लद्दाख के लेह में 24 सितंबर को जो हिंसा भड़की थी, वह भले ही शांत हो गई हो लेकिन अब अपनी मांगों को लेकर बार-बार भूख हड़ताल करने वाले एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की मुसीबतें बढ़ने लगी हैं। लेह में 24 तारीख को जब हिंसा भड़की, तब भी सोनम वांगचुक भूख हड़ताल पर ही थे। केंद्र सरकार ने सोनम वांगचुक के 'भड़काऊ भाषण' को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
हिंसा के दूसरे ही दिन केंद्र सरकार ने सोनम वांगचुक ने एनजीओ का विदेशी फंडिंग का लाइसेंस रद्द कर दिया। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोनम वांगचुक के जिस एनजीओ का FCRA लाइसेंस रद्द किया है, उसका नाम स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SEMCOL) है।
इस एनजीओ को फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन ऐक्ट (FCRA) के तहत विदेशी फंडिंग का लाइसेंस मिला था। अब FCRA लाइसेंस रद्द होने से SEMCOL को विदेशी फंडिंग नहीं मिल सकती।
SECMOL के साथ-साथ सोनम वांगचुक के एक और एनजीओ हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव लद्दाख (HIAL) पर भी FCRA के नियमों के उल्लंघन की जांच CBI कर रही है।
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पर लाइसेंस रद्द क्यों किया?
सोनम वांगचुक के एनजीओ का FCRA लाइसेंस तब रद्द किया गया, जब एक दिन पहले ही लेह में हिंसा हुई थी। इसलिए इस पर सवाल भी उठ रहे हैं। हालांकि, गृह मंत्रालय का कहना है कि एनजीओ के खाते में कई अनियमितताएं पाई गईं, जो राष्ट्रीय हित के खिलाफ हैं।
गृह मंत्रालय ने अपने आदेश में बताया है कि SECMOL को सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यक्रम के लिए विदेशी फंडिंग का लाइसेंस दिया गया था। गृह मंत्रालय ने बताया कि खातों में अनियमितताओं पर कारण बताओ नोटिस जारी कर SECMOL से सफाई मांगी गई थी। आरोप है कि 2021-22 में सोनम वांगचुक ने FCRA की धारा 17 का उल्लंघन करते हुए एनजीओ के FCRA खाते में 3.5 लाख रुपये जमा किए थे।
इस पर SECMOL ने सफाई देते हुए कहा कि 14 जुलाई 2015 को FCRA फंड से खरीदी गई पुरानी बसों को बेचा गया था और नियम कहते हैं कि FCRA के फंड से ली गई किसी भी संपत्ति की बिक्री की रकम सिर्फ FCRA खाते में ही जमा की जानी चाहिए। गृह मंत्रालय ने बताया कि यह रकम नकद में ली गई थी, जो धारा 17 का उल्लंघन है।
इसके अलावा, गृह मंत्रालय ने यह भी बताया कि सोनम वांगचुक ने 3.35 लाख रुपये के फंड की जानकारी दी है लेकिन यह लेनदेन FCRA खाते में नहीं दिखाया गया है जो FCRA की धारा 18 का उल्लंघन है। मंत्रालय ने एनजीओ के FCRA खातों में 54,600 रुपये के लोकल फंड्स के ट्रांसफर पर भी रोक लगा दी है।
इतना ही नहीं, SECMOL को स्वीडन से जो 4.93 लाख रुपये की फंडिंग मिली थी, वह भी जांच के दायरे में है। यह फंड माइग्रेशन, क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग, फूड सिक्योरिटी और सॉवरेनिटी (संप्रभुता) और ऑर्गनिक फार्मिंग पर स्टडी के लिए लिया गया था। मंत्रालय का कहना है कि 'संप्रभुता' पर स्टडी के लिए विदेशी फंड नहीं लिया जा सकता, क्योंकि यह 'राष्ट्रीय हित' के खिलाफ है। गृह मंत्रालय ने FCRA की धारा 14 के तहत लाइसेंस रद्द कर दिया।
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विदेशी फंडिंग पर नियम क्या हैं?
विदेशी फंडिंग की निगरानी के लिए 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार में FCRA लाया गया था। साल 2010 में मनमोहन सरकार ने इस कानून को सख्त किया गया और राजनीति से जुड़ी संस्थाओं की विदेशी फंडिंग पर रोक लगा दी।
मोदी सरकार में इस कानून को और सख्त किया गया। 2020 में इस कानून में संशोधन हुआ और अब विदेशी फंडिंग के लिए एनजीओ को FCRA के तहत रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है। रजिस्ट्रेशन 5 साल के लिए होता है और हर 5 साल बाद इसे रिन्यू करवाना होता है।
विदेशी फंडिंग लेने वाले एनजीओ और संस्थाओं को बताना होता है कि पैसा कहां से आया है, कितना आया है और कहां खर्च हुआ है। विदेशों से मिलने वाला पैसा सिर्फ शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति जैसे मामलों पर ही खर्च हो सकता है।
FCRA कहता है कि जितना भी विदेशी फंड आएगा, उसका सिर्फ 20% ही प्रशासनिक कामकाज पर खर्च कर सकते हैं, जबकि पहले यह लिमिट 50% तक थी।
इतना ही नहीं, किसी एनजीओ या संस्था को जो भी विदेशी फंड मिलेगा, वह सिर्फ SBI की नई दिल्ली ब्रांच में ही आएगा। इसके लिए FCRA अकाउंट खुलवाना होगा। इस अकाउंट के अलावा और कहीं विदेशी फंडिंग नहीं ले सकते।
पहले यह होता था कि विदेशी फंडिंग लेने वाले एनजीओ उसकी कुछ रकम दूसरी एनजीओ को भी दे सकते हैं। मगर संशोधन के बाद इस पर भी रोक लगा दी गई है। अब जो पैसा जिस एनजीओ को मिला है, वही इस्तेमाल कर सकता है। FCRA की धारा 14 के तहत नियमों का उल्लंघन करने पर लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।