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'मर जाऊंगा, पाकिस्तान नहीं जाऊंगा', नोटिस पर J-K के पुलिसकर्मी का जवाब

जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक कांस्टेबल और उसके परिवार को भारत छोड़ने का नोटिस मिला। मगर परिवार ने पाकिस्तान जाने से साफ इनकार कर दिया। अब हाईकोर्ट से इस परिवार को बड़ी राहत मिली है।

Attari-Wagah Border

अटारी-वाघा बॉर्डर। Photo Credit: PTI

पहलगाम हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। भारत ने अपने यहां रह रहे सभी पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द कर दिया है। अटारी-वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजा जा रहा है। इस बीच, जम्मू-कश्मीर पुलिस में 27 साल सेवा दे चुके कांस्टेबल इफ्तखार अली और उनके परिवार को भी भारत छोड़ने का आदेश मिला तो उनके होश उड़ गए। इफ्तखार अली ने कहा कि मैं मर जाऊंगा लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊंगा। 

 

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इफ्तखार अली ने कहा कि जैसा आपने पाकिस्तान के बारे में सुना है, वैसा हमने भी सुन रखा है। यहां भारत में पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार, दोस्त समेत सबकुछ है। पाकिस्तान में कुछ भी नहीं है। हालांकि इफ्तखार अली को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट से राहत मिल गई है। 

 

पुंछ के रहने वाले हैं इफ्तखार अली


इफ्तखार अली की उम्र 45 साल है। वे जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले के सलवाह गांव के रहने वाले हैं। पहलगाम हमले के सात दिन बाद 29 अप्रैल को इफ्तखार और उनके आठ भाई-बहनों को 'भारत छोड़ने' का नोटिस मिला। मगर उनकी पत्नी और तीन नाबालिग बेटों को कोई नोटिस नहीं दिया गया। इसके पीछे वजह यह थी कि इन सभी का जन्म भारत में हुआ था। 

 

हाईकोर्ट से मिली राहत

परिवार को बिछड़ता देख इफ्तखार अली के होश उड़ गए। उन्होंने तुरंत सरकार के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। नोटिस के तीन दिन बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने परिवार को राहत दी और प्रशासन के आदेश पर रोक लगा दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार को भारत छोड़ने पर मजबूर न किया जाए। इसके बाद परिवार पुंछ लौट आया है।

 

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याचिका में परिवार ने क्या कहा? 

अपनी याचिका में परिवार ने कहा कि उनके पिता फकुरदीन 1955 के नागरिकता अधिनियम के अनुसार 'वंशानुगत राज्य विषय' और भारतीय नागरिक थे। परिवार के पास सलवाह गांव में लगभग 17 एकड़ जमीन और अपना घर है। उनके पिता को '1957 में जम्मू-कश्मीर संविधान के लागू होने के वक्त भी' प्रदेश का स्थायी निवासी माना गया था।


 1965 जंग के दौरान शिविर में रहा परिवार


1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। इस दौरान पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पास कुछ हिस्से पर कब्जा जमा लिया था। इस वजह से इफ्तखार अली के परिवार को पाकिस्तान के कब्जे वाले त्रालखल के एक शिवर में कई साल बिताने पड़े। उस वक्त इफ्तखार की उम्र महज तीन साल थी। इसी शिविर में इफ्तखार के छह और भाई-बहनों ने जम्म लिया। मगर बाद में 1983 में इफ्तखार अली का परिवार पुंछ के सलवाह गांव लौट आया था।

 

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1998 में मिली थी इफ्तार को पहली पोस्टिंग

इफ्तखार अली की पहली तैनाती 1998 में रियासी जिले की देवल पुलिस चौकी में हुई थी। पुंछ के डिप्टी कमिश्नर द्वारा जारी नोटिस के बारे में इफ्तखार ने कहा कि मैं यह जानकर चौंक गया कि मुझे पाकिस्तानी नागरिक बताया जा रहा है। मैंने कहा कि मैं मरना पसंद करूंगा, लेकिन इस पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा। इसके बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि इस दौरान इफ्तखार और उनके बड़े भाई जुल्फिकार को बेलीचराना में पुलिस हिरासत में भी रखा गया। 

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