बित्रा द्वीप: सैकड़ों परिवार उजड़ेंगे? सेना से नाराज लोग, वजह समझिए
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• LAKSHADWEEP 20 Jul 2025, (अपडेटेड 20 Jul 2025, 1:28 PM IST)
लक्षद्वीप के इस आइलैंड पर 350 से ज्यादा परिवार बसे हैं। लोगों की आजीविका मछली और नारियल तेल की खेती पर निर्भर हैं। अधिग्रहण के इस प्रस्ताव पर सबसे ज्यादा ऐतराज इन्हीं परिवारों को है।

बित्रा द्वीप, लक्षद्वीप। (Photo Credit: Social Media)
भारत के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में एक सुंदर सा कोना है लक्षद्वीप। देश के पश्चिमी तट से करीब 400 किलोमीटर दूर अरब सागर में स्थित यह द्वीप, 36 द्वीपों का समूह है। 10 द्वीपों पर ही लोग रहते हैं। इन्हीं द्वीपों में से एक द्वीप है बित्रा द्वीप। लक्षद्वीप प्रशासन ने इसे सेना को सौंपने का फैसला किया है। यहां 350 से ज्यादा परिवार बसे हुए हैं। इन परिवारों के सिर पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। कृषि और मछलियों पर इन परिवारों की आजीविका निर्भर है। इन परिवारों का कहना है कि अगर यहां से हटाए गए तो कहां जाएंगे, क्या करेंगे, रोजगार का क्या होगा।
लक्षद्वीप प्रशासन ने बित्रा द्वीप को भारत सरकार की रक्षा और रणनीतिक एजेंसियों को सौंपने की योजना बनाई है। 11 जुलाई को जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि द्वीप की रणनीतिक स्थिति, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्व और नागरिक बस्तियों से जुड़ी प्रशासनिक चुनौतियों की वजह से यह कदम उठाया जा रहा है।
बित्रा द्वीप है क्या?
बित्रा द्वीप 91,700 वर्ग मीटर में फैसला है। इसका दायरा 0.091 वर्ग किलोमीटर में है। यहां करीब 350 लोग रहते हैं। यहां के लोगों की रोटी-रोटी मछली पकड़ने और नारियल की खेती पर निर्भर हैं। इस द्वीप का 45 वर्ग किमी का लैगून इलाका, मछुआरों के लिए बेहद अहम है। यहां टूना और ग्रूपर मछलियां पाई जाती हैं, जो महंगे दामों में बिकती हैं।
क्यों नाराज हैं स्थानीय लोग?
बित्रा द्वीप पर रह रहे लोगों की चिंता है कि अगर उन्हें यहां से हटाया जाएगा तो वे आजीविका के लिए क्या करेंगे। स्थानीय लोगों ने इस फैसले का विरोध किया है और कहा है कि अगर उन्हें बेदखल करने की कोशिश हुई तो वे कानूनी रास्ता अपनाएंगे। यहां करीब 350 परिवार रहते हैं। इन परिवारों में बच्चे, बूढ़े, बुजुर्ग और महिलाएं भी शामिल हैं। यहां एक स्कूल है, एक हेल्थ सेंटर भी है।
अन्य द्वीपों के मछुआरे भी यहां लैगून और ग्रूपर मछलियां पकड़ने आते हैं। ऐसा नहीं है कि यहां सुरक्षा बलों की मौजूदगी नहीं थी। यहां पहले से ही रडार और कॉटेज बनाए गए हैं। यहां रक्षा क्षेत्र के लिए 8,800 वर्ग किलोमीटर की जमीन दी है। यहां कई प्रतिष्ठान बनाए गए हैं, सरकारी जमीनें अब भी खाली हैं। लोगों का कहना है कि खाली जगहें हैं, वहां सेना आ जाए, हमें क्यों उजाड़ रही है।
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पंडारम जमीन का मुद्दा क्या है?
पंडारम की जमीन पर प्रशासन ने अपना अधिकार जताया था। यह जमीन स्थानीय लोगों को लीज पर दी गई थी। यहां खेती-किसानी होती थी। सरकार के इस फैसले के खिलाफ स्थानीय लोगों ने केरल हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जमीन पर कब्जे के लिए तीन महीने की अंतरिम रोक लगी थी। इस पर जल्द ही फैसला आ सकता है। स्थानीय लोगों का तर्क है कि 1971 और 1975 में भारत सरकार के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि भूमि का स्वामित्व द्वीपवासियों को सौंप दिया जाना।
मोहम्मद हमदुल्लाह सईद, कांग्रेस सांसद:-
बित्रा लक्षद्वीप का सबसे छोटा द्वीप है। इसका लैगून सबसे बड़ा है। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इसे लेना तर्कसंगत नहीं है। यह क्षेत्र शांत है और यहां पहले से ही कवरत्ती, मिनिकॉय और अंडरोथ में नौसेना और तटरक्षक बल मौजूद हैं। हम इस मामले को राजनीतिक और कानूनी रूप से लड़ेंगे।
लैगून क्या है?
लैगून कम पानी वाले इलाके हैं। ऐसे इलाके, किसी समुद्र, झील या रेत के टीलों की वजह से थोड़े अलग नजर आते हैं। इन्हें उथले जल क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है।
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क्यों सेना के लिए जरूरी है यह द्वीप?
लक्षद्वीप अरब सागर में है। यहां के समुद्री व्यापारिक मार्गों पर नजर रखना सेना के लिए रणनीतिक तौर पर अहम है। यहां शोध कार्यों का हवाला देकर चीन जासूसी के सारे पैंतरे अपनाता है। 1000 से कम दूरी पर दो देश हैं। श्रीलंका और मालदीव। दोनों देशों के साथ-साथ भारत यहां से चीन की जासूसी गतिविधियों पर भी नजर रखता है।
कवरत्ती में 1980 से नौसेना की स्थायी सुविधाएं हैं। मिनिकॉय में मार्च 2024 में INS जटायु कमीशन किया गया। हाल ही में, पर्यावरण मंत्रालय ने द्वीप संरक्षण क्षेत्र (IPZ) 2011 के तहत बुनियादी ढांचों को बढ़ाने पर जोर दिया है, इसे 10 साल तक के लिए और बढ़ा दिया गया है। सेना यहां और निर्माण कर सकती है। समुद्री खतरे से निपटने के लिए सरकार का तर्क है कि यहां सेना का होना जरूरी है।
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चिंता जिस पर बात करना जरूरी है
यहां 350 परिवार बसे हैं। उनका जीवन-यापन और रोजगार भी यहीं से चलता है। वे यहां के पर्यटन पर भी निर्भर हैं। अगर यह अधिग्रहण हुआ तो इन परिवारों की आजीविका पर असर पड़ना तय है। एक चुनौती यह भी है कि इन्हें कहां बसाया जाएगा। पूरे लक्षद्वीप के मछुआरों के लिए यह क्षेत्र बेहद अहम है। स्थानीय लोग अपनी जमीन और आजीविका के लिए कोर्ट तक जाने की बात कह रहे हैं।
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