वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस ने साल 2008 में ‘बहनजी’ नाम की एक किताब लिखी जिसके पेज नंबर 104 और 105 को पढ़ने पर आपको 29 साल पहले हुए एक ऐसे कांड की याद आ जाएगी जो राजनीति के इतिहास में सबसे काले दिन के लिए याद किया जाता है।
2 जून, 1995 को लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में अचानक से समाजवादी पार्टी के विधायक, कार्यकर्ता और भीड़ घुस गई। चीख-पुकार, गाली-गलौज और अश्लील भाषा का इस्तेमाल लगातार हो रहा था। कॉमन हॉल में बैठे बहुजन समाज पार्टी के विधायकों ने डर से मेन गेट बंद कर दिया, लेकिन गुस्साई झुंड ने उसे तोड़कर अंदर घुस गई।
जब मुलायम सिंह के समर्थकों ने की थी मारपीट
असाहय बैठे बसपा विधायकों पर मुलायम सिंह के समर्थक टूट पड़े। थप्पड़ और लात-घूसो से पीटना शुरू कर दिया और घसीटते हुए जबरन गाड़ियों में ठूसने लगे। इन विधायकों को जबरन एक कागज पर दस्तखत करने को कहा गया। कुछ तो इतने डर गए थे कि उन्होंने कोरे कागज पर ही दस्तखत कर दिया। बाहुबलियों की फौज उस कमरे तक पहुंचना चाह रही थी जहां मायावती अपने समर्थकों के साथ थीं। कमरा बंद तो था, लेकिन गेट को जोर-जोर से पीटा जा रहा था और मायावती को दी जा रही थी जातिसूचक और लिंगसूचक गालियां। एक तरफ बाहर आने की धमकी मिल रही थी तो वहीं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह हिंसा को रोकने के बजाय सिगरेट फूंक रहे थे।
जब सपा समर्थकों मिली खुली छूट
उस समय उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने यूपी पुलिस के जवानों को निर्देश दिया था कि सपा समर्थकों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाएगी। जैसे-तैसे दो पुलिस अफसरों ने हिम्मत दिखाते हुए मायावती को उस भीड़ से बचाया। विजय भूषण उस समय हजरतगंज स्टेशने के हाउस अफसर थे। वहीं, एसएचओ सुभाष सिंह बघेल के बहदुरी से मायावती को सुरक्षित गेस्ट हाउस से बाहर निकाला गया। इस कांड के बाद भाजपा और बसपा के संबंध और गहरे हुए और समर्थन से मायावती की सरकार उत्तर प्रदेश में बनाई।
गेस्ट हाउस कांड से बदली मायावती की जिंदगी
2 जून को गेस्ट हाउस कांड हुआ और उसके अगले ही दिन यानी 3 जून, 1995 को मायावती ने यूपी के सीएम पद की शपथ ली। दरअसल, 1995 में मुलायम सिंह यादव की सपा और कांशीराम की बसपा गठबंधन सरकार यूपी में सत्ता में थी। इसके बावजूद कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था। मुलायम सिंह यादव बसपा के संस्थापक कांशीराम से बात करना चाहते थे लेकिन उन्होंने मना कर दिया। 23 मई, 1995 को कांशीराम ने भाजपा नेता लालजी टंडन को फोन कर बीजेपी-बसपा गठबंधन करने का ऑफर दिया। इसी दौरान मायावती की एंट्री हुई और कांशीराम ने उनसे बस एक सवाल किया – क्या तुम यूपी की मुख्यमंत्री बनोगी?
फिर क्या 1 जून, 1995 को मायावती लखनऊ पहुंची और सपा-बसपा के डेढ़ साल पुराने गठबंधन को खत्म करने की जानकारी राज्यपाल मोतीलाल वोरा को दे दी गई। मायावती ने सपा से समर्थन वापस लेने के साथ ही भाजपा के साथ सरकार बनाने का दावा किया और फिर आया 2 जून, 1995 की तारीख जो यूपी के राजनीतिक इतिहास में एक काले दिन की तरह याद किया जाने लगा....