कैसे कोई महिला बनती है नागा साधु, पुरुषों से कितने अलग हैं नियम?
प्रयागराज में महाकुंभ हो रहा है। महाकुंभ में सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र नागा साधु होते हैं। अब महिलाएं भी नागा साधु भी बन रही हैं। ऐसे में जानते हैं कि महिला नागा साधु की दुनिया कितनी रहस्यमयी होती हैं?

AI Generated Image
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ हो रहा है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। अब जब महाकुंभ हो रहा है तो नागा साधुओं पर चर्चा होना भी आम हो जाता है। नागा साधु अपने आप में रहस्यमयी होते हैं। इनका जीवन बहुत कठिन माना जाता है। पहले तो पुरुष ही नागा साधु बनते थे लेकिन अब महिलाएं भी नागा साधु बन रहीं हैं। बीते कुछ कुंभ में महिला नागा साधुओं का आना बढ़ गया है।
कौन होते हैं नागा साधु?
नागा साधुओं को धर्म का रक्षक भी माना जाता है। ये शैव परंपरा को मानते हैं। नागा साधु बनने के लिए किसी अखाड़े का सदस्य बनना पड़ता है। देश में अभी 13 अखाड़े हैं। अखाड़े का सदस्य भी कोई यूंहीं नहीं बन जाता। इसके लिए भी कठोर तपस्या करनी पड़ती है। कई सालों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। अखाड़े का सदस्य बनने पर खुद का पिंडदान करना पड़ता है।
हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में ही नागा साधुओं को दीक्षा मिलती है। इन्हीं चार जगहों पर कुंभ होता है। प्रयागराज में दीक्षा लेने वालों को 'नागा' कहा जाता है। हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को 'बर्फानी नागा', उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को 'खूनी नागा' और नासिक में दीक्षा लेने वालों को 'खिचड़िया नागा' कहा जाता है।
महिलाएं भी बनती हैं नागा साधु?
पहले तो पुरुष ही नागा साधु बनते थे लेकिन अब बड़ी संख्या में महिलाएं भी नागा साधु बन रहीं हैं। अगर कोई महिला नागा साधु बनना चाहती है तो उसे भी वही सब करना पड़ता है जो एक पुरुष को करना पड़ता है। महिलाओं को भी अपना घर-परिवार सबकुछ त्यागना पड़ता है। तभी उन्हें दीक्षा मिलती है। जब किसी महिला को दीक्षा मिलती है तो वो अपने सांसारिक वस्त्र उतारकर पीला वस्त्र पहनती हैं। उन्हें अपने केश उतारकर खुद का पिंडदान करना होता है। नदी में स्नान कराया जाता है। लंबी तपस्या होती है और जब कोई महिला इसमें खरी उतरती है तो उसे 'माता' की उपाधि दी जाती है। महिला नागा साधुओं को 'माई', 'अवधूतानी' या फिर 'नागिन' कहा जाता है।
महिला नागा साधुओं को नग्न रहने की इजाजत नहीं
पुरुष नागा साधु नग्न रहते हैं लेकिन महिला नागा साधुओं को इसकी इजाजत नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि महिलाओं का नग्न रहना भारतीय परंपरा में शामिल नहीं हैं। इसलिए महिला नागा साधु हमेशा एक कपड़ा लपेटे हुए दिखती हैं। ये कहीं से सिला नहीं होता है। इसे 'गंती' कहा जाता है। पीरियड्स के दौरान महिला नागा साधु स्नान नहीं करतीं। बस गंगाजल छिड़क लेती हैं। ब्रह्मा गिरी नाम की एक महिला नागा साधु हुआ करती थीं, जो हमेशा नग्न रहती थीं। वो अपनी सुरक्षा के लिए दोनों तरफ तलवार रखती थीं।
क्या महिलाओं का भी कोई अखाड़ा होता है?
आदि शंकराचार्य ने अखाड़ों की शुरुआत की थी। शुरू में सिर्फ 4 अखाड़े थे लेकिन बाद में वैचारिक मतभेद के कारण 13 अखाड़े बन गए। ये 13 अखाड़े तीन समूहों में बंटे हैं। शैव अखाड़े जो शिव की भक्ति करते हैं। वैष्णव अखाड़े जो विष्णु की भक्ति करते हैं। और तीसरे होते हैं उदासीन जो गुरु नानक की वाणी से प्रेरित हैं।
अखाड़ा परंपरा में सबसे पुराना जूना अखाड़ा है। इसकी ही एक शाखा है जिसे 'माई बाड़ा' कहा जाता है। माई बाड़ा में महिला नागा साधु होती हैं। 2013 के महाकुंभ में माई बाड़ा को और विस्तृत रूप देकर 'दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा' नाम दिया गया था।
2013 में ही भारी विरोध के बावजूद महिला शंकराचार्य त्रिकाल भवंता ने 'श्रीसर्वेश्वर महादेव बैकुंठ धाम मुक्ति द्वार अखाड़ा' नाम से महिला अखाड़ा स्थापित किया था। हालांकि, इस अखाड़े को मान्यता नहीं मिली है।
क्या महिला नागा साधुओं को मिलता है कोई पद?
अखाड़ों में महिला नागा साधु भी होती हैं लेकिन इन्हें कोई अहम पद नहीं दिया जाता। अखाड़े के सभी प्रमुख पद पुरुषों के पास होते हैं। महिला नागा साधुओं को किसी खास इलाके के प्रमुख के तौर पर 'श्रीमहंत' का पद दिया जाता है। श्रीमहंत के पद चुनी गई महिलाएं शाही स्नान के दौरान पालकी से चलती हैं। अखाड़े का ध्वज, डंका और दाना अपने धार्मिक ध्वज के नीचे लगाने की छूट होती है।
एक दम कैसे महिलाओं का इस ओर आकर्षण हुआ?
महिला नागा साधुओं की परंपरा वैसे तो बेहद प्राचीन है लेकिन अब धीरे-धीरे इन्हें सार्वजनिक मान्यता मिल रही है। हाल के दशक में हर परंपरा में कुछ-कुछ बदलाव आए हैं। पुराने जमाने में महिला नागा साधु होना बहुत दुर्लभ था और उन्हें मुख्यधारा के अखाड़ों में सम्मान नहीं मिलता था। धर्मगुरु उन्हें अपनाने से डरते थे। 20वीं शताब्दी के अंत और 21वीं शताब्दी की शुरुआत में, महिला नागा साधुओं की संख्या बढ़ने लगी। अब कई महिला नागा साधु कुंभ मेले में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। सोशल मीडिया, टीवी चैनल उनका इंटरव्यू करते हैं, तस्वीरें वायरल होती हैं। अब अखाड़ों में उन्हें आदर मिलने लगा है। यह परंपरा धीरे-धीरे संत समाज की स्वीकृति पा रही है। महिलाएं भी नागा साधु बनने की दीक्षा लेने लगी हैं।
पहले से महिला नागा कुम्भ में आ रही हैं या अभी आई हैं?
महिला नागा साधुओं के कुंभ में हिस्सा लेना नया नहीं है। महिलाएं अलग-अलग संप्रदायों से आदिकाल से जुड़ी रही हैं। ऐसा एकदम से अचानक नहीं हुआ है। सोशल मीडिया के इस दौर में उन्हें ज्यादा कवरेज मिलने लगी है। उनकी मौजूदगी हमेशा से रही है। हिंदू धर्म में वैराग्य की परंपरा बेहद पुरानी है। नागा साधुओं का अस्तित्व भी सदियों से रहा है। कई संस्मरण और कहानियों में 'माई', 'अवधूतनी' और 'नागिन' की कहानियां मिलती हैं। सोशल मीडिया पर इन दिनों कुछ महिला साध्वियों की तस्वीरें वायरल हुई हैं, कुछ महामंडलेश्वरों के साथ उनके धर्मरथ पर नजर आई हैं। नागा साधुओं की परंपरा में यह गलत है। जिन्होंने इस परंपरा में दीक्षा ली हैं, वे आमतौर पर चमक-दमक से बेहद दूर रहती हैं और अपने गुरुओं के सानिध्य में तपस्या करती हैं।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap