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प्राडा विवाद: GI टैग के बाद भी सुरक्षित क्यों नहीं भारतीय कारीगरी?

एक फैशन वीक के दौरान प्राडा ने कोल्हापुरी चप्पल जैसे डिजाइन पेश किया जिसके बाद से भारतीयों में नाराजगी साफ दिख रही है। आखिर क्यों भड़का है देश का गुस्सा?

prada Kolhapuri chappal row

कोल्हापुरी चप्पल, Photo Credit: AI/Sora

मिलान फैशन वीक 2026 में लग्जरी ब्रांड प्राडा ने अपना नया स्प्रिंग/समर फुटवियर कलेक्शन पेश किया लेकिन इन सैंडल्स को देखकर भारतीय सोशल मीडिया पर बवाल मच गया। वजह? ये चप्पलें दिखने में बिलकुल भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों जैसी थीं लेकिन प्राडा ने इन्हें 'लेदर सैडल्स' कहकर पेश किया और कहीं भी भारत, कोल्हापुर या कारीगरों का जिक्र नहीं किया गया। इन सैंडल्स की कीमत लगभग 1.16 लाख रुपये रखी गई है लेकिन जिस डिजाइन की प्रेरणा भारतीय संस्कृति से ली गई, उसका क्रेडिट भारत को नहीं दिया गया, जिससे लोग नाराज हो गए।

 

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे एक्स (Twitter), इंस्टाग्राम और रेडिट पर यूजर्स ने नाराजगी जताई। किसी ने लिखा, 'गर्व है कि भारत का डिजाइन इंटरनेशनल लेवल पर पहुंचा लेकिन दुख इस बात का है कि हमारे कारीगरों को उसका हक नहीं मिला।' कई लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि क्या प्राडा कोल्हापुर के कारीगरों को इसका मुनाफा या रॉयल्टी देगा?

 

कोल्हापुरी चप्पल आखिर है क्या?

कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र के कोल्हापुर की पारंपरिक और मशहूर चप्पल है। यह भारत की सबसे पुरानी हैंडमेड लेदर फुटवियर स्टाइल में से एक मानी जाती है। इसकी पहचान है– खास टो-लूप डिजाइन, हाथ से की गई सिलाई और लोकल कारीगरों की मेहनत। इतनी खासियतों की वजह से इसे GI टैग (Geographical Indication) भी मिल चुका है, यानी यह डिजाइन और कारीगरी कानूनी रूप से भारत से जुड़ी हुई मानी जाती है।

 

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GI टैग वाली कोल्हापुरी चप्पल

GI (Geographical Indication) टैग का मतलब होता है किसी प्रोडक्ट की खास भौगोलिक पहचान और उसकी पारंपरिक निर्माण प्रक्रिया को कानूनी मान्यता देना। इसका मकसद होता है उस क्षेत्र की खास चीजों को पहचान और संरक्षण देना। जैसे-दार्जिलिंग चाय, बनारसी साड़ी, कांचीपुरम सिल्क और कोल्हापुरी चप्पल। साल 2019 में कोल्हापुरी चप्पल को भी GI टैग मिला, जो महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के लिए मान्य है। इसका मतलब यह है कि अब कोई भी व्यक्ति या ब्रांड इस नाम और डिजाइन को बिना अनुमति या क्रेडिट दिए अपने नाम से नहीं बेच सकता।

 

तो फिर प्राडा ने यह गलती कैसे की?

प्राडा ने इन सैंडल्स को 'कोल्हापुरी' नाम से नहीं बेचा, बल्कि सिर्फ उसी डिजाइन को अपनाया जो कोल्हापुर की पारंपरिक चप्पलों से हूबहू मेल खाता है। यानी यह मामला नाम की नहीं, डिजाइन की चोरी का है। दरअसल, GI टैग मुख्य रूप से किसी उत्पाद के नाम, स्थान और पारंपरिक निर्माण प्रक्रिया को कानूनी सुरक्षा देता है लेकिन अगर कोई ब्रांड उस डिजाइन को 'प्रेरणा' बताकर नाम बदल दे, तो कानूनी कार्रवाई करना काफी मुश्किल हो जाता है। इसी कानूनी खालीपन का फायदा उठाकर कई इंटरनेशनल ब्रांड्स भारतीय कारीगरी को बिना क्रेडिट दिए इस्तेमाल कर लेते हैं।

 

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इंटरनेशनल GI कानूनों की सीमाएं

भारत का GI टैग भारतीय न्याय प्रणाली में प्रभावी होता है, यानी यह सुरक्षा भारत की सीमाओं के भीतर ही मान्य होती है लेकिन अगर किसी विदेशी देश में भी उसी उत्पाद पर कानूनी अधिकार चाहिए, तो वहां भी उसका GI टैग रजिस्टर कराना जरूरी होता है जो आमतौर पर नहीं किया जाता। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी पारंपरिक चीजें अक्सर बिना अनुमति के इस्तेमाल हो जाती हैं और कानूनी कार्रवाई कर पाना मुश्किल हो जाता है।

 

क्या भारत इस पर कुछ कर सकता है?

भारत को अपनी पारंपरिक विरासत की रक्षा के लिए WIPO (World Intellectual Property Organization) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर GI (Geographical Indication) अधिकारों को और मजबूत करना होगा। इसके साथ ही, GI टैग प्राप्त उत्पादों के लिए बेहतर ब्रांडिंग, निर्यात और डिज़ाइन पेटेंट की प्रक्रिया को अपनाना जरूरी है, ताकि यह वैश्विक स्तर पर भी कानूनी रूप से सुरक्षित रहें। इसके अलावा, सरकार और कारीगरों से जुड़ी यूनियनों को मिलकर ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सामूहिक रूप से कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि विदेशी कंपनियों द्वारा डिजाइन और सांस्कृतिक पहचान की नकल पर रोक लगाई जा सके।

 

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सांसदों ने किया विरोध

भाजपा के राज्यसभा सांसद धनंजय महादिक ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कोल्हापुरी चप्पलों के भौगोलिक संकेत (GI) टैग की रक्षा करने की मांग की है। उन्होंने यह आग्रह इतालवी फैशन ब्रांड प्राडा द्वारा पारंपरिक कोल्हापुरी डिजाइन की चप्पलों को बिना नाम लिए अपने कलेक्शन में पेश किए जाने के मामले को लेकर किया है।

 

महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) द्वारा भेजे गए एक पत्र के जवाब में प्राडा ने आखिरकार माना कि उनके हाल ही में पेश किए गए मेन्स फैशन शो 2026 में जो सैंडल दिखाए गए, वे भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित हैं। प्राडा के एक प्रतिनिधि ने कहा, 'हम मानते हैं कि ये सैंडल भारत के पुराने और समृद्ध हस्तशिल्प से प्रेरित हैं और हम इस शिल्प की सांस्कृतिक अहमियत को समझते हैं।'

 

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MACCIA ने प्राडा को लिखा लेटर

MACCIA के अध्यक्ष ललित गांधी ने बताया कि जब उन्होंने यह डिजाइन देखे, तो संस्था ने स्थानीय कारीगरों और उनके हक की बात करते हुए प्राडा को एक पत्र लिखा। गांधी ने कहा, 'कोल्हापुरी चप्पल की अपनी एक अलग पहचान है। हम चाहते हैं कि ये दुनिया के नए बाजारों तक पहुंचे, लेकिन इसे सही पहचान और क्रेडिट मिलना चाहिए।'

 

प्राडा के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) प्रमुख लोरेंजो बर्टेली ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, 'हम जिम्मेदार डिज़ाइन प्रैक्टिस को बढ़ावा देना चाहते हैं और भारत के कारीगरों से सीधा संवाद करना चाहते हैं, ताकि उनके काम को सही पहचान और सम्मान मिले। पहले भी हम ऐसा कर चुके हैं और आगे भी करेंगे।'

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