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पश्चिम बंगाल: SSC स्कैम पर SC ने काली दाल का क्यों जिक्र किया?

पश्चिम बंगाल SSC भर्ती केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल सर्विस कमीशन के डेटाबेस में मौजद इलेक्ट्रॉनिक डेटा की जांच पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दागी और बेदाग अभ्यर्थियों के बीच अंतर समझना जरूरी है।

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल SSC स्कैम केस की सुनवाई 7 जनवरी को होगी। (तस्वीर-PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 25,000 शिक्षकों और अन्य स्टाफ की भर्ती में हुए कथित घोटाले को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार और स्टाफ सलेक्शन कमीशन (SSC) से कड़े सवाल पूछे हैं। दोनों विभागों के प्रतिनिधि इस पूछताछ में असहज नजर आए। सुप्रीम कोर्ट ने आशंका जताई है कि उम्मीदवारों के चयन प्रक्रिया में बहुत सारी खामिया हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला एक साल से ज्यादा वक्त से लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों और अन्य स्टाफ की नियुक्ति पर रद्द करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया था। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने उन कारणों पर बात की, जिनके आधार पर हाई कोर्ट ने नियुक्ति रद्द कर दी थी। हाई कोर्ट ने चयन प्रक्रिया इसलिए रोकी थी क्योंकि बेदाग उम्मीदवारों और दागी उम्मीदवारों के बीच अंतर नहीं किया जा सकता था। 

सुप्रीम कोर्ट ने खामियां क्या गिनाई हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दागी उम्मीदवारों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जा सकता है। जैसे अयोग्य, जिनके रैंक में हेरफेर करके उन्हें सलेक्शन लिस्ट में डाला गया। दूससरे वे जिनके नतीजों में हेरफेर करके उन्हें मेधावी उम्मीदवारों से आगे कर दिया गया, तीसरा, OMR में हेरफेर किया गया, जिनमें से कुछ खाली थे। चौथा जो मेरिट लिस्ट में नहीं थे, उन्हें नियुक्ति मिली। 

 

दाल में काला या सब काला, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा?
भर्ती प्रक्रिया में आई कथित खामियों का जिक्र भी बेंच ने किया। नौकरियों का विज्ञापन साल 2016 में दिया गया, वहीं नियुक्तियां साल 2019 में हुईं। चीफ जस्टिस ने तंज भरे लहजे में सवाल किया कि दाल में कुछ काला है या सब कुछ काला है? 12 से ज्यादा सीनियर अधिवक्ताओं ने दागी उम्मीदवारों के पक्ष में तर्क दिया है। उनका कहना है कि वे उन सबूतों पर सवाल उठाना चाहते हैं, जिनके आधार पर HC ने 25,000 उम्मीदवारों की नियुक्ति रद्द कर दी। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह सच तभी साफ होगा जब इसकी सुनवाई की जाएगी।

'हाई कोर्ट के आदेश में गलत क्या था'
बेंच ने कहा कि इस कथित भर्ती घोटाले का पता जस्टिस रंजीत कुमार बाग कमीशन ने लगाया था और सीबीआई ने इसकी पुष्टि की थी। यहां तक ​​कि SSC ने भी अनियमितताओं को स्वीकार किया था और इन सभी निष्कर्षों के आधार पर, HC ने नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में बुनियादी तौर पर क्या गलत था। 

किस बात पर है ऐतराज?

साल 2020 में SSC ने आंसर शीट ही साफ कर दी। SSC के सीनियर अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि CBI ने दागी उम्मीदवारों की पहचान की है और यह संख्या कमोबेश SSC की ओर से पहचाने गए उम्मीदवारों से मेल खाती है। उन्होंने तर्क दिया कि उन नियुक्तियों को रद्द किया जा सकता है और बाकी को बचाया जा सकता है। 

बचाव में अधिवक्ताओं का क्या कहना है?
वहीं कुछ अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि हजारों शिक्षकों की नियुक्तियों को रद्द करने से कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों की पढ़ाई पर असर पड़ेगा तो बेंच ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा कि हम इस तरह के तर्कों को स्वीकार नहीं करेंगे।

अगली सुनवाई कब है?
बेंच ने कहा कि उन विभागीय अभ्यर्थियों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा जो बेदाग हैं और इस भर्ती प्रक्रिया के जरिए शिक्षक नियुक्त होने से पहले लंबे समय तक काम कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को 7 जनवरी के लिए टाल दिया है। कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने घोटाले पर फैसला दिया था और जस्टिस बाग कमीशन के इसकी जांच कराने की मांग की थी। अब वह इस्तीफा दे चुके हैं और भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं। 

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