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'रिटायर होते ही नेता बन जाते हैं जज,' लॉ कमीशन के वकील की चिट्ठी वायरल

विधि आयोग के सदस्य हितेश जैन ने लिखा है रिटायर होने के बाद जज राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह बात करने लगते हैं। उन्होंने बी सुदर्शन रेड्डी का हवाला दिया है।

Hitesh Jain

विधि आयोग के सदस्य हितेश जैन। (Photo Credit: Hitesh Jain/x)

विधि आयोग के सदस्य हितेश जैन ने रिटायर जजों की आलोचना में एक लंबी पोस्ट लिखी है। उन्होंने दावा किया है कि रिटायर जज अब राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह काम कर रहे हैं। उन्होंने जस्टिस अभय ओका के कुछ हालिया इंटरव्यू का जिक्र करते हुए कहा है कि अब ज्यादा से ज्यादा रिटायर जज, खुले आम राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं। 

हितेश जैन ने जस्टिस मदन लोकुर से लेकर जस्टिस एस मुरलीधर, जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस अभय ओका का जिक्र करते हुए कहा है कि न्यायपालिका की आजादी पर एक सैद्धांतिक रुख के बजाय भेदभाव वाला रवैया अख्तियार कर रहे हैं। न्यायिक स्वतंत्रता प्रेस कॉन्फ्रेंस, साक्षात्कारों या पक्षपातपूर्ण पत्रों के जरिए संरक्षित नहीं होती है। हितेश जैन ने इस पर चिंता जताई है।

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'जजों ने आम जनता को न्याय देने पर चुप्पी साधी'

एडवोकेट हितेश जैन ने लिखा, 'यह हमारी जिला अदालतों और मजिस्ट्रेट अदालतों में हर दिन देखी जाती है, जहां लाखों आम नागरिकों के भाग्य का फैसला होता है। ये वही न्यायाधीश हैं जो अब लोकतंत्र के संरक्षक होने का दावा कर रहे हैं। सही मुद्दों पर ये लोग चुप रहे हैं। निचली अदालतों की स्थिति, नियुक्तियों में देरी और आम नागरिकों को न्याय मिलने की कवायद पर इन्होंने चुप्पी साधी।'

हितेश जैन, सदस्य, विधि आयोग:-
क्या आपने उनके साक्षात्कारों और टिप्पणियों में इस प्रवृत्ति पर ध्यान दिया है? चाहे वह जस्टिस लोकुर हों या अब जस्टिस ओका? वे बार-बार सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कुछ मामलों या न्यायिक प्रमोशन से जुड़े सवालों को उठाते हैं। उसी संकीर्ण आधार पर न्यायिक स्वतंत्रता का लेक्चर देते हैं। फिर भी, वे शायद ही कभी इस बारे में बात करते हैं कि लंबित मामलों को कैसे कम किया जा सकता है, सुनवाई में तेजी कैसे लाई जा सकती है। चाहे वह कब्जा विवाद हो, संपत्ति की वसूली हो, मोटर दुर्घटना के दावे हों, या विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा हो, इन्होंने शायद ही कभी बात की हो कि आम आदमी के लिए न्याय कैसे सुलभ बनाया जा सकता है। 

ज्यूडीशियल एक्टिविज्म पर हितेश जैन का तंज

हितेश जैन ने जजों से सवाल किया, 'पिछले 10 वर्षों में, क्या वे न्यायपालिका के सामने आने वाले इन बड़े मुद्दों के समाधान के लिए कोई रचनात्मक समाधान लेकर आगे आए हैं? क्या उन्होंने आम आदमी की समस्या हल करने की कोशिश की है? रिकॉर्ड में भाषणों में घिसी-पिटी बातों के अलावा कुछ नहीं दिखता। हमारे पास कुछ जाने-पहचाने चैनल और इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण, संजय हेगड़े और कुछ अन्य वकीलों की एक तय लिस्ट है। ये लोग खुद को ज्यूडीशियल एक्टिविस्ट बताते हैं। 

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हितेश जैन, सदस्य, विधि आयोग:-
जब भी कोई फैसला या ज्यूडिशियल प्रमोशन उनकी पसंद के मुताबिक नहीं होती, वे मीडिया के पास पहुंच जाते हैं, अपनी छाती पीटते हैं और घोषणा करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का पतन हो रहा है या लोकतंत्र खतरे में है। यह पैटर्न एक दशक से भी ज्यादा वक्त से दिखाई दे रहा है, जिसे चुनिंदा जजों की लॉबी बढ़ावा दे रही है। सनसनीखेज इंटरव्यू और साउंडबाइट्स के जरिए पोर्टल्स पर ये लोग छाए हुए हैं। 

'हर मोड़ पर झूठ का राग अलापते हैं लोग'

हितेश जैन ने लिखा है, 'हमने इंदिरा जयसिंह को 'न्यायपालिका पर हिंदू वर्चस्व' के बारे में अजीबोगरीब बयान देते और यह सवाल करते देखा कि होने वाला चीफ जस्टिस गुजरात से क्यों होना चाहिए, मानो ऐसी नियुक्तियां कोई अपराध हों। हकीकत यह है कि यह लॉबी हर मोड़ पर झूठ का राग अलापती रही है, न्यायपालिका के प्रति सच्ची चिंता इन्हें नहीं हैं, बल्कि अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए लोग ऐसा कर रहे हैं। इस पाखंड को उजागर करना और एक स्पष्ट संदेश देना जरूरी है।'

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किस बात पर हितेश जैन को गुस्सा आया?

हितेश जैन ने लिखा, 'अदालतों को धमका नहीं सकते या भेदभाव वाले मकसदों के लिए इसे ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकते। अब समय आ गया है कि इस लॉबी को बेनकाब किया जाए। इस संदर्भ में, जस्टिस ओका को जस्टिस लोकुर और जस्टिस मुरलीधर जैसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ हाथ मिलाते देखना निराशाजनक था। अब ये लोग स्वतंत्र आवाज़ नहीं रहे हैं, बल्कि एक राजनीति से प्रेरित लॉबी का हिस्सा हैं। इनका इकलौता एजेंडा प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाना है। एक्टिव जजों के चेहरे से नकाब का हटाना जरूरी है।'

हितेश जैन हैं कौन?

हितेश जैन पुणे से हैं। यहीं उन्होंने अपनी स्कूलिंग की। साल 1996 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एलएलएम किया। वह 2 दशक से वकील के तौर पर कोर्ट में सेवाएं दे रहे हैं। वह सिविल, आपराधिक, वाणिज्यिक और संवैधानिक मामलों के जानकार हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, अलग-अलग हाई कोर्ट्स, जिला अदालतों और कंज्यूमर अदालतों में काम किया है। वह मेडिएशन के लिए भी जाने जाते रहे हैं। हितेश जैन महाराष्ट्र सरकार के स्पेशल अटॉर्नी भी रहे हैं। वह मीडिया और खेल कानूनों से जुड़े मुकदमे भी देखते हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स, बीसीसीआई, हॉकी इंडिया से भी जुड़े रहे। हितेश जैन अब भारत के विधि आयोग में नियुक्त हैं।

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