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जहाज बनाने में आत्मनिर्भर होने की कवायद, इस रेस में कहां खड़ा है भारत?

केंद्र सरकार ने हाल ही में जहाज निर्माण और सी सेक्टर में काम करने के लिए 69,725 करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दी है। आत्मनिर्भरता की कवायद में देश कहां खड़ा है, आइए जानते हैं।

INS Vikrant

INS विक्रांत भारत में ही बना है। (Photo Credit: PIB)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी इंटरेशनल ट्रेड शो-2025 में कहा है कि भारत को अब आत्मनिर्भर होने की जरूरत है। उन्होंने जोर दिया कि चिप से लेकर शिप डिजाइनिंग तक में भारत में सब बनेगा। भारत ने सेमीकंडक्टर सेक्टर में इंजियन सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के जरिए सरकार हजारों करोड़ के निवेश की योजना बना रही है। शिप डिजाइनिंग को लेकर भी केंद्र सरकार ने कुछ ऐसा ही प्लान तैयार किया है। 

भारत अब जहाज निर्माण पर ध्यान देगा, जिससे समुद्री इको सिस्टम मजबूत हो। सरकार ने इसके लिए हाल ही में 69675 करोड़ रुपये के एक बड़े पैकेज को मंजूरी दी है। इस पैकेज के जरिए भारत की घरेलू क्षमता मजबूत की जाएगी, ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड शिपयार्ड को बढ़ावा दिया जाएगा। भारत की भौगोलिक जरूरतें ऐसी हैं कि मजबूत समुद्री इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है।   

सरकार ने शिपबिल्डिंग फाइनेंशियल असिस्टेंस स्कीम (SBFAS) को 31 मार्च 2036 तक बढ़ा दिया है, जिस पर कुल 24736 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसका मकसद भारत में जहाज निर्माण को बढ़ावा देना होगा, जिसमें 4001 करोड़ रुपये पहले रिलीज किए जाएंगे। शिप ब्रेकिंग क्रेडिट नोट भी दिया जाएगा। एक नेशनल शिप कंस्ट्रक्शन मिशन की भी स्थापना की जाएगी। 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी:- 
सरकार मेक इन इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दे रही है। हम चाहते हैं कि चिप से लेकर शिप तक सबकुछ भारत में बने। इसके लिए हम आपके ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर ध्यान दे रहे हैं। सरकार ने 40,000 से अधिक अनुपालन खत्म कर दिए हैं और एक हज़ार से ज्यादा कानूनों को डिक्रिमिनलाइज़ किया गया है। हम आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।

शिप बिल्डिंग में भारत किस पायदान पर है?

संसद की स्थायी समिति ने जहाज निर्माण, मरम्मत और रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री पर 8 फरवरी, 2024 को एक रिपोर्ट तैयार की थी। वैश्विक जहाज निर्माण में भारत का योगदान सिर्फ 1-2% है। भारत में जहाज निर्माण की लागत ज्यादा है। शिपयार्ड्स को इन्फ्रास्ट्रक्चर का दर्जा मिला है, जिससे कम ब्याज पर लंबी अवधि के लिए फंड मिल सकता है। समिति ने सुझाव दिया कि यह दर्जा सभी जहाजों और जहाजी वाहनों को भी दिया जाए। समिति ने सुझाव दिया है कि स्टील के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए। मैरीटाइम डेवलपमेंट फंड के जरिए व्यवस्था में सुधार किया जाए। 

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भारत में जहाज बनाने वाली कंपनियों के पास ऑर्डर कम आते हैं, मुनाफा सीमित है और निवेश की कमी है। ग्रीन शिपिंग पर अगर भारत जोर देना चाहता है तो नेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस को नोडल एजेंसी बनाने की जरूरत है। जहाज बनाने वाली संस्थाओं को कम ब्याजदर पर लोन देने की जरूरत है। शिप रिपेयरिंग में भी दुनिया की तुलना में भारत का हिस्सा 1 फीसदी से भी कम है। साल 2019-20 से 2021-22 के बीच निजी शिपयार्ड्स में 725 और सरकारी शिपयार्ड्स में 448 जहाजों की मरम्मत हुई है। मुंबई, विशाखापट्टनम, पारादीप और दीनदयाल जैसे प्रमुख बंदरगाहों पर हाल के वर्षों में कोई बड़ी मरम्मत नहीं हुई।

 
भारत की रैंकिंग क्या है?

कंपेंसेटेड ग्रॉस टनेज (CGT) और क्लार्कसन रिसर्च जैसे आधिकारिक संगठनों के आंकड़ों में भारत जहाज बनाने वाले टॉप 10 देशों की लिस्ट में नहीं आता है। चीन, दक्षिण कोरिया और जापान का दबदबा करी 95 फीसदी बाजार पर है।  तुर्की, वियतनाम और फिलिपींस जैसे देश भी भारत से आगे हैं। 

भारत में क्या बनता है?

भारतत में अब विमानवाहक पोत, कोरवेट और पनडुब्बियों के बनने पर काम चल रहा है। कुछ कंटेनर जहाज भी बनाए जाते हैं। यात्री और क्रूज जहाजें भी बनाई गई हैं। भारतीय नौसेना ने हाल के वर्षों में स्वदेशी जहाज निर्माण पर जोर दिया है। भारत में शिप डिजाइनिंग होती रही है। कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL), मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) और गार्डन रिच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) जैसे भारतीय शिपयार्ड में निर्माण होता है। 

जहाज बनाने में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी सिर्फ 2 प्रतिशत से भी कम है।

स्वदेशी युद्धपोत, जिनकी दुनिया में धाक है

  • INS विक्रांत: देश का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है। यह 30 विमानों को साथ ले जा सकता है। यह CSL कोच्चि में बना है। 2 सितंबर 2022 को देश को मिला है।
  • INS कोलकाता: यह युद्धपोत भी भारत में तैयार हुआ है। स्टील्थ गाइडेड मिसाइल से लैस है, विध्वंसक है। 
  • INS कोच्चि: यह भी विध्वंसक युद्धपोत है। ज्यादातर हिस्से भारत में बने हैं। इनके अलावा भी कई युद्धपोत भारत में बने हैं।

हम क्या बना रहे हैं?

भारत के कई प्रोजेक्ट शिप बिल्डिंग में चल रहे हैं। भारत में जहाजों के कई हिस्से बनते हैं। बॉडी से लेकर पार्ट्स तक भारत बनाने लगा है। 2030 तक नौसेना को 175-200 युद्धपोत सौंपने का लक्ष्य सरकार ने रखा है। अब सरकार ने डिफेंस सेक्टर को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ आयात पर प्रतिबंध लगाया है और घरेलू कंपनियों से सामान खरीदना अनिवार्य किया है। सरकार ने रक्षा उपकरणों, सब-सिस्टम्स और कंपोनेंट्स के आयात पर चरणबद्ध प्रतिबंध लगाया है, जिससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिले। हथियार, मिसाइल सिस्टम, हेलीकॉप्टर, आर्टिलरी गन बनाने वाली कंपनियों के लिए कुछ हिस्सों को भारतीय कंपनी से ही खरीदा जा सकता है।  

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सरकार का प्लान क्या है?

केंद्र सरकार ने कहा है कि सरकार 20,000 करोड़ रुपये का मारिटाइम इनवेस्टमेंट फंड बनाएगी, जिसमें सरकार की 49% हिस्सेदारी होगी और 5,000 करोड़ रुपये का इंटरेस्ट इंसेंटिवाइजेशन फंड की व्यवस्था की जाएगी। सरकार ने शिपबिल्डिंग डेवलपमेंट स्कीम (SbDS) के लिए 19,989 करोड़ रुपये का बजट तय किया है।

  • भारत की जहाज निर्माण क्षमता को हर साल 4.5 मिलियन ग्रॉस टन तक बढ़ाना
  • बड़े जहाज निर्माण क्लस्टर, बुनियादी ढांचे का विस्तार, इंडिया शिप टेक्नोलॉजी सेंटर की स्थापना
  • जहाज निर्माण परियोजनाओं के लिए बीमा सहायता देना

सरकार इन योजनाओं पर क्या कह रही है?

  • 30 लाख नौकरियां पैदा होंगी
  • 4.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश आएगा
  • भारत की आर्थिक, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी
  • समुद्री व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं में स्थिरता आएगीभारत ग्लोबल शिप बिल्डिंग में खुद को स्थापित करेगा

जरूरी क्यों है?

भारत में सदियों से समुद्री मार्ग से व्यापार होता आया है। भारत समुद्री रास्ते से ही दुनिया से जुड़ा। समुद्री क्षेत्र, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। समुद्री मार्ग से भारत का आयात-निर्यात करीब 95% समुद्री मार्गों के जरिए होता है। कोयला, पेट्रोलियम और कंटेनर समुद्री जहाजों से लाए-ले जाए जाते हैं। भारत के आयात-निर्यात के कुल आर्थिक मूल्य का 70% हिस्सा समुद्री व्यापार से आता है।

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