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DGP की नियुक्ति पर UP सरकार को नया नियम क्यों लाना पड़ा?

यूपी में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर नई नियमावली को मंजूरी दे दी है जिसकी वजह से इस मामले में केंद्र सरकार पर प्रदेश की निर्भरता कम हो जाएगी.

UP (Uttar Pradesh) Chief Minister Yogi Adityanath

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

किसी भी राज्य में पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी पुलिस महकमे का सर्वोच्च अधिकारी होता है। ज़ाहिर है पूरे प्रदेश के पुलिस की कमान उसी के हाथों में होती है। राज्य का मुख्यमंत्री प्रदेश की कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस पर निर्भर होता है। इसलिए सभी मुख्यमंत्री यह चाहते हैं कि डीजीपी ऐसा व्यक्ति बने जो कि उनके आदेशों-अनुदेशों का अक्षरशः पालन करे। लेकिन डीजीपी की नियुक्ति को लेकर एक प्रक्रिया है, उसी प्रक्रिया के तहत राज्य के पुलिस मुखिया की नियुक्ति होती है। ऐसे में हाल ही में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर यूपी सरकार द्वारा लाए गए नए नियमों ने एक बहस छेड़ दी है। खबरगांव आपको बता रहा है कि क्या है यह पूरा मामला।

 

करीब दो साल से यूपी में हैं कार्यवाहक डीजीपी

 

नए नियम के तहत यूपी में डीजीपी की नियुक्ति अब एक कमेटी के जरिए किया जाएगा लेकिन इस नए नियम को लाने के पीछे भी एक कहानी है जो यूपी में पिछले लगभग दो सालों से चल रही है। 11 मई 2022 से यूपी की पुलिस की कमान लगातार किसी एक कार्यवाहक डीजीपी के हाथों में हैं। दरअसल 11 मई 2022 को यूपी सरकार ने तत्कालीन डीजीपी मुकुल गोयल को उनके पद से हटा दिया था। हालांकि, उनकी नियुक्ति इस पद पर 10 महीने पहले ही की गई थी। राज्य सरकार ने उन्हें पद से हटाए जाने के पीछे तर्क यह दिया वह पर्यवेक्षण कार्यों में शिथिलता बरतते हैं। राज्य सरकार का कहना था कि इतने बड़े राज्य के मुखिया का पद संभालने के लिए सिर्फ वरिष्ठता ही जरूरी नहीं है, बल्कि कार्यकुशलता भी होनी चाहिए।

 

इसके बाद राज्य सरकार ने तत्कालीन डीजी इंटेलिजेंस डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी के रूप में नियुक्त कर दिया। रिटायर होने तक वे इस पद पर बने रहे। फिर डीजी भर्ती बोर्ड आर के विश्वकर्मा को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया। उनके रिटायरमेंट के बाद विजय कुमार और फिर आईपीएस अधिकारी प्रशांत कुमार को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया। इस तरह से मुकुल गोयल के हटने के बाद से 11 मई 2022 से लेकर अब तक किसी न किसी कार्यवाहक डीजीपी से काम चलाया जा रहा था, और अब यूपी सरकार इस संदर्भ में नए नियम लेकर आ गई है।

यूपी सरकार अचानक क्यों लाई नियमावली?

 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सहित देश के 8 राज्यों को लंबे समय से कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करने के लिए नोटिस जारी किया था। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं डाली गई थीं। इन याचिकाओं में कहा गया था कि ये राज्य प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए गाइडलाइन्स का पालन नहीं कर रहे हैं। इस नोटिस की प्रतिक्रिया में यूपी सरकार ने इस नई नियमावली को मंज़ूरी दी।


अब कैसे होगा डीजीपी का चयन?

 

नए नियम के तहत डीजीपी की नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार ने ‘पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश चयन एवं नियुक्ति नियमावली 2024’ को मंजूरी दी है। जिसके तहत हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाएगी। इस कमेटी में प्रदेश के मुख्य सचिव के साथ-साथ संघ लोक सेवा आयोग द्वारा नामित एक प्रतिनिधि, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या उसके द्वारा नामित कोई प्रतिनिधि, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव और राज्य को कोई रिटायर्ड डीजीपी होगा। यही कमेटी डीजीपी का चयन करेगी। इस नियमावली के मुताबिक वही अधिकारी नियुक्ति के योग्य होगा जिसकी सेवा कम से कम 6 महीने बची हो। एक बार नियुक्ति हो जाने के बाद डीजीपी का सेवा काल कम से कम दो वर्षों का होगा।

 

अभी तक क्या थी प्रक्रिया?

 

अभी तक डीजीपी के नियुक्ति की प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के तहत की जाती थी। इसके लिए राज्य सरकार 30 साल की सेवा पूरा कर चुके वरिष्ठतम अधिकारियों की एक लिस्ट यूपीएससी को भेजती थी, जिनमें से उनके सर्विस रिकॉर्ड, वरिष्ठता, सत्य निष्ठा और अनुभव इत्यादि को ध्यान में रखते हुए तीन अधिकारियों का नाम यूपीएससी राज्य सरकार वापस भेजती थी। फिर राज्य सरकार के पास यह अधिकार होता था कि वह उन्हीं तीन अधिकारियों में से किसी को प्रदेश का डीजीपी नियुक्त कर सकती थी। इन अधिकारियों का सेवाकाल भी नियुक्ति ते बाद कम से कम दो सालों का होता था और राज्य सरकार भी लिस्ट में उन्हीं अधिकारियों का नाम भेज सकती थी जिनकी कम से कम 6 महीने की सेवा बची हो।

 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट अपने दिशा-निर्देशों में यह भी कहा था कि डीजीपी की नियुक्ति की यह प्रक्रिया तभी तक अपनाई जाएगी जब तक राज्य इस संदर्भ में नया नियम नहीं बना लेते हैं।

 

अब तक 17 राज्य बना चुके हैं अपने नियम

 

देश में अब तक 17 राज्य, डीजीपी की नियुक्ति के लिए अपनी नियमावली बना चुके हैं। जो कि अपने अपने राज्यों में डीजीपी की नियुक्ति या तो यूपीएससी की गाइडलाइन से सुसंगत किसी गाइडलाइन के तहत करते हैं और या कमेटी के जरिए करते हैं। हालांकि, इन कमेटी से यह उम्मीद की जाती है कि वह डीजीपी की नियुक्ति 5 वरिष्ठतम अधिकारियों में से ही करे। 

 

इससे क्या फर्क पड़ेगा?

 

ऐसा माना जा रहा है कि इस नियमावली के बाद राज्य सरकार डीजीपी की नियुक्ति में ज्यादा स्वतंत्र हो जाएगी और केंद्र का दखल कम हो जाएगा क्योंकि अब राज्य सरकार को यूपीएससी द्वारा भेजे गए नामों में से ही किसी को नहीं चुनना पड़ेगा बल्कि राज्य सरकार खुद इसका निर्णय ले पाएगी। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि अब डीजीपी के चयन की प्रक्रिया तेजी से की जा सकेगी। अटकलें ऐसी लगाई जा रही हैं कि इस नियमावली को मंजूरी मिलने के बाद मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार यूपी के नए डीजीपी के रूप में नियुक्त किए जा सकते हैं भले ही वह वरिष्ठता सूची में 13वें स्थान पर हैं।

 

हालांकि, राज्य सरकार द्वारा जारी बयान के मुताबिक यह नियमावली इसलिए बनाई गई है ताकि पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र और पारदर्शी तंत्र स्थापित किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह चयन 'राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप' से मुक्त हो सके।

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