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एक देश एक चुनाव: काम से लेकर सदस्यों के नाम तक, पढ़ें JPC की कहानी

'एक देश एक चनाव' विधेयक पर बने संयुक्त संसदीय समिति में लोकसभा के 21 सदस्य और राज्य सभा के 10 सदस्य शामिल हैं। समिति में प्रियंका गांधी को भी जगह मिली है। कितनी ताकतवर होती है संसदीय समिति, समझिए पूरी कहानी।

Lok Sabha

संयुक्त संसदीय समिति बजट सत्र के अंतिम सप्ताह में रिपोर्ट सौंपेगी। (तस्वीर- संसद टीवी)

देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने जुड़े अहम विधेयक को लोकसभा में मंगलवार को पेश किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और उससे जुड़े 'संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024' को सदन में पेश किया। अब इस विधेयक पर विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा गया है।

संयुक्त संसदीय समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्यों को शामिल किया गया है। लोकसभा में बिल पेश करने के दौरान इसके पक्ष में कुल 269 सदस्यों ने वोटिंग की थी, वहीं 196 सांसदों ने इसके विरोध में वोटिंग की है। एनडीए गठबंधन से इतर इंडिया ब्लॉक की पार्टियां इस विधेयक का विरोध कर रही हैं।

किन सांसदों को मिली है संयुक्त संसदीय समिति में जगह?
लोकसभा सांसद संबित पात्रा से लेकर प्रियंका गांधी तक को इस समिति में जगह दी गई है। सपा नेता धर्मेंद्र यादव और टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी भी समिति के सदस्य हैं। आइए जानते हैं लोकसभा के किन सांसदों को समिति में जगह दी गई है-

1. पीपी चौधरी
2. सीएम रमेश
3. बांसुरी स्वराज
4. परषोत्तमभाई रूपाला
5. अनुराग सिंह ठाकुर
6. विष्णु दयाल राम
7. भर्तृहरि महताब
8. संबित पात्रा
9. अनिल बलूनी
10. विष्णु दत्त शर्मा
11. प्रियंका गांधी वाड्रा
12. मनीष तिवारी
13. सुखदेव भगत
14. धर्मेंद्र यादव
15. कल्याण बनर्जी
16. टीएम सेल्वागणपति
17. सुप्रिया सुले
18. जीएम हर्ष बालयोगी
19. श्रीकांत एकनाथ शिंदे
20. चंदन चौहान
21. बालाशोवरी वल्लभनेनी

कब समिति सौंपेगी रिपोर्ट?
संयुक्त संसदीय समिति के संबंध में बुधवार को यह अधिसूचना जारी हुई है। यह समिति बजट सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले ही रिपोर्ट बनाकर सदन में पेश करेगी। समिति में एक देश एक चुनाव के धुर विरोधी नेताओं को जगह दी गई है। प्रियंका गांधी से लेकर कल्याण बनर्जी तक एक देश एक चुनाव का विरोध जता चुके हैं। 

JPC का काम क्या होता है?
JPC का गठन किसी विधेयक की जांच के लिए होता है। संसदीय समिति के लिए सदन में प्रस्ताव लाते हैं, जिसका समर्थन दूसरे सदन की ओर से होता है। जैसे लोकसभा में कोई प्रस्ताव दिया गया तो उसका अनुमोदन राज्यसभा में होगा। संसद ही तय करती है कि समिति में किसे-किसे जगह मिलेगी। राज्यसभा सदस्यों की तुलना में लोकसभा सदस्य दोगुने होते हैं। जेपीसी कुछ समय के लिए ही बनाई जाती है। एक तिथि विशेष तक उसे अपनी रिपोर्ट सौंपनी होती है।

जेपीसी दस्तावेजों की जांच मौखिक और लिखित दोनों स्तर पर कर सकती है। किसी संस्था, व्यक्ति या पक्षकार को बुलाकर उसे सवाल पूछने का हक भी होता है। जब सबूत पर विवाद की स्थिति पैदा होती है तो समिति के अध्यक्ष ही तय करते हैं कि फैसला क्या लेना है। उनका फैसला अंतिम होता है। जेपीसी के तथ्य गोपनीय होते हैं, अगर समिति चाहे तभी ये सार्वजनिक किए जा सकते हैं। सरकार को अगर लगता है कि जेपीसी की रिपोर्ट देश का माहौल बिगाड़ सकती है तो उसे रोका जा सकता है।

विपक्ष एक देश-एक चुनाव पर सोचता क्या है?
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) जैसे दलों ने इस प्रस्ताव की आलोचना की है। इन राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि यह देश के संघीय ढांचे के ही खिलाफ है। लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक इस विधेयक पर खूब हंगामा बरपा है। 

लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने इसके विरोध में कहा, 'सरकार का तर्क है कि चुनाव कराने में करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। सरकार पैसे बचाने की कोशिश कर रही है। एक लोकसभा चुनाव कराने में 3700 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यह आंकड़ा चुनाव आयोग ने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिया था। 3700 करोड़ रुपये सालाना बजट का 0.02 प्रतिशत है। सालाना बजट के 0.02 प्रतिशत खर्च बचाने के लिए वे भारत के संघीय ढांचे को खत्म करना चाहते हैं। वे चुनाव आयोग को ज्यादा ताकतवर बनाना चाहते हैं।'

टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने भी विधेयक पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा'यह संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार है। यह अनुच्छेद 83 के उप-अनुच्छेद 2(1) के विपरीत है। तीसरा, राज्य विधानसभा केंद्रीय संसद के हिसाब से काम करेगी। जब भी संसद भंग होगी, तब सभी राज्यों में चुनाव कराने होंगे। राज्य विधानसभा और राज्य सरकार संसद और केंद्र सरकार के अधीन नहीं हैं।'

समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने लोकसभा में कहा, 'मैं संविधान के 129वें संशोधन अधिनियम का विरोध करता हूं। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि अभी दो दिन पहले संविधान को बचाने की, संवैधानिक परंपराओं की कसमें खाने में कोई कमी नहीं रखी। दो दिन के भीतर संविधान की मूल भावना और मूल ढांचे को तबाह करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाए हैं।'

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