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रेप का केस कब हो सकता है खारिज? SC ने अदालतों के लिए तय की गाइडलाइंस

सुप्रीम कोर्ट ने रेप और सहमति से बने यौन संबंधों के मामलों को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की हैं। इसमें कोर्ट ने 4 स्टेप बताई हैं ताकि सही न्याय हो सके।

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सुप्रीम कोर्ट। (File Photo Credit: PTI)

रेप और सहमति से बने संबंध क्या फर्क होगा? इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बलात्कार और सहमति से बने यौन संबंध के बीच साफ अंतर है। अदालतों को शादी का वादा करके किए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को सावधानी से आंकना चाहिए कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी का शादी करने का इरादा कभी नहीं था और उसने सिर्फ संबंध बनाने के मकसद से झूठा वादा किया था तो इसे धोखाधड़ी माना जाएगा।


जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता के बेंच ने रेप के एक आरोपी के खिलाफ केस को रद्द करते हुए कहा कि झूठी या परेशान करने वाली शिकायतें न केवल किसी व्यक्ति की छवि को धूमिल करती हैं, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग भी हैं।


इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट्स के लिए एक गाइडलांइस तय की हैं, जिससे अदालतें तय कर सकें कि ऐसे मामलों में आरोपी के खिलाफ केस रद्द किया जाना चाहिए या नहीं।

 

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क्या है सुप्रीम कोर्ट का 4 स्टेप टेस्ट?

  • पहली: हाई कोर्ट को यह देखना होगा कि आरोपी ने जो सबूत पेश किए हैं, वह पूरी तरह से विश्वसनीय और संदेह से परे हैं। मतलब, सबूत इतने ठोस और मजबूत हों कि उन पर सवाल न उठ सकें।
  • दूसरी: कोर्ट को जांचना होगा कि आरोपी के पेश किए गए सबूत इतने ठोस हैं कि उनसे शिकायत की नींव ही हिल जाती है। ये सबूत किसी को यह विश्वास दिला दें कि लगाए गए आरोप झूठे हैं।
  • तीसरी: यह देखना होगा कि शिकायतकर्ता ने आरोपी के सबूतों का खंडन किया है या नहीं। अगर शिकायतकर्ता सबूतों को गलत साबित नहीं कर पाता तो यह आरोपी के पक्ष में जाता है।
  • चौथी: यह तय करना होगा कि इस मामले को आगे बढ़ाया तो क्या यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। शिकायत झूठी या कमजोर लगती है या लगे कि इससे व्यक्ति की छवि धूमिल होगी तो कोर्ट मामले को रद्द कर सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

यह मामला 2010 का है। 2014 में महिला ने आरोपी के खिलाफ रेप, अप्राकृतिक यौन संबंध और मारपीट का केस दर्ज कराया था। शिकायतकर्ता ने मामले में आरोपी के माता-पिता को भी शामिल किया था। 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2019 में आरोपी के खिलाफ केस रद्द करने से इनकार कर दिया था।


हाई कोर्ट के इस फैसले को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। आरोपी के वकील राहुल कौशिक ने अदालत में दलील दी थी कि शिकायतकर्ता के साथ सहमति से संबंध में था। बाद में दोनों के रिश्ते बिगड़ गए थे। 


इस पर सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायत में घटना की तारीख और जगह जैसी जगहों की जानकारी नहीं थी, इसलिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, 'इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं दिया गया है कि शिकायतकर्ता को मामला दर्ज करने में चार साल क्यों लगे।'


कोर्ट ने आगे कहा, 'न केवल अपीलकर्ता (आरोपी) को आपराधिक कार्यवाही में घसीटा गया, बल्कि उसके माता-पिता को भी आरोपी बनाया गया। कई दूसरे अपराधों का आरोप भी लगाया गया है। यह अपने आप में पूरे मामले को संदिग्ध बनाता है।'


बेंच ने इस बात भी जोर दिया कि शादी के झूठे वादे पर रेप के वास्तविक आरोपों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, साथ ही इसके दुरुपयोग से भी बचना चाहिए। कोर्ट ने कहा, 'ऐसा मामले जहां शादी का वादा किया गया हो, वहां अदालत को बहुत सावधानी से जांच करनी चाहिए कि क्या आरोपी वाकई पीड़िता से शादी करना चाहता था या उसने केवल अपनी हवस मिटाने के लिए झूठा वादा किया था।'


इसके बाद अदालत ने आरोपी के खिलाफ आरोपों को निराधार बताते हुए उसके खिलाफ चल रहे मुकदमे को रद्द कर दिया।

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