केंद्र सरकार की योजना जल जीवन मिशन के लिए जल शक्ति मंत्रालय ने 2.79 लाख करोड़ रुपये मांगे थे। हालांकि, बजट जारी करने वाली समिति ने इसके बजट में कटौती का प्रस्ताव रखा है। समिति ने इस योजना के लिए 1.51 लाख करोड़ ही मंजूर करने की सिफारिश की है। इससे राज्य सरकारों पर बोझ बढ़ सकता है।
जल जीवन मिशन की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को की थी। इसके जरिए 31 दिसंबर 2024 तक 16 करोड़ ग्रामीण परिवारों में नल कनेक्शन लगाए जाने थे। दिसंबर 2024 तक 12 करोड़ परिवारों में कनेक्शन लग चुके हैं। बाकी बचे 4 करोड़ परिवारों में 31 दिसंबर 2028 तक कनेक्शन लगाए जाएंगे।
इस योजना पर आधा पैसा केंद्र और आधा राज्य सरकारें खर्च करती हैं। इसके लिए ही जल शक्ति मंत्रालय ने 2.79 लाख करोड़ रुपये का बजट मांगा था। हालांकि, समिति ने इसमें कटौती करने का प्रस्ताव दिया है। इससे 1.25 लाख करोड़ रुपये का बोझ राज्य सरकारों पर आ सकता है।
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क्या है पूरा मामला?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट को दिसंबर 2028 तक पूरा करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय ने 2.79 लाख रुपये मांगे थे। हालांकि, एक्सपेंडिचर फाइनेंस कमेटी (EFC) ने सिर्फ 1.51 लाख करोड़ की सिफारिश की है। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि EFC ने इस स्कीम का कुल बजट 9.10 लाख करोड़ से घटाकर 8.69 लाख करोड़ कर दिया।
2019 में जब 'हर घर जल' प्रोग्राम शुरू किया था, तब EFC ने इस स्कीम के लिए कुल 3.6 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा था, जबकि जल शक्ति मंत्रालय ने 7.89 लाख करोड़ मांगे थे। हालांकि, जल जीवन मिशन के डैशबोर्ड पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, 2019 से 2024 के बीच राज्यों ने 8.07 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है।
इस योजना के तहत, 19.36 करोड़ नल कनेक्शन के लिए केंद्र सरकार ने 3.59 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं। 2019 से 2024 के बीच केंद्र सरकार 2.08 लाख करोड़ खर्च कर चुकी है, इसलिए EFC ने 1.51 लाख करोड़ की सिफारिश की है।
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इसका असर क्या होगा?
EFC ने जल जीवन मिशन के लिए बजट कम करने का प्रस्ताव रखा है। अगर EFC की सिफारिशों को माना जाता है तो इसका सीधा-सीधा असर राज्य सरकारों पर पड़ेगा। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, बजट में कटौती से सीधे 1.25 लाख करोड़ रुपये का बोझ राज्यों पर बढ़ जाएगा।
महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु और असम जैसे राज्यों में अभी 32,364 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जानी है। ऐसे में इन राज्यों पर 17,348 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ जाएगा।