दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री दिखाने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी को आदेश दिया गया था। जस्टिस सचिन दत्ता ने यह आदेश दिया। हालांकि, अभी निर्णय की विस्तृत कॉपी नहीं आई है। दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इस मामले में 2017 में सीआईसी के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की थी। इस आदेश में 1978 के बीए के छात्रों के रिकॉर्ड दिखाने की अनुमति दी गई थी। दावा किया गया था कि इसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी परीक्षा पास की थी। इस आदेश पर पहली सुनवाई के दिन 24 जनवरी 2017 को रोक लगा दी गई थी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरफ से कोर्ट में पेश हुए थे और कहा था कि सीआईसी द्वारा दिए गए आदेश को रद्द किया जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यूनिवर्सिटी को कोर्ट कोर्ट को डिग्री दिखाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन रिकॉर्ड को सार्वजिनक तौर पर नहीं दिखाया जा सकता। उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार का उपयोग सिर्फ अपनी जिज्ञासा के लिए नहीं किया जा सकता।
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वहीं, दूसरी तरफ आरटीआई आवेदक नीरज की तरफ से सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा कि इस तरह की सूचनाएं आमतौर पर कोई भी यूनिवर्सिटी नोटिस बोर्ड, यूनिवर्सिटी की वेबसाइट या यहां तक कि न्यूज पेपर में भी पब्लिश करती है। उन्होंने तुषार मेहता के उस तर्क का भी विरोध किया और कहा कि यह कोई ऐसी सूचना नहीं है जिसे सार्वजनिक न किया जा सके।
क्या है मामला?
RTI ऐक्टिविस्ट नीरज कुमार ने एक आरटीआई एप्लीकेशन डाली थी जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी में 1978 में बीए की परीक्षा देने वाले सभी छात्रों के नाम, रोल नंबर, अंक और रिजल्ट की सूचना की मांग की गई थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट्रल पब्लिक इन्फॉर्मेशन अधिकारी (सीपीआईओ) ने इसे इस आधार पर मना कर दिया था क्योंकि यह तीसरे पक्ष की सूचना दिए जाने से संबंधित है।
CIC ने 2016 में दिया था आदेश
इसके बाद आरटीआई एक्टिविस्ट ने इसे सीआईसी के सामने पेश किया। 2016 में पारित किए गए आदेश में सीआईसी ने कहा, 'मामले की जांच करके कमीशन का मानना है कि किसी छात्र के एजुकेशन से संबंधित मामले से संबंधित सूचना पब्लिक डोमेन की चीज है और इसलिए संबंधित पब्लिक अथॉरिटी को इस सूचना को दिया जाना चाहिए।' सीआईसी ने कहा था कि सभी विश्वविद्यालय सार्वजनिक प्रतिष्ठान हैं और डिग्री से संबंधित सूचनाएं विश्वविद्यालय के रजिस्टर में मौजूद होता है, जो कि एक पब्लिक डॉक्युमेंट है।
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2017 में हुई थी पहली सुनवाई
2017 में पहली सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के सामने दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा था कि कुल छात्रों की संख्या, जिन्होंने उस साल परीक्षा दी थी, उनमें से कितने पास हुए और कितने फेल हुए यह सूचना देने में विश्वविद्यालय को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन हर एक छात्र के बारे में सूचना को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।