एक फायर, एक फ्लावर, कैसे शुरू हुई उद्धव-राज ठाकरे के एक होने कवायद
उद्धव ठाकरे के तेवर अपने पिता बाल ठाकरे से बिलकुल अलग हैं। राज ठाकरे के तेवर अपने ताऊ जैसे ही हैं। राज का नाता एग्रेसिव राजनीति से जुड़ा है, उद्धव विनम्र राजनीति में भरोसा रखते हैं।

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे। (File Photo Credit: Social Media)
महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार के एक होने की अटकलें लगाई जा रही हैं। उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे दोनों एक साथ आ सकते हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने शनिवार को इस ओर इशारा किया है कि महाराष्ट्र और मराठा हितों के लिए दोनों राजनीतिक पार्टियां साथ आ सकती हैं। दोनों भाइयों के बीच साल 2005 से ही अनबन की स्थिति है। बाल ठाकरे, अपनी विरासत उद्धव ठाकरे को सौंपने लगे थे और राज ठाकरे को पार्टी में ही नजर अंदाज किया जाने लगा था। राज ठाकरे अपने राजनीतिक गुरु और ताऊ से ही बगावत कर बैठे थे। राजनीतिक स्तर पर, दोनों के तेवर बेहद अलग हैं।
साल 1989 में राज ठाकरे पहली बार छात्र राजनीति में उतरे। वह तेजी से लोकप्रिय होने लगे। बाल ठाकरे के बाद पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत तक पहुंचे। लाखों युवा हर साल उनके साथ जुटते। वह शिवसेना के संगठन के लिए काम कर रहे थे। जब साल 2003 में महाबलेश्वरम में पार्टी का अधिवेशन बुलाया गया तो बाल ठाकरे ने राज ठाकरे को निर्देश दिया कि उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दो। उद्धव ठाकरे के लिए यह झटका था। उन्हें यह बात खटक गई।
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2006 से अलग हो गई थी दोनों भाइयों की राहें
राज ठाकरे 2006 में अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे के साथ मतभेदों के की वजह से शिवसेना से अलग हो गए। बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना राज ठाकरे को अब बासी लगने लगी थी। उन्हें लग गया था कि उनकी भूमिका को कम किया जा रहा है और उद्धव को तरजीह दी जा रही है।
क्यों अलग हुए थे राज ठाकरे?
संगठन में प्रभाव और नेतृत्व को लेकर दोनों के बीच तनाव बढ़ा। राज चाहते थे कि शिवसेना और आक्रामक हो, लेकिन उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। नाराज होकर उन्होंने शिवसेना छोड़ दी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई। 9 मार्च 2006 को शिवाजी पार्क में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली। मराठी मानुस और भाषा की लड़ाई लड़ने वाली यह पार्टी, सियासी तौर पर हाशिए पर ही है। बीजेपी और नई शिवसेना जैसी पार्टियों के आगे यह दब गई है।
एक फायर, दूसरा फ्लॉवर
राज ठाकरे के तेवर हमेशा से बेहद तल्ख रहे हैं। वह साफ बोलते हैं, जिसे उनके आलोचक कड़वी जुबान वाला नेता कहते हैं। राज ठाकरे और उनकी पार्टी के तेवर भी कुछ ऐसे हैं। 90 और 2000 के दशक में जैसे शिवसैनिकों के हंगामे की खबरें सामने आती हैं, वही अंदाज राज ठाकरे के महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का है। मनसे कार्यकर्ता हिंसक विरोध प्रदर्शन करने से भी नहीं चूकते हैं। शक्ति प्रदर्शन का एक मौका नहीं छोड़ते हैं। यह इसलिए है क्योंकि राज ठाकरे का व्यक्तित्व भी ऐसा ही है। उनके आलोचक कहते हैं कि महाराष्ट्र में सिर्फ अपनी इसी दंबग छवि की वजह से उनका सियासी रसूख साल-दर साल कम होता गया।
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राज ठाकरे उन नेताओं में से हैं, जिनके इशारे पर उनके कार्यकर्ता किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार हो जाते हैं। राज ठाकरे ने बैंकों और संस्थानों में मराठी भाषा के इस्तेमाल की मांग की। उनके निर्देश पर MNS कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर आंदोलन किया, जिसमें कुछ स्थानों पर गैर-मराठी भाषियों के साथ बदसलूकी और मारपीट की घटनाएं भी हुईं। सबकुछ उसी तरह हुआ, जैसा शिवसैनिक करते थे।
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद से शिवसैनिकों के तेवर और काम करने के तरीके बदले। उद्धव ठाकरे, बाल ठाकरे की राजनीति से अलग हटकर, विनम्र राजनीति पर उतरे तो राज ठाकरे जस के तस बने रहे। राज ठाकरे 'फायर' बने रहे, उद्धव ठाकरे 'फ्लावर' बनते गए।
उद्धव ठाकरे से बिलकुल अलग है राज की राजनीति
राज ठाकरे ने बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों, के खिलाफ आक्रामक बयान दिए थे। साल 2008 में एमएनएस कार्यकर्ताओं ने मुंबई में उत्तर भारतीयों पर हमले किए थे। वह मराठी अस्मिता और गौरव की बात करते हैं, बातचीत में अलग किस्म की ठसक नजर आती है लेकिन उद्धव ठाकरे के साथ ऐसा नहीं है। उनकी राजनीति साल 2019 के बाद से बहुत बदल गई है। वह कांग्रेसी नेताओं की तरह उदारवादी नजरिए के साथ राजनीति कर रहे हैं। वह सेक्युलर भी हैं, तीखी आलोचना से बचते हैं। वह विभाजनकारी बयानों से खुद को अलग रखते हैं।

कैसे शुरू हुई एक होने की कवायद?
राज ठाकरे, अभिनेता-निर्देश महेश मांजरेकर के युट्यूब चैनल पर एक पॉडकास्ट में शरीक हुए थे। महेश मांजरेकर ने उनसे उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन को लेकर एक सवाल किया। राज ठाकरे ने कहा कि किसी बड़े मकसद के लिए हमारी लड़ाइयां कमतर हैं, उद्धव ठाकरे का कहना है कि दोनों के बीच कोई झगड़ा ही नहीं था। इसका अर्थ यह निकाला जाने लगा कि दोनों भाई, आपसी विवाद भूलकर साथ आ सकते हैं।
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने पर भारतीय जनता पार्टी तक को बोलना पड़ा। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि वे अगर साथ भी हुए तो आने वाले बीएमसी चुनावों में एनडीए को हरा नहीं पाएंगे। अगर वे एक साथ आते हैं तो हमें खुशी होगी। बिछड़े हुए लोगों को फिर से एक होना चाहिए। अगर उनके विवाद खत्म हो जाएं तो यह अच्छी बात है।
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खुद शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे कह चुके हैं कि छोटे-मोटे विवाद वे दूर करने के लिए तैयार हैं लेकिन शर्त इतनी सी है कि लोग एक दिन समर्थन करें, एक दिन विरोध करें, हम पाला नहीं बदलते हैं।' शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी कहा कि राज ठाकरे को महाराष्ट्र और शिव सेना (यूबीटी) के दुश्मनों को जगह नहीं देनी चाहिए। ठाकरे भाइयों का फिर से एक होना महाराष्ट्र की राजनीति को नया आकार दे सकता है।

कितने दमदार हैं महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे?
राज ठाकरे और उनकी पार्टी एमएनएस का जिक्र, अक्सर विवादों की वजह से होता है। सियासी तौर पर राज ठाकरे की पार्टी का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा है। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में सिर्फ साल 2009 में उनकी पार्टी दहाई का आंकड़ा छू पाई थी। 288 विधानसभा सीटों में से 13 सीटों पर जीत मिली थी। साल 2014 में जनाधार गिरा और 1 सीट पर सिमट गई। 2019 में भी एक सीट। 2024 में पार्टी का प्रदर्शन शून्य रहा।
उद्धव ठाकरे की पार्टी का प्रदर्शन, राज ठाकरे की तुलना में ठीक रहा। लोगों ने बाल ठाकरे का असली वारिस, उद्धव ठाकरे को माना। विभाजन से पहले साल 2009 के चुनाव में शिवसेना 44 सीटों पर जीती। 2014 में 63, 2019 में 56 सीटों पर कामयाबी मिली। साल 2022 में शिवसेना बंट गई, शिंदे गुट और उद्धव गुट में। उद्धव गुट की शिवसेना का प्रदर्शन साल 2024 में बेहद खराब रहा और 20 सीटों पर सिमट गई। राज ठाकरे की पकड़, मुंबई में मानी जाती है। बीएमसी चुनाव होने वाले हैं।। चुनावों से पहले दोनों भाइयों के एक होने की अटकलें लगाई जा रही हैं।
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