अमेरिका की धमकी और इंदिरा गांधी की जिद, 1971 की जंग की कहानी
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग सिर्फ 13 दिन में ही खत्म हो गई थी। भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को 13 दिन में ही घुटने पर ला दिया था।

पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन। (AI Generated Image)
भारत और पाकिस्तान के बीच 4 दिन की तनातनी फिलहाल खत्म हो गई है। 7 मई को भारतीय सेना के 'ऑपरेशन सिंदूर' से शुरू हुई यह तनातनी पाकिस्तान सेना की 'सीजफायर' की पहल पर खत्म हो गई। यह पहली बार है जब 4 दिन में भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो गया। वैसे औपचारिक तौर पर भारत-पाकिस्तान में जंग शुरू तो नहीं हुई थी लेकिन सीमा पर जिस तरह से ड्रोन अटैक और फिर जवाबी कार्रवाई चल रही थी, वह किसी जंग से कम भी नहीं थी।
भारत और पाकिस्तान की इस तनातनी के बीच 1971 की जंग और इंदिरा गांधी की चर्चा भी खूब हो रही है। 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को 13 दिन में ही घुटने पर ला दिया था। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे और उससे नया मुल्क बांग्लादेश बना था।
1971 में जंग की शुरुआत भी पाकिस्तान की तरफ से ही की गई थी। इसके जवाब में भारत ने जब कार्रवाई की तो 13 दिन में ही पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया। पाकिस्तान के 93 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए थे। यह सब तब हुआ था, जब भारत पर इस जंग को लेकर अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी खूब था। मगर भारत ने इन सबको नजरअंदाज किया और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर सबक सिखा दिया।
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कैसे हुई थी इस जंग की शुरुआत?
पूर्वी पाकिस्तान, जो आज बांग्लादेश है, वहां पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ लोग सड़कों पर थे। पाकिस्तान की सेना पूर्वी सेना में जबरदस्त अत्याचार कर रही थी। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से परेशान होकर वहां के लोग भारत आ रहे थे। भारत इससे भी परेशान था। भारत काफी पहले से ही पाकिस्तान को सबक सिखाने की सोच रहा था।

1971 की अप्रैल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना से जंग की तैयारी करने को कहा। हालांकि, तब आर्मी चीफ जनरल सैम मानेकशॉ ने जंग लड़ने से मना कर दिया था।
जनरल मानेकशॉ ने कहा, 'अभी अप्रैल का महीना है। दो महीने में पूर्वी पाकिस्तान में बारिश शुरू हो जाएगी। नदियां उफान पर आ जाएंगी। परेशानी होगी। इससे हम जंग हार जाएंगे।' अप्रैल में जंग न शुरू करने का दूसरा कारण चीन भी था। जनरल मानेकशॉ का मानना था कि दिसंबर में जंग शुरू होती है तो इससे चीन की चुनौती भी कम होगी, क्योंकि तब पहाड़ों पर जमकर बर्फबारी होती है।
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पाकिस्तान का आत्मघाती हमला
पाकिस्तान में उस वक्त जनरल याह्या खान के पास सत्ता थी। जनरल याह्या खान भारत के साथ जंग लड़ने पर उतारु थे। नवंबर के आखिरी में 2000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक पंजाब की तरफ बढ़ रहे थे। जवाब में भारत ने भी सेना तैनात कर दी थी। 30 नवंबर को जनरल याह्या खान, पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल अब्दुल हामिद खान और चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल गुल हसन खान के बीच बैठक हुई। इस बैठक में भारत पर हवाई हमला करने का फैसला लिया गया।
1971 की 3 दिसंबर की शाम 5.30 बजे भारत पर हवाई हमले करने का आदेश आया। उसी शाम 5.40 बजे पाकिस्तानी सेना ने पठानकोट एयरबेस पर हमला कर दिया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना भारत के 11 सैन्य ठिकानों पर हमला किया।
पाकिस्तानी हमलों के बाद उसी शाम प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को संबोधित किया और जंग का ऐलान किया। उसी रात भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान पर हमला कर दिया। रातभर पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर भारतीय वायुसेना ने बम बरसाए। भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी के साथ-साथ पूर्वी पाकिस्तान में भी पाकिस्तानी सेना के ठिकानों पर बमबारी की।
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अमेरिका-रूस और भारत
यह वह दौर था जब अमेरिका की दोस्ती भारत से ज्यादा पाकिस्तान से थी। अमेरिकी पत्रकार गैर बेस ने एक बार कहा था, 'राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन बहुत कम लोगों को पसंद करते थे लेकिन उन्हें जनरल याह्या खान बहुत पसंद थे।'
अमेरिका और सोवियत संघ (अब रूस) के बीच कोल्ड वॉर ने पाकिस्तान को अमेरिका के करीब ला दिया था। जबकि सोवियत संघ की करीबियां भारत से थीं।

अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने कई बार संयम बरतने को कहा। उन्हें डर था कि अगर इस जंग में पाकिस्तान हार गया तो भारत का दबदबा हो जाएगा, जिससे सोवियत संघ की स्थिति मजबूत हो जाएगी। जबकि, याह्या खान को डर था कि पूर्वी पाकिस्तान में जिस तरह का विद्रोह है, अगर उसे रोका नहीं गया तो यह पाकिस्तान से अलग हो सकता है।
नवंबर 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वॉशिंगटन में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से मुलाकात की। इंदिरा गांधी ने उनसे कहा कि वह युद्ध नहीं चाहतीं लेकिन निक्सन को उनपर भरोसा नहीं हुआ। उस बैठक में निक्सन के साथ उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर भी मौजूद थे। उस बैठक में निक्सन ने जंग टालने के लिए कई प्रस्ताव रखे, जिसे इंदिरा गांधी सिर्फ सुनती ही रहीं। हालांकि, इंदिरा गांधी ने यह जरूर साफ कर दिया था कि अगर पाकिस्तान पीछे हटता है तो जरूरी नहीं कि भारत भी ऐसा ही करे।
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अमेरिकी बेड़ा, इंदिरा गांधी और सोवियत संघ
अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान की जंग को रुकवाने की पूरी कोशिश की। मगर याह्या खान की हरकत और इंदिरा गांधी की जिद ने इस जंग को शुरू कर दिया। 3 दिसंबर 1971 को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया।
अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को पाकिस्तान की हर का अंदाजा हो गया था। लिहाजा अमेरिका ने अपनी नौसेना का 7वां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया। यह अमेरिकी नौसेना का सबसे शक्तिशाली बेड़ा था, जो प्रशांत महासागर में तैनात था। इसमें कई क्रूजर, ड्रिस्टॉयर, सबमरीन और 70 लड़ाकू विमान थे।
हेनरी किसिंजर अपनी किताब 'व्हाइट हाउस ईयर्स' में लिखते हैं कि अमेरिकी नौसेना का 7वां बेड़ा बंगाल की खाड़ी में इसलिए भेजा गया था, ताकि भारत पर युद्ध खत्म करने का दबाव बनाया जा सके। साथ ही यह सोवियत संघ को भी चेतावनी थी।

भारत ने सोवियत संघ से मदद मांगी। अगस्त 1971 में भारत और सोवियत संघ के बीच एक संधि हुई थी। इसके तहत सोवियत संघ ने भारत को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन देने का वादा किया था। खैर, अमेरिकी बेड़े का जवाब देने के लिए भारत ने जब मदद मांगी तो सोवियत संघ की नौसेना के जंगी जहाज भी बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ने लगे।
बंगाल की खाड़ी में जब यह सारा खेल चल ही रहा था कि 13 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका पर कब्जा कर लिया। जब तक अमेरिकी बेड़ा बंगाल की खाड़ी पहुंचता, उससे पहले ही 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया। भारत, सोवियत संघ और अमेरिका के बीच तनातनी चलती रही। सोवियत संघ का बेड़ा अमेरिकी बेड़े के पीछे तब तक लगा रहा, जब तक जनवरी 1972 में वह वापस नहीं लौट गया।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'अगर अमेरिकियों ने एक भी गोली चलाई या बंगाल की खाड़ी में बैठने के अलावा और कुछ किया होता तो तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो सकता है। लेकिन मैं आपको सच बताऊं मेरे दिमाग में एक बार भी यह डर नहीं आया।'
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