PM मोदी को जैन समाज से मिली धर्म चक्रवर्ती की उपाधि, कहा- यह प्रसाद है
जैन संत आचार्य श्री 108 विद्यानंद महाराज के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धर्म चक्रवर्ती उपाधि दी गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Photo Credit: BJP4India/ X)
शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जैन संत आचार्य श्री 108 विद्यानंद महाराज के शताब्दी समारोह पर 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि दी गई। इस अवसर पीएम मोदी ने अपने अभिभाषण में कहा कि 'आपने मुझे 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि से विभूषित किया। मैं खुद को इसके लिए उपयुक्त नहीं मानता।
हालांकि हमारी संस्कृति है कि संतों से जो कुछ भी हमें मिलता है, उसे हम प्रसाद के रूप में प्राप्त करते हैं। इसलिए मैं विनम्रतापूर्वक इस प्रसाद को स्वीकार करता हूं और इसे मां भारती को समर्पित करता हूं।'
'धर्म चक्रवर्ती' उपाधि क्या है?
'धर्म चक्रवर्ती' का अर्थ है — धर्म के चक्र को चलाने वाला यानी वह व्यक्ति जो धर्म की स्थापना, प्रचार या रक्षा में अहम भूमिका निभाता है। यह पद जैन धर्म की परंपराओं में अत्यंत उच्च और सम्मानजनक माना जाता है। इसे प्राप्त करने वाला कोई संत, राजा या व्यक्ति होता है जो अहिंसा, सत्य, करुणा और धर्म के मूल तत्वों को समाज में फैलाने में आगे हो।
यह भी पढ़ें: प्राडा विवाद: GI टैग के बाद भी सुरक्षित क्यों नहीं भारतीय कारीगरी?
धर्म चक्रवर्ती उस व्यक्ति को कहा जाता है जो समाज में नीति, नैतिकता और अध्यात्म की चेतना जगाता है। यह उपाधि बहुत कम व्यक्तियों को दी जाती है और तभी दी जाती है जब कोई व्यक्ति समाज, संस्कृति और धर्म के प्रति असाधारण योगदान देता है।
प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय संस्कृति मंत्री थे इस आयोजन में शामिल
28 जून 2025 से 22 अप्रैल 2026 तक पूरे भारत में एक खास आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव मनाया जाएगा- यह अवसर है आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी महाराज की जन्म शताब्दी का। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने आचार्य जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी स्मृति में विशेष डाक टिकट जारी किए। यह आयोजन न केवल जैन समाज के लिए, बल्कि पूरे भारत के आध्यात्मिक इतिहास के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर भारतीय संस्कृति की गहराई पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत विश्व की सबसे पुरानी जीवित संस्कृति है। हमारे विचार, दर्शन और जीवनदृष्टि अमर हैं और इसका श्रेय हमारे ऋषियों, संतों और आचार्यों को जाता है, जिन्होंने पीढ़ियों तक इस ज्ञान को जीवित रखा। आचार्य श्री विद्यालंकार जी भी इन्हीं महान परंपराओं के प्रतिनिधि थे।
कौन हैं आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज?
आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी महाराज का जन्म 22 अप्रैल 1925 को कर्नाटक के बेलगावी जिले के शेडबाल गांव में हुआ था। बहुत ही कम उम्र में उन्होंने दीक्षा प्राप्त कर दी और जीवनभर ब्रह्मचर्य, तप और अध्ययन के पथ पर अग्रसर रहे। वह जैन आगम ग्रंथों के अत्यंत विद्वान माने जाते हैं। उन्होंने लगभग 8,000 से ज्यादा जैन आगमिक श्लोकों को कंठस्थ किया था। यही नहीं, उन्होंने 50 से ज्यादा ग्रंथों की रचना की, जिनमें जैन दर्शन, अनेकांतवाद, मोक्षमार्ग दर्शन जैसे गहन विषयों पर उनके विचार आज भी विद्वानों के लिए प्रेरणा हैं।
आचार्य जी का जीवन सादगी, कठोर तप और सेवा भावना से भरा रहा। उन्होंने कई वर्षों तक भारत के विभिन्न राज्यों में नंगे पांव यात्रा की और देशभर के जैन तीर्थों के पुनर्निर्माण व जीर्णोद्धार में अहम भूमिका निभाई। दिल्ली, वैशाली, इंदौर और श्रवणबेलगोला जैसे तीर्थस्थलों के पुनरुद्धार में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। वह श्रवणबेलगोला महा-मस्तकाभिषेक उत्सव और भगवान महावीर के 2600वें जन्म कल्याणक महोत्सव से भी विशेष रूप से जुड़े रहे।
यह भी पढ़ें: US वीजा के लिए सोशल मीडिया पॉलिसी पर भारत का क्या है रुख? MEA ने बताया
सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक था — भगवान महावीर के जन्मस्थल की पहचान। उन्होंने बिहार स्थित कुंडग्राम (अब बासोकुंड) को महावीर स्वामी का जन्मस्थान बताया, जिसे बाद में भारत सरकार ने भी 1956 में आधिकारिक रूप से मान्यता दी।
इस शताब्दी वर्ष के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस अवसर पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी जिसका शीर्षक था 'आचार्य श्री 108 विद्यालंकार जी महाराज का जीवन और विरासत'। इसमें चित्रों के माध्यम से उनके संपूर्ण जीवन को दर्शाया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि आचार्य श्री जैसे संतों का जीवन भारत की आत्मा है। उनका विचार, तप और दर्शन आने वाली पीढ़ियों को सच्चे अर्थों में धर्म, अहिंसा और आत्मकल्याण का मार्ग दिखाते हैं।
शताब्दी समारोह केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि यह भारत की उस ज्ञान-परंपरा का पुनर्स्मरण है जिसे संतों और आचार्यों ने अपनी तपस्या और साधना से जीवित रखा। आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी महाराज का जीवन इस बात का प्रतीक है कि एक व्यक्ति अपने त्याग, साधना और विचारों से लाखों लोगों की आत्मा को छू सकता है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap