देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है, जिसकी पहुंच अस्पतालों तक नहीं है। प्रथामिक चिकित्सक केंद्रों (PHC) तक पर डॉक्टरों की किल्लत कई राज्यों में बेहद आम है। डॉक्टरों की कमी और महंगे इलाज के लिए देश में झोला छाप डॉक्टरों की भरमार है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी झोला छाप डॉक्टरों की कोई गिनती नहीं है, जबकि यहां प्राइमरी हेल्थ केयर बड़ी संख्या में हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की मानें तो यूपी में 2,936 से ज्याादा प्राइमरी हेल्थ केयर सक्रिय हैं, जहां डॉक्टर हैं। इन डॉक्टरों के होने के बाद भी झोला छाप डॉक्टरों की बड़ी संख्या है, जो सामान्य डॉक्टरों की तरह ही इलाज कर रहे हैं।
आयशा हेल्थ केयर हॉस्पिटल के हेड डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता शाहिद अख्तर बताते है सिद्धार्थनगर के एक छोटे कस्बे शोहरतगढ़ में ही 20 से ज्यादा झोला छाप डॉक्टर इलाज कर रहे हैं, लोगों की भीड़ उनके पास लगी रहती है। सरकार के नियम कानून इस विषय में सख्त हैं फिर भी धड़ल्ले से लोग इलाज करते हैं।
झोला छाप डॉक्टर कौन होते हैं?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद में जवाब दिया है कि द नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) अधिनियम 2019 की धारा 34 कहती है कि राज्य और देश के रजिस्टर में दर्ज किसी मेडिकल प्रैक्टिशनर से इतर किसी व्यक्ति को मेडिकल प्रैक्टिशनर के तौर पर इलाज करने से बैन लगाया गया है। ऐसा कोई भी शख्स जो किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से चिकित्सक की डिग्री हासिल नहीं की है, वह डॉक्टर के तौर पर प्रैक्टिस नहीं कर सकता है।

झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ कानून क्या है?
द नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) अधिनियम 2019 की धारा 34 कहती है कि अगर कोई शख्स जो मान्यता प्राप्त चिकित्सक नहीं है, वह इलाज करता है तो उसे 1 साल की सजा और 5 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
झोला छाप डॉक्टरों पर कैसे नकेल कसती है सरकार?
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि नेशनल मेडिकल कमीशन राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश समय-समय पर दिया जाता है कि वे इसकी मॉनिटरिंग करें। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के चिकित्सा परिषद और मेडिकल एजुकेशन से अनुरोध किया जाता है कि वे जागरूकता फैलाएं। इस पर मॉनिटरिंग के लिए अथॉरिटी अधिकारी नियुक्त करें जिससे नीम-हकीमों पर एक्शन लिया जा सके। जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी इसकी जांच समय-समय पर कराते हैं।