सुप्रीम कोर्ट ने कैश कांड के आरोपी जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग और सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति की रिपोर्ट के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिबल से पूछा कि अगर उन्हें इन-हाउस कमिटी (जांच समिति) असैंवधानिक लगती है तो वह उसकी कार्यवाही में शामिल ही क्यों हुए। सुनवाई कर रही बेंच में शामिल जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह ने कहा कि यशवंत वर्मा पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जस्टिस वर्मा को पहले ही सुप्रीम कोर्ट आना चाहिए था, न कि तब जब इन-हाउस कमिटी ने उन्हें दोषी पाया। दरअसल, जस्टिस वर्मा ने संसद में उनके खिलाफ चलाए जा रहे महाभियोग और सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस कमिटी की रिपोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जस्टिस वर्मा ने दलील दी थी इन हाउस कमिटी की रिपोर्ट असंवैधानिक है। जस्टिस वर्मा के घर में कैश मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की जांच के लिए 22 मार्च को एक समिति बनाई थी। इसने जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों को सही पाया था।
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जस्टिस वर्मा पर सुप्रीम कोर्ट में क्या बहस हुई?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'इन हाउस कमिटी सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के आधार पर बनाई गई है। यह CJI को स्वतंत्र तरीके से आरोपों की जांच करने में मदद करता है। अगर आपको यह असंवैधानिक लगी तो आप इसके सामने पेश क्यों हुए?' इस पर कपिल सिब्बल ने जवाब दिया, 'हमने जब देखा कि रिपोर्ट के आधार पर ही संसद में महाभियोग की सिफारिश की जा रही है, इसे काउंटर करने के लिए जज के पास कोई दूसरा फोरम नहीं था इसलिए सुप्रीम कोर्ट आए। जज को क्या पता था कि कमिटी उनके खिलाफ फैसला सुना देगी।'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा, 'CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं हैं। उनकी देश के प्रति भी ज़िम्मेदारी है। अगर उन्हें लगता है कि कोई जज दोषी है तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सूचित कर सकते हैं।' सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने यह मुद्दा भी उठाया कि कैश मिलने का वीडियो लीक होने से इन हाउस इंक्वायरी की गोपनीयता पर असर पड़ा।
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इस पर जस्टिस दत्ता ने यह कहा कि कैश कांड के वीडियो लीक नहीं होने चाहिए थे। हालांकि, उन्होंने यह सवाल किया कि लीक से मामले के कानूनी पक्ष और संसद की कार्यवाही पर कैसे असर पड़ा? इसके जवाब में सिब्बल ने कहा, 'वीडियो लीक होने से जज की छवि को नुकसान पहुंचा। मीडिया ट्रायल हुआ, CJI ने खुद इस्तीफा या स्वैच्छिक रिटायरमेंट की बात की थी।'
जस्टिस दत्ता ने CJI की तरफ से जज को हटाने के लिए की सिफारिश पर कहा, 'उनका सुझाव मानना संसद के लिए अनिवार्य नहीं होता है। वहां CJI की सिफारिश को खारिज भी किया जा सकता है। जज की बर्खास्तगी को लेकर आखिरी फैसला संसद ही करती है।'
मामले में अब तक क्या हुआ?
14 मार्च: जज के सरकारी आवास में आग लगी। वहां पहुंची फायर सर्विस की टीम को जले हुए नोट मिले।
21 मार्च: दिल्ली हाई कोर्ट ने इंटरनल इंक्वायरी शुरू की।
22 मार्च: जस्टिस वर्मा को इलाहबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया। तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने आरोपों की इंटरनल जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की इन हाउस कमिटी बनाई।
3-4 मई: इन हाउस कमिटी ने जांच रिपोर्ट सौंपी। इसमें जस्टिस वर्मा पर लगे आरोप सही पाए गए।
8 मई: CJI ने राष्ट्रपति को लेटर लिखा और महाभियोग की सिफारिश की।
18 जुलाई: जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया कि उनके आवास के बाहरी हिस्से में कैश बरामद होने मात्र से यह साबित नहीं होता कि वे इसमें शामिल हैं। जस्टिस वर्मा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच समिति ने यह तय नहीं किया कि नकदी किसकी है या परिसर में कैसे मिली। समिति ने फैसला अनुमान के आधार पर लिया और उन पर लगे आरोपों को सच मान लिया।
21 जुलाई: संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया।
28 जुलाई: हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से पूछा था, 'आप जांच कमेटी के सामने क्यों पेश हुए। क्या आपने पहले वहां से फैसला अपने हक में लाने की कोशिश की'।