने फसलों की उन्नत किस्मों पर खूब काम किया है, यही वजह है कि वे देश की तुलना में ज्यादा अनाज उगाते हैं।
बीजेपी सासंद नवीन जिंदल ने फसलों के उत्पादन और हाइब्रिड फसलों से जुड़े कुछ सवा लोकसभा में कृषि और किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से पूछा। उन्होंने सवाल किया, 'क्या इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चरल रिसर्च (ICAR) ने कुछ खास गुणों वाली फसलों की नई किस्में विकसित की हैं, अगर हां तो वे किस्में कौन सी हैं। फसलों की इन किस्मों को विकसित करते समय जलवायु परिवर्तन और कुपोषण की दोहरी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है। फसलों की नई किस्में किसानों को खेती के लिए कब तक उपलब्ध हो जाएंगी?'
कृषि मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि 27 से ज्यादा फसलें ऐसी हैं, जिन्हें उन्नत बनाया गया है और किसान उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। जनवरी 2024 से ही इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चरल रिसर्च (ICAR) की पहल पर नेशनल एग्रिकल्चर रिसर्च सिस्टम (NARS) और दूसरे विश्वविद्यालयों में फसलों पर लंबे शोध के बाद खेत फसलों की 524 और बागबानी फसलों की 167 संकर किस्में विकसित की गई हैं।
किन अनाजों की बनाई गईं संकर किस्में?
चावल की 126 किस्में बनाई गई हैं। कृषि वैज्ञानिक और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्याल में असिस्टेंट प्रोफेसर अमरदीप सिंह बताते हैं कि बीजों को विकसित करने के बाद उनका नामकरण होता है। जैसे अगर गेंहू की नई किस्म विकसित की गई है तो उसका नाम गेंहू 19 के तौर पर रख सकते हैं। कृषि मंत्रालय के मुताबिक विकसित बीजों के नाम, गेंहू 22, मक्का 51, सोरघम 12, बाजरा 13, छोटे मिलेट (21), जौ 1 हैं। तिलहन 55, सरसों 8, सोयाबीन 12, चना 19, अरहर 4, तिल 5, सूरजमुखी 3, रामतिल 2, अरंडी 2, और दलहन 69 हैं। चना 19, अरहर 4, मसूर 7, मटर 6, उड़द 6, मूंग 15, लोबिया 3, लैथराइस 2, मोठबीन 2, राजमा 1, कुलथी 1, फबाबीन 1, इंडियन बीम को भी विकसित किया गया है।
व्यावसाहिक फसलों की 109 किस्में विकसित की गई हैं। कपास की 89, जूट 5, मेस्टा 1, गन्ना 12 और तंबाकू 2 विकसित किया गया है। चारा फसलों की 24 किस्में विकसित की गई हैं। बाजरा 5, चारा मक्का 6, चारा सोरघम 13, दाना चौलाई 7, विंग्डबीन 2, लिंगड़ा 1, असालियो 1 किस्म विकसित की गई है। 11 अगस्त 2024 को इनमें से 107 किस्मों को किसानों के लिए उपलब्ध करा दिया गया है।
किन सावधानियों का रखा गया है ध्यान?
कृषि मंत्रालय का कहना है कि जब इन फसलों को विकसित किया जा रहा था, तब जलवायु और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखकर ही इन्हें तैयार किया गया है। ये फसलें पोषण से भरपूर हैं और इनका स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ रहा है। इनमें से 92 किसमें ऐसी हैं, जिन्हें प्राकृतिक चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया गया है।
कुछ फसलें ज्यादा पानी में नहीं होती हैं, कुछ फसलें बिना पानी के नहीं होती हैं, कुछ फसलें बाढ़ की स्थिति में खराब हो जाती हैं, कुछ को ज्यादा तापमान चाहिए, कुछ को कम। इन फसलों को मौसम और परिस्थितियों के सापेक्ष अनुकूलन के हिसाब से तैयार किया गया है। किसी किस्म को तभी सार्वजनिक किया जाता है, जब इन्हें वैज्ञानिक पुख्ता कर देते हैं। ऐसी बीजों के तैयार में 3 से 4 साल का समय लगता है।
हाइब्रिड फसलों की जरूरत क्या है?
कृषि वैज्ञानिक डॉ. अमरदीप सिंह बताते हैं कि फसलों की किस्मों में बदलाव करने के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव होते हैं। वैज्ञानिक कृषि अनुसंधान के सही पहलुओं पर जोर देते हैं, जिससे सिमटती जमीनों में ज्यादा से ज्यादा अन्न का उत्पादन हो सके। कृषि योग्य भूमि लगातार कम हो रही है, आबादी बढ़ रही है, ऐसी स्थिति में एक समय ऐसा भी आ सकता है, जब देश में खाद्यान्न संकट हो। ऐसी स्थिति न होने पाए, इसलिए कृषि वैज्ञानिक उन संकर किस्मों पर जोर दे रहे हैं जो सीमित संसाधनों में ज्यादा उत्पादन कर सकें।
संकर किस्मों में बदलाव क्या होते हैं?
असिस्टेंट प्रोफेसर अमरदीप सिंह बताते हैं कि संकर किस्मों के चलते उत्पादन तो बढ़ जाता है लेकिन बीजों के राइबो न्यूक्लिक एसिड (RNA) में बदलाव होते हैं। सेहत पर इसका असर जानने के लिए दशकों लग सकते हैं लेकिन किसान को प्रत्यक्ष नुकसान होता है। पहले किसान फसलों के कुछ हिस्से को अगले साल बुवाई के लिए रख लेते थे। अब हर बार उन्हें नए बीजों की जरूरत पड़ती है। वजह ये है कि पहले अगर 100 बीज में 95 बीज बोने के बाद उग आते थे तो अब यह दर 30 फीसदी तक घट जाती है। किसानों को इससे नुकसान होता है, उन्हें ज्यादा अनाज रखना पड़ता है। कृषि पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।
जोखिम क्या हैं?
डॉ. अमरदीप सिंह बताते हैं कि संकर बीजों के बढ़ते चलन की वजह से पारंपरिक बीज गुम होने लगते हैं या लुप्त हो जाते हैं। स्वाद में भी इसका असर पड़ सकता है और सेहत को लेकर भी इसका खराब असर देखने को मिल सकता है। दक्षिण अफ्रीकी देशों में पैदा होने वाले चावल की वजह से एक बड़ी आबादी को घेंघा रोग हो गया था। वहां आयोडीन की कमी से लोग जूझ रहे थे। कृषि वैज्ञानिकों ने इस पर दशकों शोध किया, उन्नत बीजों के जरिए उन पोषक तत्वों को डाला किया, जिनकी वजह से आयोडीन की कमी न होने पाए। धीरे-धीरे वहां बदलाव नजर आने लगे।
डॉ. अमरदीप सिंह ने बताया कि बीटी बैंगन का दुनिया ने विरोध किया था। वजह ये थी कि इस बैंगन के अपर लेयर को इंसान पचा नहीं पाता था और इसकी वजह से डिहाइड्रेशन की आशंका बढ़ रही थी। इसका प्रोटीन लेयर ज्यादा सघन था, जिसे आम आदमी पचा नहीं पाता। इससे बैंगन की उपज तो बढ़ जाती लेकिन नुकसान ज्यादा होता। संकर किस्में, वक्त की जरूरत हैं, जिन्हें बेहतर करने की दिशा में काम किया जा रहा है। ग्लूटन फ्री अनाज पर भी जोर दिया जा रहा है। ये संशोधन ज्यादा पैदावार बढाने के लिए ही किए जाते हैं, स्वास्थ्य के लिए ये बहुत नुकसानदेह साबित हुई हों, ऐसी स्टडी कम सामने आई है। डॉ. अमरदीप बताते हैं कि जिन फसलों में जो हानिकारक तत्व पाए जाते हैं, उन्हें दुरुस्त करने के लिए भी काम किया जाता है। उनकी जीन मॉडिफिकेशन पर काम किया जाता है। ऐसे में संकर किस्म के बीज ज्यादा गुणकारी बनाए जाते हैं। वैज्ञानिक इन बातों का ख्याल रखते हैं।
डॉ. अमरदीप सिंह बताते हैं कि चीन और अमेरिका जैसे कुछ देशों ने हाइब्रिड फसलों पर खूब काम किया है। चावल और गेहूं पर सबसे ज्यादा प्रयोग किए गए हैं। जिन जगहों पर पैदावार बेहद कम थी, वहां ज्यादा पैदावार हुई। भारत नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन (NFSM) के जरिए खाद्य सुरक्षा के लिए ऐसे अनुसंधान करता है। हाइब्रिड टेक्नोलॉजी के जरिए चीन और अमेरिका ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं। वहां प्रति हेक्टेयर 8 से 10 मीट्रिक टन धान पैदा होता है। भारत में यह आंकड़ा केवल 4 से 5 मीट्रिक टन है। भारत की आबादी ज्यादा है और खाद्य चुनौतियां बड़ी हैं। यही वजह है कि भारत में ज्यादा अनाज पैदा करने पर जोर दिया जा रहा है।
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