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सामने से चलने लगी गोलियां, पहलगाम हमले में बचे इंजीनियर की आंखों देखी

पहलगाम हमले बचे सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रसन्न कुमार ने अपनी आंखों देखी बताई कि वह किस तरह से अपने परिवार के साथ वहां से बच के निकले।

prasanna kumar and his wife । Photo Credit: X/@prasannabhat38

प्रसन्न कुमार और उनकी पत्नी । Photo Credit: X/@prasannabhat38

22 अप्रैल को पहलगाम में हुई हिंसा में कुल 26 लोग मारे गए जिनमें से 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक था। इस घटना की पूरे देश में काफी आलोचना हुई और पाकिस्तान को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। मीडिया में चल रही खबरों में इस बात ने सबको चौंकाया कि लोगों को उनका धर्म पूछ कर उन्हें मारा गया।


इस घटना का मंजर इतना भयावह था कि पूरा देश हिल गया। हरियाणा के विनय नरवाल की तो 16 अप्रैल को शादी हुई थी और चार दिन बाद ही आतंकवादियों ने उन्हें गोली मार दी। वह नेवी में ऑफिसर थे। इसी तरह से पूरे देश के अलग अलग हिस्सों से लोग पहलगाम में घूमने के लिए गए हुए थे जिन्होंने अपनी जान गंवा दी। 

 

हालांकि, इनमें से कुछ लोग ऐसे भी रहे जो बच भी गए। इन्हीं में से एक थे कर्नाटक के मैसुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रसन्न कुमार भट्ट। उनके साथ उनकी पत्नी, उनके भाई और पत्नी की बहन भी थीं।

 

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कई लोगों की बचाई जिंदगियां

एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा कि उनके भाई एक सीनियर इंडियन आर्मी अधिकारी हैं जिनके साथ वह छुट्टियां मनाने के लिए गए हुए थे। उन्होंने इनकी और इनके साथ 35-40 अन्य लोगों की जिंदगियां बचाईं।

 

उन्होंने खराब मौसम के कारण अपनी यात्रा दो दिन के लिए रोक दी थी  और पहलगाम घूमने के लिए चले गए। उस दिन की घटना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वह और उनका परिवार 22 अप्रैल को दोपहर करीब 12:30 बजे पहलगाम पहुंचे और टट्टू पर सवार होकर करीब 1:35 बजे बैसरन पहुंचे।

 

उन्होंने एक्स पर लिखा, 'हम भी बाकी लोगों की तरह मेन गेट से दाखिल हुए और प्रवेश द्वार के बाईं ओर बने कैफे में से एक में चले गए। हम राजसी दृश्य और परिदृश्य से अभिभूत हो गए और एक कप चाय और कावा के साथ इसका आनंद लिया।'

 

 

कैफे में चाय पी रहे थे

दोपहर करीब दो बजे भट और उनके परिवार ने उठकर घूमने का फैसला किया ताकि वे कुछ फोटोज़ ले सकें, लेकिन संयोग से वे एंट्री गेट से दूसरी दिशा में चले गए।

 

भट ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा, 'कुछ ही मिनटों बाद हमने दोपहर 02:25 बजे के करीब 2 गोलियों की जोरदार आवाज सुनी। इसके बाद एक मिनट के लिए सन्नाटा छा गया और हर कोई बस यह समझने को कोशिश कर रहा था कि आखिर हुआ क्या है। चारों ओर खेल रहे बच्चे अभी भी खेल रहे थे, वह नहीं समझ पाए थे कि आखिर हुआ क्या है।' उन्होंने कहा कि वहां मौजूद काफी लोगों ने संभवतः पहली बार एके-47 की तेज आवाज सुनी होगी। वे लिखते हैं कि जैसे ही उन्होंने आवाज सुनी वे और उनका परिवार पास ही मौजूद मोबाइल टॉयलेट के पीछे छिप गए।

 

भट ने दावा किया, 'मैं पहले से ही जमीन पर दो लाशें पड़े देख पा रहा था। मेरे भाई को तुरंत पता चल गया कि यह एक आतंकवादी हमला था। फिर बंदूकें चलनी शुरू हो गईं और चारों ओर अराजकता फैल गई। भीड़ जोर-जोर से चिल्ला रही थी और अपनी जान बचाने के लिए भाग रही थी।'

 

गेट पर भी थे आतंकी

कर्नाटक के इस व्यक्ति ने लिखा कि बैसरन में भागने के लिए बहुत जगह नहीं है क्योंकि पूरे घास के मैदान में बाड़बंदी है। उन्होंने कहा, 'इसलिए अधिकांश भीड़ गेट की ओर भागने लगी, जहां आतंकवादी पहले से ही इंतजार कर रहे थे। नजारा कुछ ऐसा था कि जैसे भेड़ें खुद ही बाघ की ओर भाग रही हों। उन्होंने लिखा कि एक आतंकवादी उनके और उनके परिवार की तरफ भी आ रहा था, लेकिन वे सौभाग्यशाली थे कि एक ड्रेनेज पाइप के कारण बाड़ के नीचे एक पतला सा रास्ता मिल गया। भट ने कहा कि अधिकांश लोग बाड़ के जरिए फिसल गए और दूसरी दिशा में भाग गए।

 

भट ने दावा किया, 'मेरे भाई (सेना अधिकारी) अपनी पत्नी के साथ मोबाइल टॉयलेट के पास छिप गए। वह आस-पास के अन्य लोगों को शांत कराने में सफल रहे। ​​उन्होंने जल्दी से स्थिति का आकलन किया और उनको समझ में आया कि एंट्री गेट से आग की लपटें दिख रही हैं। इसलिए उन्होंने हमें और 35-40 पर्यटकों को विपरीत दिशा में जाने का निर्देश दिया।' 

 

ढलान की तरफ भागे

उन्होंने आगे कहा कि बाड़ के जरिए फिसलने के बाद, उनके भाई ने उन्हें नीचे की दिशा में भागने के लिए कहा ताकि वे गोलीबारी से दूर जा सकें। चूंकि यह एक ढलान थी और पानी की धारा बह रही थी, इसलिए "सीधा सीधा देखा जाए तो कुछ सुरक्षित था। कीचड़ भरी ढलान पर दौड़ना बहुत मुश्किल था क्योंकि काफी फिसलन थी। कई लोग फिसल गए लेकिन अपनी जान बचाने में कामयाब रहे।'

 

प्रसन्न कुमार भट ने याद करते हुए लिखा कि वह पल में कितना डरावना था कि बच्चों और बुजुर्गों के आस-पास होने के कारण स्थिति कितनी डरावनी थी। उन्होंने कहा, 'शब्दों में उस डर और भय को बयां नहीं किया जा सकता जो ऐसी स्थिति में महसूस होता है और आप वास्तव में असहाय महसूस करते हैं।'

 

पुलिस को सचेत करने के लिए मोबाइल नेटवर्क कनेक्शन होने का उल्लेख करते हुए, उनके भाई ने पहलगाम में तैनात एक यूनिट और फिर श्रीनगर में सेना मुख्यालय को दोपहर 2:45 बजे के आसपास चल रहे आतंकी हमले के बारे में सूचित किया।

 

तब तक, 'हम चारों ने घटनास्थल से कुछ सौ मीटर दूर पेड़ों के नीचे एक संकरे गड्ढे में छिपने में कामयाबी हासिल की और अपनी जान की दुआ मांगते रहे'।

 

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गूंजती रहीं गोलियों की आवाज़

भट ने दावा किया कि दोपहर 3 बजे तक घाटी गोलियों की आवाजों से गूंजती रही। उन्होंने आगे कहा, 'हम एक घंटे तक गड्ढे में डरे, निराश और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते रहे। हमें नहीं पता था कि हमें उसी जगह पर रहना है या मौत के जाल से बचने की उम्मीद में किसी बेतरतीब दिशा में भागना है।'

 

भट ने कहा, 'बंदूकों की गोलियां अभी भी हमारे कानों में गूंजती हैं और आतंक अभी भी मेरे दिल को झकझोर देता है। यह एक स्थायी निशान छोड़ जाएगा, यह एक ऐसी याद है जो कश्मीर की खूबसूरती के पीछे छिपी है और जिसे मिटाया नहीं जा सकता। हमारे देश में ऐसा होते देखना दुखद है।' 

 

सेना को दिया धन्यवाद

उन्होंने अपने भाई, जो कि एक वरिष्ठ सेना अधिकारी हैं और पूरी भारतीय सेना के प्रति आभार व्यक्त किया 'जिनकी वजह से हम इस घटना को व्यक्तिगत रूप से बताने और अपने परिवार के साथ वापस आ पाए'। 

 

प्रसन्न कुमार भट और उनका परिवार अब सुरक्षित रूप से मैसूर में अपने घर लौट आया है। इस बीच, गृह मंत्रालय (एमएचए) ने रविवार को पहलगाम आतंकी हमले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी।

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