'वन नेशन वन इलेक्शन' के पहले की पूरी क्रोनोलॉजी, समझिए कैसे बदलेगा देश
देश
• NEW DELHI 13 Dec 2024, (अपडेटेड 13 Dec 2024, 11:18 AM IST)
देश ने वन नेशन वन इलेक्शन की ओर कदम तो बढ़ाया है लेकिन अभी इस रास्ते में तीन बड़ी बाधाएं हैं। आइए समझते हैं कि आखिर क्या-क्या होने के बाद ही यह लागू होगा।
रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली कमेटी ने सौंपी थी रिपोर्ट, File Photo: PTI
केंद्र की नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (एनडीए) सरकार ने 'एक देश एक चुनाव' कराने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। कैबिनेट में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। अब चर्चाएं हैं कि इस बिल को इसी सत्र में सदन में पेश करके संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जा सकता है। यानी इसे लागू करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार कोई जल्दबाजी दिखाने के मूड में नहीं है। इस मामले पर वैसे भी जल्दी में कुछ नहीं हो सकता है। जो दो बिल पेश किए हैं उनमें एक के जरिए पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में कराने का इंतजाम किया जाएगा। दूसरे बिल के जरिए केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी में भी साथ ही चुनाव कराने की व्यवस्था की जाएगी। इसके बावजूद कहा जा रहा है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो 'एक देश एक चुनाव' की व्यवस्था कम से कम 2034 से पहले लागू नहीं हो पाएगी।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई समिति ने अपनी रिपोर्ट इसी साल सितंबर महीने में सौंपी थी जिसे कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया था। इसी रिपोर्ट की सिफारिश के आधार पर यह प्रस्ताव और इससे जुड़े नियम तैयार किए गए हैं। एक चतुराई यह दिखाई गई है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ निकाय चुनावों को साथ कराने का प्रस्ताव नहीं रखा गया है। अगर ऐसा किया जाता तो आधे राज्यों की मंजूरी लेनी पड़ती जिसमें बीजेपी को समस्या आ सकती थी। अगर मौजूदा रूप या थोड़े बहुत बदलाव के साथ यह बिल पास होता है और इसे अमली जामा पहनाने की तैयारी भी होती है, तब भी अभी कम से कम 10 साल लग सकते हैं। यानी लगभग दो लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव बीत सकते हैं। आइए समझते हैं कि ऐसा क्यों हो सकता है...
संविधान संशोधन से क्या होगा?
सबसे पहली बात तो यह है कि मौजूदा प्रस्ताव के मुताबिक, संविधान में संशोधन करके अनुच्छेद 82 A (1) जोड़ा जाना है। इसके जरिए यह तय होगा कि एक लोकसभा चुनाव के बाद होने वाली पहली बैठक में राष्ट्रपति 'अपॉइंटेड डेट' तय करेंगे। एक और अनुच्छेद 82 A (2) जोड़ा जाएगा। इसके जरिए यह होगा कि अपॉइंटेड डेट के बाद जहां कहीं भी विधानसभा के चुनाव होंगे उनका कार्यकाल उस लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएगा। उदाहरण के लिए अगर आज अपॉइंटेड डेट जनवरी 2025 की तय कर दी जाए तो इसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव का कार्यकाल मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल यानी 2029 में ही खत्म हो जाएगा।
हालांकि, मौजूदा लोकसभा में यह नहीं हो सकता क्योंकि इस लोकसभा का कार्यकाल जून से ही शुरू हो चुका है और पहली बैठक उसी समय हो चुकी है। ऐसे में सबकुछ सही रहते हुए भी अब नई लोकसभा की पहली बैठक 2029 से पहले नहीं हो सकती। अगर 2029 वाली लोकसभा के हिसाब से सब होता है तो उसका कार्यकाल 2034 में खत्म होगा और बाकी विधानसभाओं का कार्यकाल भी उसी वक्त खत्म होगा। ऐसे में 'एक देश एक चुनाव' 2023 से पहले किसी भी सूरत में नहीं हो सकता।
इन नियमों की अड़चन के अलावा कुछ और काम हैं जो संभवत: इससे पहले ही होंगे और इनके बाद ही 'एक देश एक चुनाव' की ओर देश बढ़ पाएगा। आइए इनक बारे में विस्तार से समझतें हैं।
जनगणना
भारत में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। आमतौर पर हर 10 साल पर जनगणना होती है और इसके हिसाब से जनगणना 2021 में होनी थी। हालांकि, पहले सरकार की ओर से देरी हुई, फिर कोरोना महामारी की वजह से काम रुका। अब कहा जा रहा है कि जनगणना की शुरुआत ही 2025-26 में हो सकती है। अगर जनगणना 2025 में शुरू भी हो जाती है और यह डिजिटल तरीके से की जाती है तब भी इसमें कम से कम एक साल का समय लगेगा यानी 2026 तो बीत ही जाएगा।
परिसीमन
साल 2026 में डीलिमिटेशन कमीशन गठित होना है। जनगणना के बाद ही यह काम भी होगा। दरअसल, लोकसभा सीटों की संख्या जनसंख्या के आधार पर तय होती है। मौजूदा समय में लोकसभा सांसदों की संख्या 1971 के आधार पर तय है। सीटों की यह संख्या 2026 तक ही रहनी है। अगर सरकार 2025 में होने वाली जनगणना के आधार पर सीटों की संख्या निर्धारित करती है तो राज्यों में सीटों की संख्या और कुल संख्या भी काफी हद तक बदल जाएगी।
संविधान के अनुच्छेद 81 के मुताबिक, लोकसभा सांसदों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं हो सकती। हालांकि, संविधान ही हर लोकसभा में 10 लाख की आबादी की बात भी करता है। 1971 में जनसंख्या 55 करोड़ थी और अब लगभग 3 गुना बढ़ चुकी है, ऐसे में परिसीमन की भी जरूरत है और नए सिरे से सीटों की संख्या तय भी की जानी है। हालांकि, जनसंख्या के आधार पर सीटों की संख्या तय करने को लेकर दक्षिण के राज्य नाखुश भी हैं और वे इसका विरोध भी करते रहे हैं। ऐसे में यह भी एक बाधा आ सकती है। दक्षिण के राज्यों का डर है कि जनसंख्या के आधार पर सीटों की संख्या तय होने पर उनकी सीटें कम हो जाएंगी।
महिला आरक्षण
केंद्र की मोदी सरकार ने सितंबर 2023 में नारी शक्ति वंदन अधिनियम को पास किया था। इसके मुताबिक, लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद नए सिरे से सीटों की संख्या तय होगी और उसी के हिसाब से महिलाओं को आरक्षण दिया जाएगा। इस कानून के मुताबिक, 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
अब ये चीजें एक के बाद एक करके क्रम से होनी हैं। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि पहले जनगणना होगी, फिर परिसीमन होगा, फिर आरक्षण लागू और इस सबके लागू हो जाने के बाद ही देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एकसाथ कराए जाएंगे। हालांकि, इन सब बदलावों की दिशा में देश की नई संसद ऐसे बदलावों का स्वागत करने के लिए पहले से तैयार है और वहां लगभग एक हजार सांसदों के बैठने का इंतजाम किया जा चुका है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap