आंध्र प्रदेश के एक डिप्टी कलेक्टर को झुग्गी-झोपड़ियों को उजाड़ने का आदेश देना भारी पड़ा है। तहसीलदार के पद पर तैनात इस अधिकारी पर हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना का आरोप लगा है। अधिकारी ने गुंतूर जिले की कुछ झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने के आदेश दिए थे, उनके घर गिराए गए और उन्हें विस्थापित होना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को हुई सुनवाई में कहा कि अब अधिकारी को जेल जाना होगा और डिमोशन झेलना होगा।
सु्प्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जो लोग भी इस फैसले से प्रभावित हुए हैं, उन्हें मुआवजा दिया जाए। केस की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिल विश्वनाथन ने की। जस्टिस गवई ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी अधिकारी ने कार्रवाई की है।
क्या है पूरा केस?
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील सीनियर अधिवक्ता देवाशीष बरुका ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के रहते हुए वहां अवमानना का आदेश नहीं मिला था। एक को योजना के तहत पुनर्वास दिया गया था। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि ध्वस्तीकरण का क्या जवाब है, उनके दर्द को महसूस कीजिए। दरअसल हाई कोर्ट के स्टे के बाद भी तहसीलदार ने झुग्गियों को हटवा दिया था। कोर्ट ने माना कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस गवई ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि किस पद पर उनकी नियुक्ति हुई थी। सीनियर वकील ने कहा कि डिप्टी तहसीलदार के पद पर। जस्टिस गवई ने उनके डिमोशन का आदेश दिया। उन्होंने कहा, 'उन्हें डिप्टी तहसीलदार बनने दीजिए। उन्हें यह लिखित में देने दीजिए कि पद पर काम करने के लिए तैयार हैं।
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तहसीलदार ने क्या किया था?
हाई कोर्ट के मना करने के बाद भी तहसीलदार ने जुग्गियों को उजाड़ दिया था। तहसीलदार ने 88 पुलिसकर्मियों को नियुक्त किया था। हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया। कोर्ट ने भी तहसीलदार की गलती मानती, 2 महीने की जेल और 2 हजार का फाइन लगा दिया। तहसीलदार ने तर्क दिया था कि उसने अतिक्रमण हटवाया था। याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव की याचिका दायर की। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी वही बातें दोहराई हैं।