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पहले केस झेलकर हुआ 'बाइज्जत बरी', अब जिला जज बनेगा शख्स

मामले में हाई कोर्ट ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता को जासूसी के गंभीर आरोप का सामना करना पड़ा और राज्य सरकार के लिए इस पर गंभीरता से विचार करना जरूरी था।

allahabad high court

शख्स पर चल रहा था जासूसी और राजद्रोह का मुकदमा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में जासूसी के आरोप से बाइज्जत बरी एक व्यक्ति को अपर जिला जज के तौर पर नियुक्त करने का राज्य सरकार को निर्देश दिया है। पाकिस्तान के लिए जासूसी करने और राजद्रोह के दो मुकदमों में आरोपी रहे इस व्यक्ति को निचली अदालत द्वारा बरी कर दिया गया था।

अदालत ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को अपर जिला जज (उच्च न्यायिक सेवा काडर के तहत) के पद पर नियुक्ति पत्र 15 जनवरी 2025 तक जारी करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता ने 2017 में उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा सफलतापूर्वक पास की थी।

अदालत ने बाइज्जत बरी किया

प्रदीप कुमार नाम के शख्स द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित करते हुए जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डी. रमेश की पीठ ने कहा, 'याचिकाकर्ता को दो आपराधिक मामलों में ‘बाइज्जत बरी’ कर दिया गया था और दोनों ही मामलों में आरोपों में कोई सत्यता नहीं पाई गई।' अदालत ने राज्य सरकार को दो हफ्ते के भीतर याचिकाकर्ता का आचरण सत्यापन कराने और सभी औपचारिकताएं पूरी कर 15 जनवरी 2015 तक नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया।

जासूसी और राजद्रोह का मुकदमा

याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा, 2016 के लिए आवेदन किया था जिसमें उसने अपने खिलाफ चले दो मुकदमों (एक जासूसी और दूसरा राजद्रोह) और उन मुकदमों में छह मार्च 2014 को बरी किए जाने का उल्लेख किया था। ये मुकदमे कोतवाली, कानपुर नगर में वर्ष 2002 में दर्ज किए गए थे।

याचिकाकर्ता ने चयन प्रक्रिया में भाग लिया

याचिकाकर्ता ने चयन प्रक्रिया में भाग लिया और उसे सफल घोषित किया गया। इसके बाद 18 अगस्त 2017 को उच्च न्यायालय ने चयनित अभ्यर्थियों की सूची राज्य सरकार को भेजी और नियुक्ति की सिफारिश की। हालांकि, याचिकाकर्ता को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया। 

राज्य सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए था

अदालत ने छह दिसंबर के अपने आदेश में कहा, 'इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता को जासूसी के गंभीर आरोप का सामना करना पड़ा और राज्य सरकार के लिए इस पर गंभीरता से विचार करना जरूरी था। लेकिन दूसरी तरफ इस आपराधिक मुकदमे में याचिककर्ता को बाइज्जत बरी कर दिया गया जहां आरोप में कोई सच्चाई नहीं पाई गई।'

सरकार के पास कोई सबूत नहीं

अदालत ने यह भी कहा, 'याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी एजेंसी के लिए काम किया हो, यह निष्कर्ष निकालने के लिए राज्य सरकार के पास कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। वह खुफिया एजेंसियों के राडार पर था, इस बात का कोई मतलब नहीं है।' प्रदीप कुमार और उनका परिवार कानपुर के मेस्टन रोड इलाके में रहता है। ‘पीटीआई-भाषा’ द्वारा संपर्क किए जाने पर परिवार ने इस विषय पर बात करने से यह कहते हुए मना किया कि ‘प्रदीप यहां नहीं हैं।’  

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