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'एक देश-एक चुनाव' के फायदे और नुकसान क्या हैं?

संसद में एक देश एक चुनाव विधेयक पर हंगामा बरपा है। इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दलों को इस प्रस्तावित विधेयक पर ऐतराज है। विपक्षी दलों का कहना है कि इस विधेयक से संघीय ढांचे को को नुकसान पहुंचेगा।

One Nation one Election

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल। (तस्वीर- संसद टीवी)

संसद के शीतलाकीन सत्र के 17वें दिन केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा के पटल पर 'एक देश एक चुनाव' के लिए 129वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है। बिल पेश करने पर पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े हैं। यह विधेयक अब संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा जाएगा। एक देश एक चुनाव विधेयक का विपक्षी दल पुरजोर विरोध कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि एक देश एक चुनाव कहीं से भी संघीय ढांचे के खिलाफ नहीं है। हालांकि, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि यह बिल तानाशाही की ओर देश को ले जा रहा है।

कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने जब यह विधेयक पेश किया तो तत्काल विपक्षी दलों ने कहा कि इस विधेयक को वापस ले लीजिए। संसद में द गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज एक्ट- 1963, द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली- 1991 और द जम्मू एंड कश्मीर रीऑर्गनाइजेशन एक्ट- 2019 के भी संशोधन विधेयक पेश किए जाएंगे। यह विधेयक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव करता है। 

केंद्र सरकार का कहना है कि एक देश एक चुनाव वक्त की जरूरत है, इससे देश में चुनावों पर होने वाला खर्च घटेगा। विपक्ष का कहना है कि इससे देश का संघीय ढांचा ही बिखर जाएगा। विपक्ष का कहना है कि यह संवैधानिक नियमों के खिलाफ है। कानून मंत्रालय का कहना है कि आजादी के बाद से अब तक चुनाव आयोग विधानसभा और लोकसभा के 400 से ज्यादा चुनाव करा चुका है, अब एक देश एक चुनाव की जरूरत है। इससे प्रशासनिक क्षमता बढ़ेगी और चुनाव संबंधी खर्च में कमी भी आएगी। 

एक देश एक चुनाव के फायदे क्या हैं?

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चाहती है कि एक देश एक चुनाव विधेयक पास हो जाए। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने एक देश एक चुनाव के फायदे भी गिनाए हैं। समिति का कहना है कि इससे 'गवर्नेंस' में बेहतरी आएगी। राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग चुनावों की वजह से अपना ध्यान चुनावों पर ज्यादा रखती हैं, सरकार चलाने पर कम। एक साथ चुनाव हुए तो सबके पास सही सरकार चलाने का दायित्व होगा, जिससे लोक कल्याण की दिशा में काम किया जाएगा। 

आचार संहिता की वजह से प्रशासनिक गतिविधियां बार-बार प्रभावित होती हैं। अगर एक साथ ही सारे चुनाव हो जाएंगे तो ये परेशानी खत्म होगी। कई समाज और लोक कल्याणकारी नीतियां इस दौरान रोक दी जाती हैं। राज्य के संसाधन चुनाव में ही फंसे रहते हैं, जिससे परेशानियां बढ़ती हैं। सुरक्षाबलों की चुनावों में नियुक्ति होती है, संवेदनशील इलाकों से उन्हें चुनाव के दौरान हटाकर चुनावी ड्यूटी में तैनात कर दिया जाता है। अगर एक साथ चुनाव हुए तो बार-बार उन्हें परेशान नहीं होना पड़ेगा। 



समिति का कहना है कि स्थानीय पार्टियों के लिए भी एक देश एक चुनाव बेहतर है, जिससे स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। उन्हें ज्यादा उभरने का मौका मिल सकता है। सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव होने से गवर्नेंस बेहतर होगी, कैंपेनिंग दुरुस्त होगी। देश पर पड़ने वाला बोझ कम होगा। 

एक देश एक चुनाव के नुकसान क्या हैं?

विपक्षी दलों का कहना है कि एक देश एक चुनाव से संविधान के मूल ढांचे को नुकसान पहुंचेगा। विपक्षी दल सामूहिक तौर पर कह रहे हैं यह बिल संविधान के मूल ढांचे पर ही प्रहार है। एक देश एक चुनाव से शक्ति का केंद्रीयकरण होगा जो संवैधानिक ढांचे के ही खिलाफ होगा। 

संवैधानिक मामलों के जानकार सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सौरभ शर्मा बताते हैं कि एक देश एक चुनाव भारत जैसे देश में नहीं होना चाहिए। वजह यह है कि चुनावों में स्थानीय मुद्दे अलग होते हैं, राष्ट्रीय मुद्दे अलग होते हैं। राज्य और केंद्रीय चुनावों का घालमेल नहीं होना चाहिए। एक साथ चुनाव होने की वजह से स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे, वोटरों में भ्रम की स्थिति रहेगी और वे यह तय नहीं कर सकेंगे कि वोट किस मुद्दे पर देने हैं।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विकास कुमार से वन नेशन वन इलेक्शन की खामियों के बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि एक साथ अगर पूरे देश में चुनाव हुए तो कई चुनौतियां सरकार के सामने होंगी, जिनसे पेश पाना होगा। डॉ. विकास कुमार ने सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) के चेयरमैन एन भास्कर राव के एक बयान का जिक्र करते हुए कहा कि साल 2024 में लोकसभा चुनावों में हुआ खर्च 1.35 लाख करोड़ से ज्यादा हो सकता है। ऐसे में अगर एक साथ चुनाव कराने हों तो आर्थिक बोझ सरकार पर कई गुना बढ़ेगा। 

बार बार चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता है। (तस्वीर-PTI)

डॉ. विकास कुमार बताते हैं कि अगर एक साथ चुनाव कराए गए तो सरकार के सामने सीमा पर चुनौतियां बढ़ सकती हैं। देश के आंतरिक सुरक्षा बल के जवानों की तैनाती जिन संवेदनशील इलाकों में पहले से है, उन्हें घटाना पड़ेगा। एक साथ चुनाव कराने के लिए संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षाबलों की जरूरत पड़ती है। रिजर्व सुरक्षाबलों को भी नियुक्त करना पड़ेगा। अगर कहीं दंगे भड़के उन्हें संभालना मुश्किल होगा क्योंकि चुनावों के वक्त पूरा प्रशासन चुनाव आयोग के हाथों में होता है। कार्यवाहक सरकार होने की वजह से इतने बड़े स्तर पर चुनाव मैनेज करने में मुश्किलें सामने आएंगी।

एक देश एक चुनाव के आलोचकों का कहना है कि भारत में वोटर 97 करोड़ से ज्यादा हैं। उनके अलग-अलग मुद्दे हैं। स्थानीय और छोटी पार्टियों के लिए सियासत कर पाना मुश्किल होगा। छोटी-छोटी पार्टियों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। चुनाव में राजनीतिक दलों का खर्च भी बढ़ेगा। आमतौर पर सत्तारूढ़ दलों को ही ज्यादा चंदा मिलता है। चुनाव आयोग ने मार्च 2024 में एक डेटा जारी किया है, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदों का जिक्र था, सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिला। ऐसे में जो सत्तारूढ़ दल हैं, उन्हें ही ज्यादा चंदा मिलेगा, छोटी पार्टियों की अनदेखी होगी।

चुनावों के दौरान कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के हाथ में होती है। (तस्वीर-PTI)

एक देश-एक चुनाव के आलोचकों का कहना है कि अधिकारियों की संख्या वैसे भी देश में कम है। विभागों में नियुक्तियां इतनी कम हैं कि कई पद कई साल तक रिक्त रहते हैं। चुनाव आयोग के पास अपने संसाधन होते नहीं है। अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होंगे तो ज्यादा अधिकारियों की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए ज्यादा मशीनरी की जरूरत पड़ेगी। ज्यादा ईवीएम मंगवाने होंगे। मतगणना पर ज्यादा खर्च होगा। ज्यादा देर से नतीजे सामने आएंगे।

एक देश-एक चुनाव विधेयक क्या है?

- लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा अपने पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले अगर भंग होती है तो उस विधानसभा के लिए केवल पांच साल का शेष कार्यकाल पूरा करने के लिए मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे। 

- अनुच्छेद 82(ए) के तहत लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएं।

- अनुच्छेद 83 संसद के सदनों की अवधि के बारे में बात करता है। अनुच्छेद 172 और 327 विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में नियम बनाने की संसद की शक्ति के बारे में बात करता है। इसमें संशोधन करने का सुझाव दिया गया है।
 
- संशोधन के प्रावधान एक नियत तिथि से प्रभावी होंगे, जिसे राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक में अधिसूचित करेंगे। 

- विधेयक के मुताबिक नियत तिथि 2029 में अगले लोकसभा चुनाव के बाद होगी, जबकि एक साथ चुनाव 2034 में शुरू होंगे।

- लोक सभा का कार्यकाल नियत तिथि से पांच वर्ष होगा, और नियत तिथि के बाद निर्वाचित सभी विधानसभाओं का कार्यकाल लोक सभा के कार्यकाल के साथ समाप्त होगा।

- अगर लोक सभा या विधान सभा अपने पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले भंग होती है तो नए सदन या विधानसभा का कार्यकाल पिछले कार्यकाल के बचे हुए साल के लिए होगा।  

संवेदनशील इलाकों में चुनाव के दौरान चुनौतियां और बढ़ जाती हैं। (तस्वीर-PTI)

किस समिति ने तैयार किया है एक देश एक चुनाव का ड्राफ्ट?

एक देश एक चुनाव पर बनी समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने की थी। 2 सितंबर 2023 को एक समिति बनी थी। समिति ने 191 दिनों में अलग-अलग विशेषज्ञों और पक्षकारों से बात की थी। विस्तृत मंथन के बाद 14 मार्च, 2024 को समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी।

एक देश-एक चुनाव को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की जरूरत पड़ेगी। संविधान में 1 नया अनुच्छेद जोड़ने और 3 अनुच्छेदों में संशोधन किए जाने की तैयारी है। सरकार चाहती है कि इस मुद्दे पर आम सहमति बन जाए। ऐसा हो सकता है कि यह विधेयक संयुक्त संसदीय टीम को भी भेजा जा सके।

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