यूपी में अभी उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की नौकरियों में परीक्षा को लेकर छात्रों का बवाल थमा ही है कि एक अंग्रेजी वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी विधानसभा और विधानपरिषद में सरकारी नौकरी के मामले में एक बड़ा घोटाला सामने आ गया है। दरअसल, यूपी विधानसभा में 2020-21 में 186 पदों के लिए भर्ती निकाली गई थी। नौकरी के लिए दो राउंड की परीक्षा आयोजित कराई गई थी। इसके लिए 2.5 लाख छात्रों ने आवेदन किया था।
लेकिन अंग्रज़ी वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक विधानसभा में हुई फाइलन नियुक्ति में सामने आया है कि इसमें हर 5 में से 1 नौकरी बड़े अधिकारी और नेताओं के रिश्तेदारों को मिली है। इस तरह से 38 पदों पर वीवीआईपी के रिश्तेदारों की भर्ती हुई।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर
भर्ती प्रक्रिया में धांधली को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। हाई कोर्ट ने सुनवाई की, जिसे देखकर हाई कोर्ट ने भी इसे घोटाला करार दिया है। अब भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की गई है।
सफल उम्मीदवारों की लिस्ट में बड़े नाम
यह खबर अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से सामने आई है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक फाइनल लिस्ट में सफल उम्मीदवारों की लिस्ट में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन स्पीकर हृदयनारायण दीक्षित के पीआरओ और भाई, पूर्व मंत्री का भतीजा, संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की बेटी और बेटा, विधानसभा के प्रमुख सचिव के चार रिश्तेदार, विधानपरिषद के प्रमुख सचिव का बेटा, उपलोकायुक्त का बेटा, पूर्व ओएसडी का बेटा, विधान परिषद एपीएस धर्मेंद्र सिंह का बेटा और भाई और एक नेता के भतीजे का नाम था।
इसके अलावा पांच नौकरी उन 2 निजी फर्मों के मालिकों के रिश्तेदारों को भी मिली है, जिन्होंने यह परीक्षा कराई थी।
रिश्तेदारों को नियुक्ति भी मिली
इन सभी उम्मीदवारों को तीन साल पहले उत्तर प्रदेश विधानमंडल से जुड़े दो सचिवालयों में नियुक्ति भी मिल गई। इस नौकरी की प्रक्रिया काफी तेजी से हो गई और रिश्तेदारों को नौकरी भी मिल गई, लेकिन गांव-देहात से आने वाले सामान्य परिवारों के अभ्यर्थी सालों-साल नौकरी के लिए वैकेंसी आने का इंतजार करते रह जाते हैं. उन नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया इतनी तेज़ नहीं होती।
एजेंसी की विश्वसनीयता पर सवाल थे
एक्सप्रेस के खबर के मुताबिक, 18 सितंबर 2023 को तीन असफल उम्मीदवार अजय त्रिपाठी, सुशील कुमार और अमरीश कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो जजों की पीठ ने मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को चौंकाने वाला और भर्ती घोटाला बताया। कोर्ट ने कहा कि यह गैरकानूनी तरीके से एक बाहरी एजेंसी से सैंकड़ों भर्तियां कराई गईं, जिसकी विश्वसनीयता पर सवाल थे।
किसने कराई परीक्षा
खबर के मुताबिक, भर्ती का ठेका ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज (BECIL) को दिया गया था, जो केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। BECIL ने टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग को काम पर रखा था। वहीं इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, विधानपरिषद में भर्ती का ठेका राभव नाम की एक प्राइवेट फर्म को दिया गया था। हालांकि, सचिवालय ने परीक्षा प्रक्रिया में गोपनीयता का हवाला देते हुए कोर्ट में फर्म का नाम नहीं बताया।