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कैलाश मानसरोवर यात्रा से चीन का क्या है कनेक्शन?

भारत और चीन के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर सहमति बन गई है। इसके साथ ही 5 साल बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर शुरू हो जाएगी। ऐसे में जानते हैं कि इस यात्रा का चीन से क्या कनेक्शन है?

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कैलाश पर्वत। (Photo Credit: Toursim of India)

कैलाश मानसरोवर यात्रा 5 साल बाद फिर शुरू होगी। भारत और चीन के बीच इसे लेकर समझौता हो गया है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट भी शुरू होगी। चीन के उप विदेश मंत्री सुइ वेइदोंग से मुलाकात के बाद भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इसका ऐलान किया।


कैलाश मानसरोवर यात्रा 5 साल से बंद थी। 2020 में गलवान घाटी में दोनों देश के बीच तनाव बढ़ने के बाद से चीन ने मानसरोवर यात्रा पर रोक लगा दी थी। 


ऐसे में सवाल उठता है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा भारतीयों के लिए है। हिंदुओं के लिए पवित्र स्थल है। ऐसे में फिर चीन कौन होता है इस पर रोक लगाने वाला और मंजूरी देने वाला?

चीन का क्या कनेक्शन?

ऐसा इसलिए क्योंकि कैलाश मानसरोवर तक जाने के लिए तिब्बत से गुजरना पड़ता है। तिब्बत पर चीन का कब्जा है, इसलिए यहां चीन की मंजूरी की जरूरत होती है।


दरअसल, कैलाश मानसरोवर पर्वत तक जाने के लिए तीन रास्ते हैं। पहला है- उत्तराखंड के लिपुलेख से, जो लगभग 65 किलोमीटर लंबा है। दूसरा है- सिक्किम के नाथूला दर्रे से, जो करीब 800 किलोमीटर लंबा है। एक तीसरा रास्ता नेपाल से भी है लेकिन उसे भारत सरकार ने मान्यता नहीं दी है।


लिहाजा, कैलाश मानसरोवर तक जाने के लिए कोई सा भी रास्ता पकड़ें, उसके लिए चीन की बॉर्डर पार करना ही पड़ेगा। इसलिए चीन जब चाहे, तब इस यात्रा को रोक सकता है। मानसरोवर यात्रा के लिए चीन का विजिटर वीजा भी लेना पड़ता है।

कहां है कैलाश मानसरोवर?

कैलाश पर्वत कश्मीर से भूटान तक फैला हुआ है। कैलाश पर्वत 6,638 मीटर ऊंचा है। मानसरोवर, तिब्बत के पठार में समुद्रतल से 14,950 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसके एक तरफ कैलाश पर्वत है और दूसरी तरफ गुरला मान्धता पर्वत। मानसरोवर की परिधि 88 किलोमीटर और गहराई 90 मीटर है। कैलाश मानसरोवर का एक बड़ा इलाका चीन के कब्जे में है।

भारत-चीन के बीच हो चुके हैं दो समझौते

कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भारत और चीन के बीच दो समझौते हो चुके हैं। पहला समझौता 2013 में हुआ था, जिसके तहत लिपुलेख दर्रा से कैलाश मानसरोवर जाने पर सहमति बनी थी। दूसरा समझौता सितंबर 2014 में हुआ था, जिसमें नाथूला दर्रे से कैलाश मानसरोव तक जाने पर सहमति हुई।

क्या है इस यात्रा का महत्व?

कैलाश पर्वत न सिर्फ हिंदू बल्कि जैन और बौद्ध धर्म में भी काफी महत्व रखता है। हिंदुओं के ऋग्वेद में कैलाश पर्वत का जिक्र है। मान्यता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती कैलाश पर्वत पर ही निवास करते हैं। इसलिए ये हिंदुओं के लिए बहुत पवित्र जगह है। वहीं, जैन धर्म में मान्यता है कि पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ ने यहीं से मोक्ष प्राप्त किया था। जबकि, बौद्ध ग्रंथों में कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का केंद्र बिंदु बताया गया है।

कब होती है कैलाश मानसरोवर यात्रा?

कैलाश मानसरोवर यात्रा का समय जून से सितंबर तक होता है। इस यात्रा में जाने वाले यात्रियों को पहले ट्रेनिंग भी दी जाती है। क्योंकि इसमें कई किलोमीटर तक पैदल यात्रा करनी पड़ती है और यहां काफी ठंड भी होती है। इस यात्रा में 18 से 70 साल के लोग ही जा सकते हैं। आमतौर पर इस यात्रा को पूरा होने में 21 से 24 दिन का समय लगता है। इस यात्रा पर 1.80 से 2.50 लाख रुपये तक का खर्च आता है।


मानसरोवर, कैलाश पर्वत से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये करीब 90 किलोमीटर के दायरे में फैला है। इसके पास ही मानसरोवर झील भी है। श्रद्धालु यहां डुबकी लगाते हैं। उनकी मान्यता है कि यहां डुबकी लगाने से मोक्ष मिलता है।

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