सीजफायर पर भरोसा नहीं, हमले का खौफ, घर लौटने को राजी नहीं कश्मीरी
जम्मू और कश्मीर के जिन सीमावर्ती इलाकों से कश्मीर और जम्मू के लोगों को निकालकर राहत शिविरों में लाया गया है, अभी वे घर लौटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो पा रहे हैं, जबकि सीजफायर लागू है। पढ़ें वजह।

बारामुला में अपने घरों से विस्थापित लोग। (Photo Credit: PTI)
'हम अपने घर नहीं लौट सकते हैं। पाकिस्तान पर भरोसा नहीं है, जब तक पूरी तरह से संघर्ष विराम समझौता लागू नहीं हो जाता है, हम अपने घरों को नहीं लौटेंगे। पाकिस्तान पर यकीन करना मुश्किल है।'
भारत-पाकिस्तान पर बसे कश्मीरियों में यह डर बना हुआ है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किय जा सकता है। पाकिस्तान कभी भी हमला कर सकता है। भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई से संघर्ष विराम समझौता लागू है लेकिन जम्मू और कश्मीर के सीमावर्ती गांवों में बसे लोग अपने घर लौटने को तैयार नहीं है। वे इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज आएगा और आम नागरिकों पर गोलीबारी नहीं करेगा।
कहां-कहां राहत शिविरों में बसे हैं लोग?
समाचार एजेंसी AFP के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन तक चली तीखी सैन्य झड़प के बाद अब दोनों देशों ने 10 मई को युद्धविराम पर सहमति जताई है। लेकिन इसके बावजूद सीमा पर रहने वाले लोग अपने घरों को लौटने से डर रहे हैं। उरी, राजौरी, पूंछ, अखनूर जैसे सीमावर्ती शहरों के लोगों को सुरक्षित जगहों पर जाने के लिए कहा गया था। कुछ लोग राहत शिविरों में हैं, कुछ लोग अपने रिश्तेदारों के घर टिके हैं, जिनके घर सीमावर्ती इलाकों से बाहर हैं।
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पाकिस्तान लगातार 7 मई के बाद से बिना उकसावे के फायरिंग कर रहा था। समाचार एजेंसी AFP ने उन लोगों से बातचीत की है, जिनके गांव सीमावर्ती इलाकों में हैं लेकिन उन्हें राहत शिविरों में रहना पड़ रहा है।

क्या कह रहे हैं विस्थापित लोग?
कृष्ण लाल दर्जी की उम्र 50 साल है। वह कश्मीर में रहते हैं और एक सप्ताह से राहत शिविर में हैं। वह अपने गांव लौटना चाहते हैं लेकिन उन्हें डर है कि यह युद्ध विराम ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगा। उन्होंने कहा, 'मैं अपने गांव जाना चाहता हूं, क्योंकि दुकान बंद रहने से हर दिन नुकसान हो रहा है। लेकिन लोग कह रहे हैं कि जंग अभी खत्म नहीं हुई।'
प्रदीप कुमार की उम्र 31 साल है। वह कश्मीर के कोटमैरा गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने कहा, 'सीजफायर की बात सुनकर कुछ लोग अपने घरों को लौट गए थे। अचानक पाकिस्तान ने गोलीबारी शुरू कर दी। पहले लगा कि हम सुरक्षित हैं लेकिन अब हमें समझ आ गया है।'

अक्षय कुमार की उम्र 30 साल है। वह नौशेरा के रहने वाले हैं। उन्होंने कहा, 'हम सरकार से और बंकर बनाने की मांग करते हैं, क्योंकि बिना इसके हम सुरक्षित नहीं हैं। जब तक पूरी तरह से सुरक्षा की गारंटी नहीं मिलती, हम घर नहीं लौट सकते।'
नरिता कौर, पूंछ के पास मांकोट गांव में रहती हैं। उनकी उम्र 52 साल है। उनका घर पाकिस्तान की तरफ से की गई गोलीबारी में तबाह हो गया है। उन्होंने कहा, 'पता नहीं मेरे घर में क्या बचा होगा लेकिन एक दिन लौटना ही पड़ेगा।'
दहशत क्यों है?
10 मई को भारत और पाकिस्तान ने शाम 5.30 पर ऐलान किया कि युद्ध विराम होगा। जैसे ही युद्ध विराम हुआ, उसके कुछ घंटों बाद ही पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी शुरू हो गई। स्थानीय लोग डर गए। जो लोग किसी तरह घर लौटे थे, उन्हें फिर से भागना पड़ा। स्थानीय लोगों को फिर गोलीबारी का डर है।

सरकार क्या कह रही है?
प्रशासनिक अधिकारी और सेना के अधिकारी अभी नहीं चाहते हैं कि सीमा से एक से दो किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोग घर लौटें। प्रशासनिक तौर पर सतर्कता बती जा रही है।
'पाकिस्तान के सीजफायर पर भरोसा नहीं'
स्थानीय लोगों को सीजफायर पर भरोसा नहीं है। 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर, पंजाब और राजस्थान में कई जगहों पर जवाबी हमले किए। कई एयरबेस को निशाना बनाने की कोशिश हुई लेकिन भारत ने इसे नाकाम कर दिया। 4 दिनों की झड़प में पाकिस्तान को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा। युद्ध विराम तो हो गया लेकिन आम लोग अब भी अपने घरों में लौटने से डर रहे हैं। लोग शांति की उम्मीद तो कर रहे हैं, लेकिन अनिश्चितता और डर के साए उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है।
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क्यों घर नहीं लौटना चाहते हैं लोग?
- बंकर: सीमा पर बंकरों की कमी है। लोग डरे हैं कि अगर घर लौट गए, गोलीबारी शुरू हुई तो मारे जाएंगे।
- भरोसा: पाकिस्तान के अतीत को देखते हुए लोग भरोसा ही नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें डर है कि पाकिस्तान फिर गोलियां बरसाएगा।
ताजा तनाव की वजह क्या है?
भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में 9 आतंकी ठिकानों पर हमला किया था। 22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में कुछ आतंकियों ने 26 मासूम लोगों पर गोलीबारी की थी, जिनमें 26 पर्यटकों की मौत हुई थी। भारत ने इसका बदला लेने के लिए ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया, जिसमें पाकिस्तान को बड़ा नुकसान हुआ।
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